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रामसेतु तोड़ने पर आमादा सरकार

भारत सरकार द्वारा नियुक्त पचौरी कमेटी ने अपना स्पष्ट प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया है कि "रामसेतु तोड़ने के अतिरिक्त और कोई विकल्प बाकी नहीं है, बंगाल की खाड़ी में भारत के पश्चिम तट के जहाजों के आने-जाने का।'' पचौरी कमेटी ने रामसेतु के अस्तित्व से ही इन्कार किया है। कमेटी ने भारतीय जहाजों के समय और धन के बचत की बात की है। किन्तु रामसेतु तोड़ने में लगे धन और परिश्रम के बाद भारत की आय बढ़ेगी या नहीं, इस बारे में एक भी शब्द नहीं कहा है।

भारत अपना धन एवं परिश्रम खर्च कर भारतीय जहाजों के परिवहन का जो मार्ग बना रहा है, वह भारत-श्रीलंका के अधिकार क्षेत्र के ठीक मध्य में पड़ता है। कमेटी ने यह नहीं लिखा कि श्रीलंका के जहाज इसका उपयोग कर सकेंगे या नहीं। यह भी नहीं लिखा कि दो प्रभुसत्ता सम्पन्न देशों के मध्य का क्षेत्र अन्तरराष्ट्रीय माना जाता है तो विश्व के अन्य राष्ट्रों के जहाज और पाकिस्तान के भी जहाज इस मार्ग का उपयोग कर सकेंगे या नहीं।

यदि श्रीलंका और अन्य देशों के जहाजों ने बिना कुछ खर्च किये और बिना कोई शुल्क अदा किये भारत की बिना अनुमति के आवाजाही जारी रखी तो भारत की सुरक्षा का क्या होगा? भारत की सुरक्षा के लिये अलग से सैनिकों की नियुक्ति नौसैनिकों और लड़ाकू जहाजों की नियुक्ति का अतिरिक्त बोझ भारत पर पड़ेगा। श्रीलंका की नौसेना कई बार भारतीय जहाजों को पकड़ चुकी है, हमारे सैनिकों को पकड़ चुकी है। उन्हें छुड़ाने में काफी मशक्कत करती पड़ी है। भारतीय मछुआरों पर गोली चलाना और उन्हें पकड़ लेना तो प्रतिदिन की बात है, ये घटनाएँ और बढेंगी।

अभी इटली के जहाजियों द्वारा भारतीयों की मौत का मसला सुलझा ही नहीं है। उनका कहना है कि हमनें अन्तरराष्ट्रीय सीमा में सोमालिया के लुटेरों को समझ गोली चला दी थी। इसका उन्होंने जवाब नहीं दिया कि इटली का जहाज मन्नार की खाड़ी में क्यों आया? जबकि रामसेतु के कारण खाड़ी से बंगाल की खाड़ी में जाने का कोई मार्ग नहीं है।

यदि रामसेतु टूट गया और आने-जाने का मार्ग बन गया तो इस मार्ग से आना-जाना उनकी बपौती हो जायेगा। एक बार मार्ग बन गया तो मित्र-शत्रु किसी को भी रोकना असम्भव होगा, फिर हाथ मलने के सिवा कुछ नहीं कर सकेंगे।

रामसेतु के नीचे लीथियम का अपार भण्डार है जो अणुशक्ति का एक स्रोत है। आज यह हमारे स्वामित्व क्षेत्र में है। जब चाहें जितना चाहें निकालें कोई रोकने वाला नहीं। जब क्षेत्र ही अन्तरराष्ट्रीय हो जायेगा तो चीन जैसा शत्रु आ धमकेगा और लीथियम पर अधिकार बतायेगा। वियतनाम और फिलीपीन के मध्य सागर पर तेल की खोज करते भारत को उसने रोक दिया है।

पूर्व में श्रीलंका के जाफना प्रायद्वीप और भारत के कालीमेरे प्रायद्वीप के मध्य मात्र तीस मील का समुद्र है। 15 मील पर श्रीलंका का समुद्री अधिकार क्षेत्र और 15 मील समुद्र पर भारत का अधिकार क्षेत्र है। यहॉं से कोई अन्तरराष्ट्रीय जहाज नहीं निकल सकता। भारतीय तट पर बैठा एक साधारण तट रक्षक भी उस पर गोली चला सकता है। बाद में रामसेतु तक खाड़ी की चौड़ाई 100 मील हो गई है और खाड़ी पाक खाड़ी कहलाती है। कालीमेरे प्रायद्वीप की स्थिति स्पेन मोरक्को के मध्य ब्रिटेन के जिब्राल्टर की भॉंति है जो भूमध्य सागर के प्रवेश द्वार पर है। स्पेन की भूमि पर होने के बाद भी अपनी सामरिक स्थिति के कारण ब्रिटेन उसे खाली नहीं करता है। जिब्राल्टर में ब्रिटेन की जबरदस्त किलेबन्दी है और नौसेना रहती है।

अटलांटिक सागर का कोई जहाज यदि जिब्राल्टर से भूमध्यसागर में प्रवेश करता था तो यहॉं से अरबसागर में जाने को कोई जलमार्ग नहीं था। जहाजों को पूरे अफ्रीका का चक्कर लगाकर अरब सागर पहुँचना पड़ता था। कूटनीतिज्ञ अंग्रेजों ने फ्रांस से मिलकर मिश्र के बन्दरगाह सईद से एशिया-अफ्रीका के मध्य लालसागर तक स्वेज नहर बना डाली है और अपनी सेना नियुक्त कर दी। स्वेज नहर से इंग्लैण्ड-फ्रांस ने वर्षों तक राजस्व वसूला। बाद में स्वेज नहर के लिये एक और अरब-इजराइल युद्ध हुआ। आज मिश्र स्वेज नहर से करोड़ों रुपये कमा रहा है। स्वेज नहर के दोनों ओर की भूमि मिश्र की है, किन्तु अंग्रेजों ने लाल सागर की नाकेबन्दी के लिये खाड़ी के द्वार पर सोकोट्राद्वीप, अदन के सुग्राद्वीप, यमन के केमरून द्वीप पर कब्जा नहीं छोड़ा है और जल सेना तैनात कर रखी है और हम हैं कि बैठे ठाले अपनी भूमि जगत को दान कर रहे हैं और संकट को बुला रहे हैं।

विकल्प सामने है- भारत की मुख्यभूमि (तमिलनाडु) से हमारी रेल रामनाड (रामनाथपुरम्‌) से मण्डपम्‌ स्टेशन होकर तीन मील सागर पर पुल बना रामेश्वर द्वीप पर हमारे पम्बन स्टेशन पहुंचती है। इसके आगे का स्टेशन रामेश्वर का है। रेल आगे घनुष्कोटि तक जाती है।

      इस तीन मील की रेल लाईन के पुल को ऐसा बनाया गया है कि जहाजों के गुजरने पर पुल हट जाता है और रेल आने पर पुनः जुड़ जाता है। सड़क मार्ग का तीन मील का पुल इतना ऊँचा है कि छोटे जहाज आ-जा सकते हैं।

इसी तीन मील के सागर को और गहरा कर बड़े जहाजों के लिये मार्ग बन सकता है। सड़क मार्ग के पुल को और ऊँचा बना रेल-सड़क दोनों के उपयोग में लाया जा सकता है। इस सागर तल में लीथियम का भण्डार भी नहीं है। दोनों ओर भारत की भूमि है और जनता निवास करती है। प्रशासन के थाने और नगरपालिका हैं।

भारी राजस्व मिलेगा- विश्व के जहाज श्रीलंका का चक्कर बचाने के लिये इस मार्ग का उपयोग करेंगे। शत्रु के जहाज बिना निगरानी के जा नहीं सकेंगे। भारत को अरबों का राजस्व मिलेगा। यह समझो, भारत के लिये कुबेर का खजाना खुल जायेगा।

आय के और स्रोत भी हैं- श्रीलंका की रेल लाईन उसके तलाई मन्नार द्वीप के छोर तक जाती है। श्रीलंका की मुख्य भूमि से तलाई मन्नार द्वीप को जोड़ने के लिये श्रीलंका ने सागर में दो मील का रेल सड़क पुल बनाया हुआ है। हम वर्तमान तीन फुट जल में डूबे रामसेतु से मात्र 20 मील रेल लाईन आगे बढ़ा श्रीलंका के तलाई मन्नार रेलवे स्टेशन से जोड़ सकते हैं। केवल श्रीलंका से समझौता करना पड़ेगा। सड़क मार्ग भी बन सकता है।

कल्पनातीत लाभ- जरा विचार कीजिये कश्मीर-आसाम से माल से लदा ट्रक बिना किसी बाधा के श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो तक जायेगा। यही लाभ रेल का भी होगा, भारतीय रेल से माल और यात्री श्रीलंका के प्रत्येक नगर में कम धन और कम समय में आ-जा सकेंगे।

      श्रीलंका को भारी लाभ- श्रीलंका भी इस सड़क-रेल-मार्ग का लाभ उठायेगा और उसके पर्यटन उद्योग में सौ प्रतिशत वृद्धि होगी। हिन्दू तीर्थ यात्री सीता वाटिका, अनुराधापुर, रतनपुर, त्रिंकोमाली (रावण के तीन नाना माली, सुमाली, माल्यावान का नगर) तक तीर्थ दर्शन को जायेंगे।

भारत सरकार पड़ौसी देश म्यानमार, श्याम (थाईलैण्ड), कम्बोडिया, लाओस और हिन्द-चीन (इण्डोचायना) को रेल मार्ग से जोड़ना चाहती है। काम भी प्रारम्भ हो गया है। भारत को श्रीलंका से रेल और सड़क मार्ग से जोड़ता तो अति सरल है। विकल्प सामने है, जिससे लाभ ही लाभ है, नुकसान कुछ नहीं, फिर राम सेतु तोड़ने की जिद क्यों? राम सेतु सुरक्षित रहा तो हिन्दू का मन ढेरों आशीर्वाद देगा।

रामसेतु की प्रमाणिकता- रामसेना का पड़ाव तमिलनाडु के शहर रामनाड (रामनाथपुरम्‌) से लेकर मण्डपम्‌ शहर (जहॉं राम का शिविर था)  तक था। यहॉं से आगे रामेश्वर द्वीप तक पुल बन्धा। रामेश्वर से आगे धनुष्कोटि तक भूमि थी, यहॉं से फिर 20 मील लम्बा रामसेतु बना। किन्तु इस 20 मील के सागर में 15 द्वीप हैं, जहॉं पुल नहीं बन्धा। बीच का सागर 3 फीट से 5 फीट तक गहरा है जो कभी पुल था।

तीन फीट पानी के नीचे चट्टानें और पत्थर बिछे हैं, उसके नीचे लीथियम के भण्डार की रेत है। बाद में सागर तल है। ये चट्टानें सीधे सागर तल की नहीं हैं। बीच में रेत इस बात का प्रमाण है कि चट्टानें कहीं से लाकर रेत पर डाली गई है।

तमिल टाइगर- श्रीलंका से हारने के बाद 50,000 तमिल नागरिक बिना किसी नाव के कमर तक पानी में होकर तलाई मन्नार से भागकर भारत आये थे, यह दृश्य कई टीवी चैनलों ने दिखाया था।

धनुष्कोटि से श्रीलंका तक प्रत्येक द्वीप में मीठे पानी के कुए हैं। इन निर्जन द्वीपों में राम सेना के लिये ये कुए खोदे गये थे। बाद में थल मार्ग से लंका जाने वालों के काम आते थे। आज मछुआरे इनका जल पीते हैं। मुस्लिम काल में 800 वर्षों तक हिन्दू राजा अपनी सुरक्षा में लगे रहे, इस कारण रामसेतु की मरम्मत न हो सकी, जो बीच-बीच में टूट गया है।

सोनिया षड्‌यन्त्र प्रारम्भ- रामेश्वर से धनुष्कोटि तक की रेल लाईन एक तूफान से नष्ट हो गई थी। बाद में रेलमन्त्री जाफर शरीफ ने जानबूझ कर इसे नहीं बनवाया। रेल स्टेशन भी खण्डहर पड़ा है। एक इमारत को चर्च बना दिया गया है। अगला चरण रामसेतु तोड़ने का है। प्रतिबन्ध के बाद आज भी मशीन समुद्र को गहरा करने में लगी है।

रामसेतु तोड़ने का मूल उद्देश्य- बाइबिल में लिखा है कि पृथ्वी का जन्म अभी 10,000 वर्ष पूर्व हुआ था। वैज्ञानिक कहते हैं कि 50,000 वर्ष पूर्व अफ्रीका में बन्दर से मानव विकसित हुआ, इसे डार्विन का विकासवाद कहते हैं। भारतीय शास्त्र और दर्शन ह्रासवाद को मानते हैं। सृष्टि जन्म से प्रलय की ओर जाती है। इसके लिये त्रिदेव की कल्पना की गई है। जन्म के देव ब्रह्मा, पालन के विष्णु और प्रलय के शिव। मानव का जन्म विकास से नहीं अमैथुनी सृष्टि में युवक रूप में हुआ है। भारत की ही नहीं मानव सभ्यता भी लाखों वर्ष पुरानी है। यह सातवॉं मन्वन्तर चल रहा है।

किन्तु वैज्ञानिक इसके लिये ठोस भौतिक प्रमाण मॉंगते हैं। लाखों वर्ष के भौतिक प्रमाण हम कहॉं से लायें। हम तो शास्त्रों में लिखे प्रमाण बताते रहे, किन्तु अमेरिकी संस्थान नासा ने भौतिक प्रमाण प्रस्तुत कर दिया है। उन्होंने कहा है भारत-श्रीलंका को जोड़ने वाला एक पुल दिखता है। यह पुल प्राकृतिक नहीं मानव निर्मित है। इस पुल की आयु नासा ने साढे सत्रह लाख वर्ष आँकी है। राम को हुए भी इतना ही समय हुआ है। द्वार के 8 लाख 64 हजार वर्ष और त्रेता के 12 लाख 96 हजार वर्ष दोनों का योग 21 लाख 60 हजार वर्ष। याने राम का काल त्रेता के 4 लाख 10 हजार वर्ष बीतने के बाद हुआ। यही साढे सत्रह लाख वर्ष नासा की गणना से मेल खाता है। कलियुग तो अभी प्रारम्भ ही हुआ है, इसके 5000 वर्ष जोड़ने से कोई अन्तर नहीं पड़ता।

      यह ठोस भौतिक प्रमाण हमें रामसेतु ही दे रहा है। यह रामसेतु ही यदि नष्ट हो गया तो दूसरा भौतिक प्रमाण हमारे पास नहीं है। यही तो चाहती है ईसाई सोनिया गान्धी। भारत की प्राचीन सभ्यता रामसेतु टूटने पर झूठी कहानी भर रह जाएगी।

      इसलिये रामसेतु बचाना हर भारतीय का धर्म है। इसके लिये जाति, पन्थ, राजनीति से ऊपर उठकर भारतीय बन सोचना और कार्य करना होगा। तभी भारत फिर सोने की चिड़िया बनेगा, विश्व शक्ति बनेगा, भारत मॉं जगदगुरु के सिंहासन पर बिराजेगी। रामसिंह शेखावत

दिव्य युग अक्टूबर 2011 इन्दौर, Divya yug October 20011 Indore

 

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