भारत विश्व का प्राचीनतम देश है। भारत की कालगणना 1960583113 है। इतने लम्बे समय में अंग्रेजों का भारत पर शासन का समय लगभग 150 वर्षों का है। इन 150 वर्षों के मुक्ति संघर्ष की कहानी ही बताई जाती है। वह भी इस प्रकार से जैसे दो अरब वर्षों से यह देश परतन्त्र ही था और 15 अगस्त 1947 को इसने स्वाधीनता प्राप्त की। हमारा अभिप्राय यह कतई नहीं है कि अंग्रेजों के मुक्ति संघर्ष का कोई महत्व नहीं और इस मुक्ति के महान योद्धाओं को याद न किया जाए। इस मुक्ति संग्राम के बलिदानियों का ऋण हम सात जन्मों में भी नहीं उतार सकते। उनका स्मरण भारत राष्ट्र के लिए नितान्त आवश्यक है। लेकिन हमारा कहना यह है कि राष्ट्र के नागरिकों को अंग्रेज मुक्ति संग्राम के योद्धाओं के साथ-साथ राष्ट्र के उन महान आदर्श राजाओं और विद्वानों को भी इस दिन स्मरण करना चाहिए, जिनके कारण भारत राष्ट्र विश्वगुरु रहा, जिन्होंने मानवमात्र के सुख के लिए आयुर्वेद, धनुर्वेद, नाट्यशास्त्र, वेद, उपनिषद, दर्शनों की रचना की। जो राजा यह दावा कर सके कि यह देश संसार का पूर्वज है। धन-धान्य, ज्ञान-विज्ञान और शारीरिक शक्ति और चरित्र में सिरमौर है। पृथ्वी के सभी लोग इस देश के नागरिकों से सब प्रकार की शिक्षा ग्रहण करें। जिन्होंने यह दावा भी किया और घोषणा की कि मेरे राज्य में कोई अशिक्षित, अपराधी, चोर, कर्त्तव्यहीन, नशेड़ी, दुश्चरित्र नहीं है। सभी प्रातः-सायं यज्ञ, भजन करते हुए मानवता व राष्ट्र के प्रहरी रहते हुए आनन्दित हैं।
भारत के पूरे इतिहास की झलक दिखाने वाला यह कार्यक्रम तभी सार्थक बन सकता है, जब स्वाधीनता और गणतन्त्र दिवसों को समाहित करके हम "राष्ट्र-दिवस' के रूप में इसे मनाएं। इनसे भी उत्तम दिन यदि अन्य कोई माना जाए तो उस दिन यह "राष्ट्र दिवस' मनाया जा सकता है। ऐसा सर्वोत्कृष्ट दिवस चैत्र शुक्ला प्रतिपदा हो सकता है या वैशाख का कोई दिन। वैशाख में फसलों का काम पूर्ण हो जाता है। अन्न खेत खलिहान से घर पर आ जाता है। प्राचीन समय से भातीय इतिहास में चैत्र शुक्ला प्रतिपदा का विशेष महत्व रहा है। विशेष कार्य चैत्र प्रतिपदा से ही आरम्भ किए जाए थे। नए राजा का राज्याभिषेक प्रायः चैत्र प्रतिपदा को ही होता था। महाराज दशरथ ने भी दीपावली मनाई थी। रावण चैत्र शुक्ल चतुर्दशी को मारा गया था। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि- चैत्र शुक्ल चौदस जब आई। मर्यो दशानन जग दुखदाई। लेकिन "रावण-वध' को "दशहरा' के साथ जोड़ा गया है। वर्षाऋतु के बाद इस दिन सेनाएं युद्धाभ्यास के बाद दशों दिशाओं में सुरक्षा कार्य संभालती थी। दशहरा से पूर्व नौ दिन तक दशों इन्द्रियों को जीतने के लिए नवरात्रों में उपवास, व्रत, ध्यान, यज्ञ, पूजन, भजन-कीर्तन किए जाते हैं, दसवे दिन दशहरा "रावण वध' के रूप में मनाया जाता है अर्थात् दशों इन्द्रियों की बुराई हरण के बाद आदर्श राजा राम को स्मरण करने के लिए नवरात्रों में रामकथा रामलीला के रूप में प्रचलित हुई। यह शोध का विषय है। लेकिन हमें स्वतन्त्रता व गणतन्त्र दिवसों को समाहित करते हुए "राष्ट्र-दिवस' इस समय पर प्रतिवर्ष आयोजित करना चाहिए। छोटे से देश बहरीन में स्वतन्त्रता दिवस के स्थान पर "राष्ट्र दिवस' मनाया जाता है।
बहुत से प्रतिष्ठित व्यक्ति यह मानते हैं कि भारत को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं मिली। देश को 'भारत स्वतन्त्रता अधिनियम 1947' के अनुसार डोमिनीयन स्टेट के रूप में कुछ क्षेत्रों में आजादी दी गई है। जैसे संसद व विधानसभाओं का निर्माण, चुनावों में मत का अधिकार, वायसराय की जगह राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के पद सृजित करना आदि। संविधान के प्रायः सभी नियम 1932 के ब्रिटिश कानूनों के रूप में ज्यों का त्यों रखे गए हैं जो कि भारतीय जनता के लिए लगातार अभिशाप बने हुए हैं। जनता को वकील लूट रहे हैं। 40-40 वर्षों में निर्णय आते हैं लेकिन न्याय फिर भी नहीं मिलता। भाषा, शिक्षा, संस्कृति, खान-पान वेश-भूषा, सबके सब राष्ट्रविरोधी हैं। भारत की प्रत्येक नीति, नियम, व्यवहार, शिक्षा, संस्कृति, खान-पान धर्मप्रेरित हैं। धर्म यहॉं सच्चाई, विश्वसनीयता, प्रकृति, जीव-जन्तु व मानव में सर्वहितकारी सहयोग का नाम है। धर्मशाला, धर्मार्थ औषधालय, धर्मकांटा शब्द इसके ज्वलन्त प्रमाण है।
आज के धर्मनिरपेक्ष कहे जाने वाले व्यक्ति तो पूछेंगे कि किस धर्म का कांटा है, किस धर्म की शाला या औषधालय है? उन पढे लिखे अनपढों को तो पता ही नहीं कि यह किस चिड़िया का नाम है। हमारे यहॉं बाह्यचिन्हों को 'न लिंगं धर्मकारणम्' कहकर नकारा गया है। लेकिन आज पूजा पद्धतियों को धर्म माना जा रहा है। ""हम जैसे व्यवहार की दूसरों से अपेक्षा करते हैं वैसा ही दूसरों से हम व्यवहार करें, इसे धर्म माना गया है।'' धैर्य, क्षमाशीलता, सत्य, क्रोध न करना, अपनी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण रखना, दूसरों की वस्तु के प्रति न ललचाना, न ही बिना पूछे लेना, सफाई रखना (शरीर, वस्त्र, घर व पर्यावरण), मन आदि इन्द्रियों को वश में रखना, बुद्धिपूर्वक कार्य करना, विद्याप्राप्ति आदि सद्गुणों को धर्म कहा गया है। इस गणतन्त्र की सबसे बड़ी बुराई "धर्मनिरपेक्षता' है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यह गणतन्त्र ऊपर वर्णित धर्म को नहीं मानता। भला इस धर्म के मार्ग को छोड़कर गणतन्त्र कैसे चलेगा? "धर्मनिरपेक्षता' शब्द का दूसरा अभिप्राय- "मतनिरपेक्ष' शासन से है अर्थात् कोई किसी मत-पन्थ में बाधक न बने, न ही शासन को किसी मत-पन्थ से कुछ लेना देना है। कोई कुछ भी मत पन्थ माने या नया चलाए। शासन न सहयोग करेगा, न बाधक बनेगा। भला ऐसा क्यों? जिस मत-पन्थ से प्रजा में अलगाववाद, अज्ञानता बढ़े उसे क्यों पनपने दिया जाए? इस गणतन्त्र को स्थापित करने में बड़ा भारी छल, मूर्खता या सतालोलुपता हुई है। जैसे-तैसे सत्ता पाकर इसे विसंगतियों के रहते हुए भी गणतन्त्र घोषित कर दिया गया है। जब कांग्रेस और गान्धी जी "द्विराष्ट्र-सिद्धान्त' को नहीं मानते थे तो उन्होंने देश का बंटवारा स्वीकार क्यों किया? भले ही गान्धी जी ने बंटवारे के बारे में हुई बैठक में बंटवारे के प्रति असहमति व्यक्त की, लेकिन बंटवारे को रोकने के लिए कुछ भी दबाव नहीं बनाया। यदि वे बंटवारा नहीं चाहते तो बंटवारा नहीं हो सकता था। नहेरू-पटेल की क्या हैसियत कि वे गान्धी जी के सिर पर खेलते। यह तो नेहरू को सत्ता पर बैठाने की सुनियोजित तरकीब प्रतीत होती है। सारे प्रकरण को देखते हुए स्पष्ट दिखाई पड़ता है कि गान्धी जी केवल यह दिखाना चाहते थे कि मैं बंटवारे के लिए सहमत नहीं हूँ। परन्तु अन्दर से वे चाहते थे कि भले ही बंटवारा हो जाए, लेकिन प्रधानमन्त्री नेहरू बन जाए बस।
स्पष्ट है कि सब गान्धी जी की सहमति से हो रहा था। इसलिए यह बहाना बनाकर कि '"मेरी कोई नहीं सुनता'' जिनका कहना था कि '"पाकिस्तान मेरी लाश पर ही बन सकता है'' वह जिन्दा ही रहे। हॉं! लेकिन वे "जिन्दा लाश' ही थे। लेकिन दूसरी ओर दस लाख लोगों की सचमुच लाशें बिछ गई और वह महात्मा "खूनी घाटी' बन गया। नेहरू के जिम्मे देश को छोड़ उन्हें गद्दी पर बैठाकर अपना लक्ष्य पूरा कर चल दिए। जब गान्धी जी ने ही "स्वतन्त्रता दिवस' नहीं मनाया तो देश क्यों मना रहा है? पटेल और अम्बेडकर जैसे लोगों ने कहा कि पूरी आबादी की अदला-बदली सुरक्षित रूप में की जाए। लेकिन इस पर भी अंहिसा के पुजारी ने कोई ध्यान नहीं दिया। जो मुसलमान भाई भारत में रह गए थे वे हालांकि कट्टरपंथी नहीं थे, लेकिन इनकी प्रिय और स्वतन्त्रता दिलाने का दावा करने वाली इनकी पार्टी की नीतियॉं पूर्ववत् जारी रही, जिसके परिणामस्वरूप देश में कट्टरपन्थी तत्व मजबूत होते जा रहे हैं। देश को फिर विभाजन के किनारे खड़ा कर दिया गया है, लेकिन ये राजनेता आज भी राष्ट्रघातक नीतियों पर ही चल रहे हैं।
देश का प्रत्येक समझदार नागरिक इनसे पूछ रहा है कि क्यों हमें स्वतन्त्रता व गणतन्त्र के नाम पर आज तक बहकाया जा रहा है? जाति और धर्म के नाम पर क्यों सुविधाएं बॉंटकर लोगों को बहकाया जा रहा है। क्यों नहीं सबके लिए समान शिक्षा, रोजगार व न्याय की प्रणाली विकसित की जाती? क्यों विदेशी कम्पनियों को भारी छूट देकर देश में रोजगार के अवसर समाप्त किए जा रहे हैं? विदेशी विश्वविद्यालयों, वकीलों और स्कूलों को क्यों स्थापित किया जा रहा है? भारतीय भाषाओं, शिक्षा और संस्कृति को क्यों नष्ट किया जा रहा है? 65 वर्षों में भी तुम इस देश को एक दृढ़ राष्ट्र के रूप में क्यों नहीं खड़ा कर सके? तुम देश के सबसे बड़े अपराधी हो। ये अपराधी देश के टुकड़े-टुकरे कर दें इससे पहले ही हमें तुरन्त खड़ा होना चाहिए। झूठे स्वतन्त्रता व गणतन्त्र दिवसों को मनाना छोड़कर देश को एक "दृढ़ राष्ट्र' के रूप में खड़ा करने के लिए "राष्ट्र-दिवस' मनाने की परम्परा डालने का "महायत्न' करने के साथ "राष्ट्र निर्माण' के लिए सही उपायों को अपनाने के लिए जन-जन का जागरण करना चाहिए। कोई भी विवेकशील व राष्ट्रभक्त नागरिक यह न सोचे कि मैं अकेला क्या कर सकता हूँ? आप अपने अन्दर झांको, अपने कर्त्तव्य पहचानो, कमियों को कम करते हुए समय का सदुपयोग करो। राष्ट्रपुत्रो! राष्ट्र तुम्हें संकट की घड़ी में पुकार रहा है, इसे बचा लो। भारत मॉं और मानवता को कपूतों ने घायल कर दिया है। इसका उपचार करो, वरना तुम्हारा अपराध भी इतिहास में लिखा जाएगा। विश्व के देश कहेंगे कि भारत का नागरिक गिर चुका था। वह स्वार्थी, सुविधाभोगी, कायर और किंकर्तव्यविमूढ़ बन गया था, इसलिए भारत के टुकड़े हो गए। तुम कहॉं जाओगे? चारों ओर से घेरकर तुम्हें ताश खेलते हुए, टी.वी. देखते हुए, गप्प हांकते हुए मार दिया जाएगा। तुम्हारी नादानी ने ही पूर्व और पश्चिम में, उत्तर और दक्षिण में तथा देश के अन्दर भी शत्रु बढ़ा लिए हैं। दिव्ययुग जनवरी 2013, Divyayug January 2013
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Ved Katha Pravachan - 42 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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