बात थोड़े ही समय के पूर्व की है, जब हमारे पड़ोसी देश चीन ने अपनी विचारधारा के अनुरूप अर्थात् साम्यवादी सिद्धान्तों के आधार पर राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण हेतु "सांस्कृतिक क्रान्ति' का राष्ट्रव्यापी आन्दोलन कर अपने आगामी कल को संजोने-संवारने का प्रयास किया था। परिणामतः उसे बड़े अंश में सफलता प्राप्तु हई थी और वह एकरूपता प्राप्त करने में सफल रहा था।
आज हमारे देश में राष्ट्रीय संस्कृति पर प्रश्न चिह्न दिखाई देता है, जिसके दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। राष्ट्रव्यापी सुदृढ़ एकता का अभाव, चारों ओर क्षेत्रीयता की भावना, क्षेत्रीय स्वार्थ में डूबे नेतागण, भाषायी विवाद, राष्ट्रभाषा के प्रति निष्ठा का अभाव, धर्मनिरपेक्षता के साये में धर्मान्धता का ताण्डव, साम्प्रदायिक वैमनस्य, मानवीय भावनाओं का जहरीकरण और इन सबके चलते हृदयहीन मिलावटियों का घोर पतन, अधिकार सम्पन्न लोगों द्वारा किये जाने वाले भ्रष्ट आचरण, रक्षातन्त्र के गोपनीय सूत्रों की सौदागिरी आदि कहॉं तक गिनाये जाएं, हर नागरिक इस स्थिति का प्रत्यक्षदर्शी, भुक्तभोगी और साक्षी है। क्षेत्रीय भाषा, क्षेत्रीय संस्कृति, क्षेत्रीय सभ्यता व आचरण आदि से दूषित मन-मस्तिष्क का ईर्ष्या, द्वेष, कट्टरता, घृणा का जहरीकरण हमें राष्ट्रीय आधार पर सोचने और राष्ट्रीय-जन को एकता के सूत्र में बांधने तथा राष्ट्रहित के पक्ष में सोचने व कुछ करने नहीं देता। ऐसी स्थिति में प्रश्न उपस्थित होता है कि भारत की सार्वभौम संस्कृति का रूप क्या है? यह एक गम्भीर विचारणीय प्रश्न है, जिस पर भारत के हर नागरिक को गम्भीरता से सोचने-विचारने और सर्वमान्य निर्णय लेने की आवश्यकता है। इस प्रश्न के समाधान हेतु भारत के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक इतिवृत्त की सहायता लेना उचित प्रतीत होता है। इस प्रश्न के समाधान की खोज महाभारत काल की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के अध्ययन से प्रारम्भ करते हैं। उस काल में वैदिक ज्ञान-विज्ञान सम्मत सांस्कृतिक पृष्ठभूमि लगभग विस्मृत हो चुकी थी। उसके स्थान पर व्यक्तिपरक सम्प्रदाय प्रचलित हो गए थे। यथा भाग्यवाद, योनिवाद, सांख्यदर्शन आधारित सांख्यवाद आदि। इनमें से किसी वाद से अर्जुन प्रभावित होकर अपने स्वधर्म (क्षात्रधर्म) को पापकर्म मान बैठा था। वह कहता है, ""हम तो ज्ञानी हैं। फिर हमें युद्ध का यह पाप कर्म नहीं करना चाहिए'' आदि। श्रीकृष्ण कहते हैं- "अर्जुन! मैं तुझे विज्ञान सहित ज्ञान कहूँगा, जिसे जानने के पश्चात् कुछ भी जानना शेष नहीं रहेगा।'' और उन्होंने सांख्यदर्शन को परिष्कृत कर सांख्ययोग की बात कही। इस चर्चा में "विज्ञान सहित ज्ञान' का संकेत किस ओर था, इसे जानना आवश्यक है। यह संकेत वैदिक ज्ञान की ओर ही था। क्योंकि "वेदोऽखिलो धर्ममूलम्'- यही भारतीय संस्कृति का मूल आधार है। इसी का उस समय लोप हो गया था। परिणामतः अनेक मतवाद प्रचलित हो गए थे। जो स्थिति उस समय थी, वह आज भी है।
अथर्ववेद के मातृभूमि सूक्त में पृथ्वीधारक सात गुण आये हैं जो इस प्रकार हैं- सत्य, सरलता, तेजस्विता, दृढ़संकल्प, तितिक्षा, ज्ञान और यज्ञ (त्याग)। राष्ट्रभक्त में ये गुण होना परम आवश्यक है। श्रीराम तथा उनके अन्य भाइयों में ये सब गुण थे, जिसके परिणामस्वरूप रामराज्य सफल हुआ। इसमें कहा गया है- माता भूमि पुत्रोऽहं पृथिव्याः।। (अथर्ववेद 12.1.12) भूमि मेरी माता है और मैं उस माता का पुत्र हूँ। इन गुणों को धारण करने से धारक का गौरव बढ़ता है। यह ज्ञान आचरण में आता है, तभी राष्ट्रभक्त का चरित्र बनता है। इस सूक्त में राष्ट्रीय एकता का जैसा चित्रण है, वैसा अन्य जगह पाना कठिन है। इसमें संस्कृति के अभ्युदय और उत्थान की विवेचना है। इस सन्दर्भ में इसी सूक्त के पैंतालीसवें मन्त्र में कहा गया है- "अनेक भाषाएँ बोलने वाले नाना धर्मों के लोगों को यह मातृभूमि एक घर के सदस्यों के समान निवास देती है।'' इस आधार पर राष्ट्रीय एकता होनी चाहिए। इस आधार पर राष्ट्रीय चरित्र गठित होना चाहिए।
रामराज्य के चार स्तम्भ थे। राम के रूप में ज्ञान, धर्म के रूप में भरत, भक्ति के प्रतिरूप थे लक्ष्मण और वैराग्य भाव के प्रतीक थे शत्रुघ्न! भारतीय संस्कृति के ये ही चार सुदृढ़ आधार हैं। चारों वेदों की ये ही चार प्रेरणाएं हैं। भारतीय संस्कृति का मूल आधार वेद ही है। इसी की नींव पर विश्ववरेण्य भारतीय संस्कृति का अस्तित्व है। वेद हैं सब धर्मों का मूल, अन्य धर्म हैं वेद ही के डाली-पत्ते-फूल। इसी आधार पर राष्ट्रस्तरीय सांस्कृतिक क्रान्ति को मूर्तरूप दिया जाना उचित प्रतीत होता हैं। आइए! हम सब मिलकर इस आधार पर सांस्कृतिक क्रान्ति का श्रीगणेश करें। चक्रमध्य में ज्यों आरे हैं, मिलकर करें क्रान्ति अर्चन। -आचार्य डॉ.संजयदेव
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
चारों वेदों के अलग अलग नाम क्यों
Ved Katha Pravachan - 58 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev