आचार्यश्री डॉ. संजय देव के दिव्य प्रवचनों से संकलित
प्राचीन काल से लेकर आज तक नारी ने समाज, राष्ट्र एवं परिवार के उन मूल्यों की रखवाली की है जो आज भी समाज में जिन्दा हैं तो नारी के कारण ही हैं। अन्यथा वह भी पुरुषों की तरह हो जाती तो आज इन मूल्यों का नाम तक नहीं मिलता।
प्राचीन काल के साहित्य के पन्ने पलटने से हमें नारी का रूप धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक सभी क्षेत्रों में सर्वोच्च् स्थान पर दिखाई देता है। पुरुष अगर नास्तिक हो गया तो धर्म को जिन्दा रख नारी ने, जो कि आज भी हमें संस्कारवान नारियों में दिखाई देता है। राष्ट्र का पतन हुआ तो उसके उत्थान के लिए उसने मां बनकर वीरों को उत्पन्न किया, जिनके शौर्य से राष्ट्र का मस्तक ऊंचा हुआ। बलिदान देने की बात आई तो उसने भाई का, पति का बलिदान देकर अपने राष्ट्र की रक्षा की है।
महाभारत काल के आते-आते ये सामाजिक मूल्य छूट गए और समाज का पतन हो गया जिसका रूप मघ्यकालीन भारत था। जिसके कारण स्त्री को भोग्या समझा जाने लगा और विदेशियों ने आकर हमारे धर्म एवं संस्कृति को रौंद डाला। फिर महापुरुषों के आवाहन पर नारी ने अपने रूप को पहचाना और नैतिक मूल्यों को जीवित किया ।
सृष्टि के प्रथम राजा मनु महाराज ने जो उस समय सामाजिक व्यवस्था बनाई थी, वह उस समय का संविधान था, जो आज मनुस्मृति के रूप में हमारे सामने है। उसी के अनुसार आज भी बहुत कुछ हमारी सामाजिक व्यवस्था चल रही है। हमारे संविधान में भी उसकी व्यवस्थाएं समाविष्ट हैं। मनु नारी के विषय में क्या विचार रखते हैं और समाज में उसका क्या रूप होना चाहिए, मनुस्मृति के अन्दर वे लिखते हैं- यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवताः।
जिस घर के अन्दर नारी का सम्मान होता है वहां सुख-समृद्धि निवास करते हैं। जिस घर के अन्दर प्रातःकाल उठकर नारी आंसू बहाती है उस घर के सब पुण्य नष्ट हो जाते हैं।
एक दृष्टि से देखा जाए तो नर एवं नारी की आपस में तुलना नहीं की जा सकती, क्योंकि अपने आप में दोनों महान हैं। पुरूष अग्रि है स्त्री सोम है । समाज एवं परिवार के निर्माण में नारी का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। नौ मास तक बच्च्े को अपनी कुक्षि में रखकर उसका निर्माण करती है । जब बच्चे का जन्म हो जाता है तब मां बनकर नारी ही उसे संस्कारवान बनाती है। उसके पश्चात् कहीं पिता एवं गुरु का स्थान आता है। नैतिक मूल्यों की रक्षा का उपदेश भी मां से ही मिलता है। जब-जब समाज ने नारी की अवमानना की तब-तब उस समाज का पतन हुआ। हमारा प्राचीन गौरव नारी के कारण ही स्थिर रहा है।
जब विदुला का पुत्र शत्रु से हारकर जंगल में जाकर छिप गया, तब विदुला युधिष्ठिर के द्वारा उसको सन्देश भिजवाती है कि तुम किसके वीर्य से हो ? न माता के हो न पिता के हो। तुम में न कोप है न ताप। तुम नपुंसक हो, क्षत्रिय का बेटा शेर की तरह निर्भय विचरता है। शस्त्र उठाओ, शत्रु को मारो या स्वयं मर जाओ । बेटे का सोया पौरुष जाग उठा, शत्रु से युद्ध किया और विजयी रहा, यह मां के संस्कारों का फल था।
नारी ने समाज का बहुमुखी विकास किया। उसने समाज के निर्माण में योगदान एवं बलिदान दोनों दिये हैं। प्राचीन काल की माता गर्भावस्था में अपने पुत्रों को संस्कारवान बनाने के लिए कहा करती थी -
शुद्धोसि बुद्धोसि निरंजनोसि।
संसारमाया परिवर्जितोसि॥
ऐ मेरे बेटे ! तू शुद्ध है, बुद्ध है, निरंजन है, संसार की माया से अलग है। इस प्रकार उसके तीन बेटे संन्यासी हो गए। पति ने कहा कि वंश चलाने के लिए कोई पुत्र तो विवाह करे । तब उस माता ने अपने विचार बदले और उसके पुत्र अलर्क ने विवाह किया।
प्राचीन साहित्य में गार्गी का स्थान सर्वोच्च् है जिसने शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य ऋषि को परास्त दिया था। मण्डन मिश्र की पत्नी भारती ने भी शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित किया था। लोपामुद्रा, अपाला, घोषा, कौशल्या, सुमित्रा, शैव्या आदि नारियों ने भी राष्ट्र का निर्माण किया और नैतिक मूल्यों को जीवित रखा। पन्ना धाय ने मेवाड़ वंश को बचाने के लिए कुमार उदयसिंह के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया। मां जीजाबाई ने शिवा को वीरों की कहानियां सुना-सुना कर वीर बनाया और शत्रु द्वारा जीते हुए किले दिखाकर उसके निश्चय को दृढ़ बनाया। अन्त में उसने उन्हें विजय किया। वास्तव में नारी नर से बढ़कर है।
मां की मानसिक स्थिति का प्रभाव गर्भ में बच्च्े पर कितना पड़ता है इसके अनेक उदाहरण प्रत्यक्ष हमारे सामने हैं- अमरीका के राष्ट्रपति गारफील्ड का हत्यारा गीदू जब मां के गर्भ में था तब उसकी मां ने गर्भपात करा कर उसकी हत्या कर डालने का प्रयत्न किया । पर वह बच गया, उस समय की मानसिकता का प्रभाव बच्च्े पर पड़ा, जिससे वह हत्यारा बन गया।
नेपोलियन इतना बड़ा राष्ट्रनायक बना। वह भी मां के विचारों के कारण बना। जब वह मां के गर्भ में था तब उसकी मां सेनाओं की परेड देखती, सैनिकों के गीत सुनती, तब उसका रोम-रोम हर्ष से प्रफुल्लित हो उठता था। गर्भावस्था में पड़े संस्कारों ने नेपोलियन को एक महान योद्धा बनाया। बरसते गोलों में वह निर्भीक खड़ा रहता था, कभी विचलित नहीं होता था।
प्रिंस विस्मार्क जब मां के गर्भ में था तब उसकी मां अपने घर के उन भागों को बड़े मानसिक कष्ट से देखा करती, जिन्हें नेपोलियन की फ्रेंच सेनाओं ने नष्ट भ्रष्ट कर दिया था। इन तीव्र संस्कारों का परिणाम यह हुआ कि विस्मार्क के हृदय में फ्रांस से बदला लेने की तड़प जाग उठी।
यह सब उदाहरण बताते हैं कि नारी के विचारों पर समाज का उत्थान-पतन आधारित है। वीर प्रताप, शिवाजी, छत्रसाल, तात्या टोपे, टीपू सुल्तान जैसे वीरों का निर्माण नारी ने किया। अगर समाज ने उसे भोग्या समझकर प्रताड़ित किया, सम्मान नहीं दिया तो उसने हर्षद मेहता को उत्पन्न किया। आज अगर समाज के नैतिक मूल्यों की रखवाली करनी है तो नारी को सम्मान देना होगा। नारी को भी अपने छुई-मुई एवं सौन्दर्य की मूर्ति वाले रूप को छोड़ कर रानी झांसी वाला रूप अपनाना होगा।
नारी धरती के समान सब कुछ सहकर भी परिवार से जुड़ी रहती है। पुरूष छोड़ जाता है, फिर भी वह परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए आगे बढ़ती है । .नअरि-नारी जिसका कोई शत्रु न हो, इस उक्ति को पूर्ण करती हुई चलती है। आज की नारी का रूप बड़ा विकृत है। वह अपने आपको अबला समझकर बैठी आंसू बहाती है या सौन्दर्य की प्रतिमा बनी बैठी है। महादेवी वर्मा ने आज की नारी का इस प्रकार चित्रण किया है-
''हमारे जमाने में हम लोग रक्त चन्दन तिलक मस्तक पर लगाकर जब शराब की दुकानों पर धरना देने जाती थी तो बड़े से बड़ा पियक्कड़ भी शरद ऋतु के पत्तों की तरह कांप उठता था । आज की आधुनिकाओं से कहो जरा धरना देकर देखें, तो जो शराब नहीं पीते, वे भी मधुशाला में आ जाएंगे। कैबरे से लेकर बीड़ी, साबुन और ब्लेड, तौलियों के विज्ञापनों तक में आज की नारी स्वयं को तथा अपनी देहयष्टी को और अपनी चितवन मुस्कान को व्यंजन की तरह इस प्रकार परोस रही है कि स्वयं एक व्यंजन मात्र बनकर रह गयी है।''
कहां पर तो स्वामी दयानन्द सरस्वती ने रास्ते में एक छोटी बालिका को देखकर मातृशक्ति को नमस्कार किया। मनु की उक्ति ठीक है। उसके अनुसार चलेंगे तो समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना हो सकेगी अन्यथा नहीं। पूर्व का समाज हो या पश्चिम का समाज, सबने नारी को भोग्या समझ लिया है। समाज की नारियों को अपने स्वरूप को स्वयं पहचानना होगा। रानी लक्ष्मीबाई की तरह से वीरांगना बनकर समाज के गिरते मूल्यों को बचाना होगा।
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जैसा बोओगे वैसा काटोगे
Ved Katha Pravachan - 23 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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