कष्टसाध्य बीमारी से पीड़ित एक वृद्ध मॉं कराहते हुए सहायता के लिए पुकार रही थी। उसके बेटे पैतृक-सम्पत्ति को लेकर आपस में संघर्षरत थे। कोई भी अपनी मॉं की करुण पुकार की ओर ध्यान नहीं दे रहा था। एक ओर कराह बढ़ रही थी तो दूसरी ओर संघर्ष। यही स्थिति आज भारतमाता की हो गई है। भारतमाता वर्तमान में अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं। एक ओर आतंकवाद की कष्टसाध्य बीमारी से वह त्रस्त है, तो दूसरी ओर वह भीतरघात के दर्द से कराह रही है। कुल मिलाकर उसका जीवन खतरे में है। ऐसी अवस्था में उसे छोड़कर उसके बेटे आपसी संघर्ष में तो व्यस्त हैं ही, साथ ही माता की सम्पत्ति के बॅंटवारे के लिए नारे बुलन्द कर रहे हैं।
"आमची मुम्बई' आन्दोलन ने सारे देश को हिला दिया है। यह कितनी वेदनाजनक बात है कि मुम्बई, मराठी भाषा-भाषियों की है। उत्तर भारतीयों को मराठी सीखने के लिए बाध्य किया जा रहा है। इस आन्दोलन के कर्णधार यह सोचने में असमर्थ हैं कि मराठी भाषा-भाषी सारे देश में रहते हुए प्रतिष्ठा प्राप्त कर रहे हैं। यह आन्दोलन एक विषबीज की तरह है। इसके फल क्या होंगे, यह सहज ही जाना जा सकता है। सम्भव है इस आन्दोलन से उत्तेजित होकर सारे देश में फैले हुए मराठी भाषियों के विरुद्ध आन्दोलन उठ खड़े हों। इसी के साथ यह भी प्रतिक्रिया होना सम्भव है कि अन्य प्रदेश भी अपनी-अपनी भाषाओं को लेकर अपने-अपने क्षेत्र की स्वायत्तता के लिए आन्दोलन प्रारम्भ कर दें। वह स्थिति कितनी भयानक होगी कि बंगाल बंगालियों का, पंजाब पंजाबियों का, उड़ीसा उड़िया भाषा वालों का, तमिल वालों का अपना क्षेत्र, केरल मलयाली भाषियों का तथा गुजरात गुजरातियों का है,यदि ऐसा कहते हुए सभी अपने-अपने क्षेत्र के लिए संघर्षरत हो जाएँ, तब क्या होगा? ऐसी स्थिति में एक सामान्य प्रश्न यह उठता है कि विभाजन के समय हमारे भरोसे सिन्ध से आने वाले इस देश के सपूत सिन्धी भाषा-भाषी कहॉं जाएंगे? उनका प्रान्त कौन सा होगा? और भी एक कटु समस्या पैदा हो जाना सम्भव है (जो कि असम्भव नहीं है) कि उर्दू भाषा-भाषी अपने लिए अलग क्षेत्र की मांग कर बैठें।
इस दिशा के आन्दोलनकारी एवं मांग करने वाले सच्चे अर्थों में भारतमाता के सपूत नहीं कहे जा सकते। कुछ लोगों ने ऐसे आन्दोलन के विरुद्ध आवाज भी उठाई है। इस आवाज को देश के हर एक नागरिक को बल प्रदान करना चाहिए। भारत पर बढ़ते हुए संकट का सामना हम एकताबद्ध होकर ही कर सकेंगे। अपनी भाषा और अपने क्षेत्र तक की ही बात सोचना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता। "तमिलनाडु और मुम्बई आदि में हिन्दी का विरोध' तब फिर राष्ट्र को एकता के सूत्र में बॉंधने वाली भाषा क्या होगी? संविधान ने बड़े गौरव के साथ हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान दिया है। "सारे जहॉं से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा, हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्तां हमारा'' यह गीत कौन गाएगा?
"आमची मुम्बई' आन्दोलनकारियों को फिर से बड़ी गम्भीरता के साथ सोचने की आवश्यकता है कि उनका यह आन्दोलन बहुत संकीर्ण और देशहित के सर्वथा विरुद्ध है। इसे तुरन्त स्थगित करने की घोषणा राष्ट्रहित में होगी। देश बिखरे तथा खण्ड-खण्ड में विभाजित हो जाए, यही आतंकवादी चाहते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों को पराजित करना उनके लिए सहज है। सुदृढ़ एकताबद्ध भारत उनको समाप्त कर सकता है। सोचिए! एक दिन विखण्डित भारत सिकन्दर के आक्रमण का सामना नहीं कर सका था। वही भारत आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में चन्द्रगुप्त मौर्य के नेतृत्व में सुसंगठित होकर सेल्यूकस को न केवल पराजित करने में सफल रहा, बल्कि भारत की सीमा सुदूर तक विस्तृत करने में सफल हुआ था। यह विघटनकारी आन्दोलन समय से पूर्व स्थगित होना आवश्यक है। स्थगित कीजिए और लौट आइए, भारत और भारतीयता की ओर!सुदृढ़ एकता में ही हमारा अस्तित्व है। भारतमाता की अन्तर्वेदना को समझिए और जगद्गुरुत्व के स्वाभिमान की रक्षार्थ एक पंक्ति में खड़े होकर भारतमाता के दुश्मनों को ललकारिए- दूर हटो ए दुनिया वालो, हिन्दुस्तान हमारा है। -आचार्य डॉ. संजयदेव
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Ved Katha Pravachan - 22 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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