1. क्योंकि मांस खाने से दया, करुणा, सहानुभूति, प्रेम, अपनत्व एवं श्रद्धाभक्ति आदि मानवीय गुणों का अन्त हो जाता है। मानव-दानव बनकर विचरता है, मांसाहारी का पेट एक मुर्दा घर (श्मशान घाट) की तरह होता है।
2. क्योंकि मांस वस्तुतः सड़ी हुई चीज है। जब तक जीव शरीर में रहता है उसमें दुर्गंध नहीं आती। परन्तु जीव के निकलते ही शरीर में एक विचित्र सड़न उत्पन्न होने लगती है। लाश को दो दिन घर में रखें ऐसी दुर्गन्ध आवेगी कि बैठा नहीं जायेगा। कोई मांसाहारी जीवित पशु का मांस नहीं खाता बल्कि मारकर खाता है। प्राण निकलते ही उसमें सड़न होने लगती है, यही रोगों का कारण है। क्योंकि मांस में यूरिक एसीड बहुत बनती है, इससे कई प्रकार के रोग (माइग्रेन, सिरदर्द) उत्पन्न होते हैं।
3. क्योंकि चीनी की मात्रा जितनी चीनी में नहीं उतनी मांस में पाई जाती है। (आरोग्य पत्रिका से)
4. क्योंकि शाकाहार से शक्ति उत्पन्न होती है और मांसाहार से उत्तेजना अर्थात् जैसा अन्न वैसा मन। मांसाहारी पहले तो शक्ति का अनुभव करता है, परन्तु शीघ्र ही थक जाता है। शाकाहारी अपनी शक्ति का प्रयोग धैर्यपूर्वक करता है। विश्व में ऐसा परीक्षण हो चुका है।
5. क्योंकि शराब छुड़ाने का सबसे सरल उपाय है मांस छुड़ा दिया जाए।
6. क्योंकि दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रन्थ वेदों में कहीं मांस खाना नहीं लिखा है। (सत्यार्थ प्रकाश समुल्लास 12 से)
7. क्योंकि सभी मांसाहारी पशु कुत्ते-बिल्ली, शेर आदि जीभ से चाटकर पानी पीते हैं, जबकि शाकाहारी पशु हाथी-घोड़े जो ताकतवर होेते हैं भिन्न प्रकार से घूंटकर पानी पीते हैं। इसी प्रकार मनुष्य जो जीभ से पानी नहीं पीता वह मांसाहारी हो नहीं सकता। अब आप स्वयं विचार करेंगे कि आप जीभ से चाटकर पानी पीते हैं या घूंटकर। हम सभी जानते हैं कि शक्ति का माप हार्स पावर से किया जाती है न कि लॉयन पावर से।
8. क्योंकि भगवान ने हमें शाकाहारी बनाया है। जब हम दाल-रोटी खाकर जीवित रह सकते हैं जिसमें कोई हिंसा नहीं तो किसी निरीह प्राणी की हत्या करके उसके प्रिय जीवन को समाप्त करने की क्या आवश्यकता है? आप कितने निष्ठुर हैं कि बेचारे निरपराध प्राणियों के ही गले काटते हैं। कोई भेड़ियों या शेर का मांस नहीं खाता।
9. आज शाकाहारी आन्दोलन दुनियाभर में लोकप्रिय हो रहा है। अकेले अमेरिका में दस लाख से ज्यादा लोग हर साल मांसयुक्त भोजन छोड़कर शाकाहारी बन रहे हैं, परन्तु हम क्यों पिछड़े हैं?
10. क्योंकि हमारे प्रवर्तकों महात्मा बुद्ध, वर्धमान महावीर, सिख गुरुओं, सन्त कबीर, महर्षि दयानन्द सरस्वती, राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी ने मांसाहार का विरोध किया है।
इस बात में दम नहीं कि शाकाहारी लोग सशक्त, निरोग और बहादुर नहीं हो सकते। (महात्मा गान्धी)
11. क्योंकि मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ माना जाता है परन्तु अपनी निर्दयता के कारण नहीं अपितु अपनी विद्या, बुद्धि, दया और सभ्यता के कारण। क्रूरता मनुष्य का गुण नहीं अपितु अवगुण है।
12. क्योंकि अनुमति देने वाला, अंगों को काटने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला तथा खाने वाला इन आठों को पाप लगता है। (मनु जी महाराज)
13. क्योंकि मांसाहारी भोजन 07 से 12 घण्टे में पचता है जबकि शाकाहारी ढाई से तीन घण्टे में अर्थात् मांसाहारी भोजन शाकाहारी की अपेक्षा देरी से पचता है।
14. कोई बच्चा जन्म से ही मांसाहारी नहीं होता बल्कि मॉं का या गाय का दूध पीता है। बाद में उसे माता-पिता द्वारा लत (चस्का) लगाया जाता है। मेरा आग्रह होगा कि ""लत को मारो लात''
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर स्पष्ट है कि मनुष्य का प्राकृतिक भोजन शाकाहारी है। यदि मनुष्य को केवल मांस ही खाने को दिया जाये तो निश्चित रुप से 3 महिने के अन्दर ही उसकी मृत्यु हो जायेगी। ब्रजेश गुप्ता, दिव्य युग अप्रैल 2009, Divya yug April 2009
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