नींबू वंश के फलों में सन्तरा स्वादिष्ट और पौष्टिक फल माना जाता है। इसे अंग्रेजी में ओरेंज कहते हैं। यह फल 12 मीटर तक ऊँचे सदाबहार पेड़ोें पर लगता है। इसकी पत्तियॉं गहरी हरी और फल खुशबूदार होते हैं। भारत में महाराष्ट्र के नागपुर और पूना, असम, पंजाब तथा कुर्ग में भरपूर उगाया जाता है। सन्तरा विटामिन "ए-बी-सी' और कैल्शियम से समृद्ध फल है। सन्तरे में सोडियम, पोटेशियम मैग्निशियम, कॉपर, सल्फर और क्लोरिन भी पाया जाता है। शरीर में ऊतकों के उपयोग में इसका कैल्शियम अधिक सहायक होता है। सन्तरे की फांकें जिस झिल्ली से ढकी रहती हैं, उनमें सर्वाधिक कैल्शियम होता है। अतः सन्तरे का झिल्ली सहित ही सेवन अधिक उपयोगी होता है।
सन्तरे की विशेषताएं उसमें प्राप्त विभिन्न पोषक तत्व, खनिज, लवण, विटामिन आदि के कारण हैं। सन्तरे में जल 87 प्रतिशत, शर्करा 11 प्रतिशत तथा प्रचुर मात्रा में वसा और प्रोटीन होता है। इसके अतिरिक्त प्रति 100 ग्राम संतरे में खनिज लवण सोडियम 12.9 प्रतिशत लौह 3.3 प्रतिशत, ताम्बा 7 प्रतिशत, फॉस्फोरस 2.37 प्रतिशत, मैग्नेशियम 12.9 प्रतिशत, पोटेशियम 19.7 प्रतिशत, सल्फर 9 प्रतिशत तथा क्लोरिन 3.2 मिलीग्राम होते हैं। इन खनिज लवणों के भण्डार के कारण ही सन्तरा शरीर के रक्त को क्षारमय बनाता है और शरीर के विकारों को निकालता है।
सन्तरे की एक खासियत यह भी है कि यह भोजन को सुगमता से पचाने योग्य बनाता है। क्योंकि इसमें मौजूद स्टार्च सूरज की किरणों से मिलकर, प्रतिक्रिया कर बहुत से तेजी से शर्करा में तब्दील हो जाता है। सन्तरे का सेवन करते ही शरीर को तुरन्त स्फूर्ति और शक्ति मिलती है।
नियमित रूप से सन्तरे को खाने से मौसम की वजह से होने वाला जुकाम, संक्रामक ज्वर और रक्तस्राव की अधिकता से बचा जा सकता है। सन्तरा व्यक्ति को स्वस्थ, चुस्त और दीर्घायु बनाता है। तमाम फलों के रसों में सन्तरे का रस एक ऐसा रस है, जो कि हर आयु में उपयोग किया जा सकता है।
बुखार चाहे किसी भी किस्म का हो, पाचन शक्ति के गंभीर तौर पर बिगड़ने पर भी संतरा लेना बेहद लाभदायक होता है। खासतौर से टाइफाइड, टी.बी. और खसरा में सन्तरा एक औषधि का काम करता है। यह शरीर में संक्रामक रोगों से लड़ने की ताकत पैदा करने के साथ-साथ ठीक होने की प्रक्रिया में भी तेजी लाता है।
संतरे का रस क्षारीय प्रभाव छोड़ता है। फलतः यह रक्त को शुद्ध करता है, पाचक रसों के प्रवाह को बढ़ाता है तथा भूख जगाता है। इसके सेवन से अमाशय स्थित हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं एवं आंतें स्वस्थ होती हैं। लंबे समय से चली आ रही बदहजमी में भी संतरा फायदेमंद साबित होता है। सन्तरा कैल्शियम और विटामिन "सी' का एक अच्छा स्रोत होने के कारण हड्डियों से जुड़ी बीमारियों को शीघ्र ठीक करने में काफी अहम भूमिका निभाता है। इसके रस का नियमित प्रयोग मोटापे पर भी नियन्त्रण रखता है।
नवजात शिशु जिन्हें मॉं का दूध नहीं दिया जा सकता, उनके लिए भी सन्तरे का रस काफी लाभदायक होता है। उम्र के अनुसार हर रोज 15 मि.ली. से 120 मि.ली. तक संतरे का रस लेने से स्कर्वी रोग (एक प्रकार का रोग जिससे शरीर में चकत्ते पड़ जाते हैं) में फायदा होता है और शारीरिक वृद्धि होती है। इसके अलावा शारीरिक रूप से कम विकसित बच्चों को भी सन्तरा देना बहुत लाभदायक रहता है।
सन्तरे के रस में शहद को मिलाकर पीने से हृदय रोगियों को फायदा होता है। सन्तरे में भूख बढ़ाने के साथ-साथ स्मरण शक्ति बढ़ाने और त्वचा में स्निग्धता लाने की भी विशेष क्षमता निहित होती है। लेखक- अनिल कुमार, दिव्य युग अप्रैल 2009 Divya yug April 2009
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
परमात्मा की न्याय व्यवस्था पूर्ण है।
Ved Katha Pravachan - 80 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Vishwa | Divya Manav Mission | Vedas | Hinduism | Hindutva | Ved | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Acharya Dr Sanjay Dev | Divya Yug | Divyayug | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Vedic Culture | Sanatan Dharma | Indore MP India | Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir | Gayatri Mantra | Mantras | Pravachan | Satsang | Arya Rishi Maharshi | Gurukul | Vedic Management System | Hindu Matrimony | Ved Gyan DVD | Hindu Religious Books | Hindi Magazine | Vishwa Hindu | Hindi vishwa | वेद | दिव्य मानव मिशन | दिव्ययुग | दिव्य युग | वैदिक धर्म | दर्शन | संस्कृति | मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आचार्य डॉ. संजय देव