दिव्ययुग ने इस प्रश्न के आधार पर कि "भारतीय मुस्लिमों से क्या-क्या अपेक्षाएँ की जा सकती है?' के उत्तर पाने के लिए कतिपय प्रबुद्धजनों से सम्पर्क किया। जो उत्तर प्राप्त हुए वे अत्यन्त उत्साहवर्द्धक एवं दिशादर्शक हो सकते हैं।
अधिकतर लोगों की यह मान्यता थी कि आतंकी घटनाओें के द्वारा होेने वाली मौतों के भीषण ताण्डव देखकर भी भारतीय मुसलमान कोई अनुकूल प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करते देखे जाते हैं। इससे यह आभास होता है कि उनकी आतंकियों के प्रति हमदर्दी है। परन्तु एक अन्य व्यक्ति ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि ऐसा नहीं है। प्रबुद्ध मुस्लिम वर्ग आतंकवादी हरकतों के खिलाफ है। अभी-अभी मुम्बई में मारे गए आतंकवादियों की लाशों को मुस्लिमों के वरिष्ठ वर्ग ने कब्रिस्तान में दफनाने से मना कर दिया था। आम मुसलमान आतंकवादियों द्वारा की जा रही निरपराध लोगों की हत्याओं के विरूद्ध हैं। इन बातों को सुनकर वहीं खड़े एक वृद्ध व्यक्ति ने अचानक बोलते हुए कहा- "अगर ऐसा है तो उन्हें खुलकर सामने आना चाहिए। वे आतंकियों को पकड़ाने में भी पुलिस की सहायता कर सकते हैं।'' इसी बात को आगे बढ़ाते हुए एक सम्भ्रान्त व्यक्ति जो किसी महाविद्याल में प्राध्यापक थे, बोले, "आप बिल्कुल सही बोल रहे हैं, परन्तु इसके लिए एक सशक्त एवं प्रभावशाली वैचारिक क्रान्ति अपेक्षित है। उस क्रान्ति के द्वारा वर्ग विशेष में करुणा, दया, प्रेम, सहानुभूति के मानवोचित भाव जगाये जाएं। कोई भी धर्म निरपराध पुरुष-स्त्री व बच्चों की हत्या को जायज नहीं ठहराता है। उसी वर्ग के एक महापुरुष का कथन है-
दर्दे दिल के वास्ते, पैदा किया इन्सान को। वर्ना ताअत के लिए बहुत थे कर्रोबियॉं।।
विचार करने की आवश्यकता है कि वे तथा हम सभी इसी भारतभूमि की उपज हैं। इस भूमि का हम सब पर ऋण है। इसी मिट्टी की उपज है भारतीय संस्कृति, जिसके रसीले फलों का आनन्द संदर्भित वर्ग भी लेता रहा है। उसके विशाल हृदय की उदारता का ही परिणाम है कि हम मिलजुलकर जीवन जीते आ रहे हैं। इसके साक्षी हैं उसी वर्ग के महापुरुष, जिनके प्रति हम सभी हृदय की गहराई से श्रद्धा करते हैं। रसखान पक्षी बनकर ब्रज भूमि के कदम्ब की डाल पर बसेरा करना चाहते हैं। नबी का कथन है- "मधुपुरी मधु सों भरी, नबी तजियत नाहिं।' कबीर का उपदेश है- "कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर, जे पर पीर न जानई,सो काफिर बे पीर।'
बस आवश्यकता है उस क्रान्ति की, जिसकी पावन गंगा में स्नान कर हम सब एक-दूसरे के गले मिलकर इतने ऊंचे स्वर में आतंकियों को ललकारें कि सारी मानवजाति अपनी शुभकामना और आशीर्वाद से झोली भर दे। शिवरात्रि का भी यही सन्देश है कि सब देशवासी आपसी भेदभावों को भुलाकर सबका कल्याण करने वाले शिवपथ का अनुसरण करें। - जगदीश दुर्गेश जोशी
दिव्ययुग फरवरी 2009, divyayug february 2009
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