क्या अमेरिका अपने देश का नाम बदलकर "अस्म्येरिया' और इंग्लैण्ड अपने देश का नाम "अनिष्टगण' रखना चाहेगा? जिसका अर्थ है स्वार्थवश दूसरों को गुलाम बनाने एवं उनको लूटने अथवा हानि पहुंचाने वाले लोग। यदि नहीं, तो फिर आर्यावर्त व भारत जिसका अर्थ है सम्पूर्ण धरा को मानवता, सभ्यता तथा आध्यात्मिकता का प्रकाश पहुंचाने वाले अहिंसावादी, सत्यवादी, निराकार ईश्वरवादी व विज्ञानवादी लोगों का देश। ऐसा गरिमामय नाम बदलकर उसके स्थान पर निन्दित नाम इण्डिया हम क्यों चाहेंगे? ध्यान रहे कि अंग्रेजों या अमेरिकनों की सांझी "आक्सफोर्ड डिक्शनरी' शब्दकोष में "इण्डियन' शब्द का अर्थ ओफैन्सिव (क्रिमिनल) गुनाहगार या गुण्डा-लुटेरा लिखा है। अतः इण्डिया शब्द का अर्थ हुआ गुण्डे व लुटेरे गुनहगार लोगों का देश। अंग्रेजों ने जब हमारे वेदधर्म से च्युत हो जाने एवं जातिपांत, छुआछूत, बिना खोज विश्वास, पाखण्ड, भाग्यवाद या लोभवाद से घृणायुक्त होकर गिरने से राज्य किया, तो वे भारतीयों को बहुत निन्दा की दृष्टि से देखते थे। प्रायः आज भी ईसाई विदेशी गोरे आस्ट्रेलिया, अमेरिका या इंग्लैण्ड आदि देशों में भारतीयोें को हीन दृष्टि से देखते हैं तथा उन्हें गाली देते समय "ब्लडी इण्डियन' कहते हैं। गत दिनों अनेक भारतीयों को महान बनता देखकर ईष्या से उनकी हत्या कर रहे हैं। इनमें भारत मॉं रूपी महान प्रकाश पुञ्ज देश के अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी हैं।
भारत में अपने राज्यकाल में भी गोरे भारतीयों को हीनदृष्टि से देखते व निन्दा का पात्र समझते थे। उन्हें अपने ही देश में अनेक नगरों में बने "मालरोड़' नाम की सड़कों पर चलने की आज्ञा न देते थे। अपने होटलों और विशेष रेलयानों पर चढ़ने नहीं देते थे। भारतीयों के लिए वहॉं बोर्ड (नामपट्ट) लगा रखते थे कि इन स्थानों पर भारतीय असभ्यों व कुत्तों का प्रवेश निषेध है। कितने शर्म की बात है कि आज इस तथाकथित स्वतन्त्रता के 63 वर्ष पश्चात् भी हमें व हमारे देश को निन्दित नाम "इण्डिया' व इण्डियन से ही पुकारा जा रहा है। क्या हम अब भी गुलाम हैं? क्या हम पर अब भी विदेशी ईसाई लोगों का शासन है? आज भी इंग्लैण्ड, अमेरिका "घुरकी' मारता है। देश में राम जीवन स्मरण' (विजयादशमी) काल में कॉमनवेल्थ खेल होते हैंएवं भारत के नेता बार-बार अपमानित होने हेतु इंग्लैण्ड, अमेरिका चल देते हैं।
अब भी हमारे देश में गोहत्या क्यों? गोरों की अंग्रेजी क्यों? गोरों का पहनावा, अर्धनग्न लिबास, काले गाउन, अंग्रेजियत, जार्ज पंचम का स्तुति गीत "जन-गण-मन' क्यों? मुझे भारत सरकार के आई.पी.एस.आई.जी. ने विश्वस्त सूत्रों से सूचना दी कि जहॉं गोरों के प्रतिनिधि अध्यक्ष से पार्टी मन्त्री मिलने जाते हैं, वहॉं उस कक्ष में दूसरी अन्य कुर्सी नहीं होती। विश्वास न हो तो किसी मन्त्री से पूछकर देखें। आज भी भारतीयों का अपमान। कारण हमारी फूट व आर्यधर्म वेद से दूर जाना। क्या गोरे अध्यक्ष से "इण्डियन' नाम बदलने की आशा की जा सकती है? क्या स्वयं गोमांस खाने वालों से गोरक्षा की व इंग्लिशप्रेमी से संस्कृत को महत्व देने की आशा की जा सकती है? क्या अपने ही परिवार में विवाह करने वाले इंग्लैण्ड व अमेरिका के इशारों पर सरकार चलाने वालों से गोत्र की पवित्रता की आशा की जा सकती है। क्या स्वयं रोमन कैथोलिक ईसाई होने वाले व दुनिया को धर्म परिवर्तन कर बदलने का अभियान चलाने वाले गुरु इटेलवी पोप के पुजारी से बलात् धर्मपरिवर्तन रोकने की आशा की जा सकती है? इसका मुख्य कारण धन, पद, मान का लोभ करके इन पार्टियों में घुसे देशद्रोही नेता हैं, जिन्होंने गत 65 वर्षों से अपने परिवार को सुख, नाम व धन को तो बचाया, परन्तु देश की आधारशिला गोमाता, संस्कृति, संस्कृत तथा सामाजिक आधारशिला इतिहास को नहीं बचाया। अब भी लिखा जा रहा है कि आर्य लोग बाहर से आये, जबकि ईरान में कक्षा पांच की पुस्तक में लिखा है कि आर्य भारत से आये। जिस नेहरू परिवार का राज है, वह अपनी आत्मकथा में अपने को व्यवहार और आचरण में अंग्रेज बताता है।
विशेष- देश को कुछ अपमान से बचाने के लिए यदि कुछ सड़कों व बम्बई, कलकत्ता, मद्रास या बंगलौर आदि नगरों के नामों को बदला जा सकता है, तो फिर महा अपमानकारी "इण्डिया' को क्यों नहीं, जिससे कि प्रत्येक भारतीय का अपमान हो रहा है? क्या यदि सरकार उसे कॉमनवेल्थ नीति से नहीं बदलेगी, तो हम यूं ही अपमानित होते रहेंगे? क्रान्तिगुरु गोविन्दसिंह, महाराणा प्रताप, शिवा, ऋषि दयानन्द, रानी झांसी के अनुयायियो! जागो! प्रत्येक स्थान पर "इण्डिया' नाम का विरोध करो। स्वयं इस नाम का प्रयोग मत करो। कोई लिखे भी, तो उस पर काटा लगा दो, परन्तु सोच समझकर। देव दयानन्द का उपदेश है कि "यथा प्रजा तथा राजा' इसे आन्दोलन द्वारा सार्थक करके दिखाओ।
पुनश्च- माउण्ट ऐवरेष्ट का सच्चा प्राचीन नाम सगरमाथा (स्वर्गमाथा है।)
आचार्य आर्य नरेश, दिव्ययुग जनवरी 2013, Divyayug January 2013
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