आचार्य डॉ. संजयदेव जी की सहृदयता का कायल हूँ। उन्हें नमन। पर्यावरण पर यजुर्वेद का सन्देश तथा उसका भाव प्रत्येक अंक में देकर वैदिक सरोकारों का विश्व में योगदान एवं प्रभाव का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत कर अत्यन्त उपकार किया है। आपके पास "हरित वसुन्धरा' की एक प्रति भेज रहा हूँ और आपसे विनम्र अनुरोध है कि डॉ. संजय देव जी के पर्यावरण से सम्बन्धित शोध प्रबन्ध के आलेखों को उक्त पत्रिका में भी प्रेषित करें, ताकि उनका अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार किया जा सके।
"दिव्ययुग' निरन्तर प्राप्त हो रहा है और नवम्बर अंक मेरे सम्मुख है। दीपावली मनाने के अनेक कारण हमारे सामने मौजूद हैं, मगर सबका सार एक ही है "असत्य पर सत्य की विजय।' आश्चर्यजनक रूप से यह पर्व सभी देशों में व सभी सम्प्रदायों में मनाया जाता है जो इसकी सार्वभौमिकता का प्रतीक है। वस्तुतः हमारे सभी पर्व त्यौहारों का वैज्ञानिक महत्व भी स्पष्ट परिलक्षित होता है। हमारे ऋषि-मुनि अपने काल के महान वैज्ञानिक व मनोवैज्ञानिक भी थे। ऋतु परिवर्तन के समय होने वाली व्याधियों से बचने के लिए तथा सामाजिक परिवेश में सत्य, सद्भाव व नैतिकता का प्रचार-प्रसार करने के लिए पंच तत्वों व प्रभु का आभार प्रदर्शित करने एवं उनकी कृपा से अन्न-जल के भण्डार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के उद्देश्य से पर्वों की स्थापना की गई। यह अलग विषय है कि हम उनका गूढ़ अर्थ नहीं समझकर बाह्य रूप से लकीरों को पीट रहे हैं और जर्मनी, जापान जैसे देश वेदों का अध्ययन-अध्यापन कर उनके रहस्यों को जानने और उस पर अमल करने की राह पर अग्रसर हैं। दिव्ययुग के इस अंक में "लक्ष्मी की सही पूजा', 'शारदीय नवसस्येष्टि दीपावली' ऐसे ही आलेख हैं जो हमें दीपावली का सही एवं सारगर्भित सन्देश प्रदान करते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का चरित्र समस्त तर्क-कुतर्क से ऊपर है। श्रीराम कारण भी हैं, कर्ता भी, प्रेरणा भी हैं और प्रेरक भी। श्री रघुनाथ प्रसाद पाठक जी द्वारा श्री वाल्मिकी रामायण के माध्यम से जिन प्रश्नों व समाधान का सन्दर्भ दिया है, यह मेरे लिए जानकारी प्रदान करने वाला है, मैंने कभी इस विषय में पढ़ना या जानना भी नहीं चाहा था, मगर आज जिज्ञासा पैदा हो गई।
महोदय, अगस्त अंक में हेमचन्द्र बहुगुणा "अज्ञेय' जी का "हम इण्डियन नहीं भारतीय हैं' तथा इण्डियन की परिभाषा पढ़ी। यह हमारे सोचने का विषय है कि हम भारतीय बनें या इण्डियन। -ए. कीर्तिवर्द्धन, मुजफ्फर नगर (उ.प्र.)
संस्कार, सामाजिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों से ओतप्रोत दिव्ययुग पत्रिका का नवम्बर 2012 का प्रेरणादायी अंक प्राप्त हुआ। आपके शैक्षिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक एवं विश्वव्यापी दृष्टिकोण तथा आपकी पत्रकारिता धर्म की श्रेष्ठ भावना की जितनी प्रशंसा की जाये वह कम है।
मानव जीवन तथा मानव समाज के आज के प्रश्न अर्थात् समस्याएं क्या हैं? इन प्रश्नों के उत्पन्न होने के कारण क्या हैं तथा उनके उत्तर क्या हैं? अपने युग के प्रश्नों के उत्तर देने की क्षमता से युक्त आज की शिक्षा होनी चाहिए। शिक्षा की उदासीनता तथा उद्देश्यहीनता के कारण ही मानव जीवन तथा समाज में बलात्कार, हत्या, हिंसा, आतंकवाद, युद्ध, कानूनविहीनता, निराशा तथा जाति-धर्म की अज्ञानता के रूप में प्रश्न उत्पन्न हुए हैं। बच्चों को बाल्यावस्था से ही शिक्षा को उद्देश्यपूर्ण बनाकर आज के सभी प्रश्नों के उत्तर देना चाहिए। जगदीश गान्धी,लखनऊ (उ.प्र.)
दिव्य युग अप्रैल 2009 Divya yug April 2009
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