चरित्रहीनता, भ्रष्टाचार, भ्रूण-हत्याएँ, पुत्रों द्वारा माता-पिता की हत्या, चोरी, अनेक दिशाओं से बढ़ते अत्याचार और पापाचार की भीषण आग में जल रहे मानव समाज को बचाने के उद्देश्य से आयोजित एक परिसंवाद। प्रतिनिधियों में उपस्थित थे क, ख, ग, घ, च, छ, ज आदि मत-पन्थों के साथ बहुत बड़ा जन समुदाय, जिसमें युवाओं से लेकर वृद्ध और महिलाएँ उपस्थित थीं। संयोजक महोदय ने गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई आदि के साथ भ्रष्टाचार, बढ़ती हत्याएँ, भ्रूण-हत्याएँ, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार तथा आतंकवाद के माध्यम से निरपराध स्त्री-बच्चों की बढ़ रही हत्याओं पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उपस्थित प्रतिनिधियों से इन समस्याओं के निवारण के उपाय खोजने का अनुरोध किया। सभी पन्थ-प्रतिनिधियों ने वर्तमान-समस्या का हल अपनी-अपनी मान्यताओं के आधार पर सिद्ध करने का प्रयास किया। सभी का आग्रह था कि समाज-सुधार तभी संभव है, जब समाज ईश्वरीय आदेश को मानकर उसका अनुसरण करे।
श्रोताओं की समस्या यह थी कि वे किस ईश्वर के आदेश का पालन करें, जबकि सभी मत-पन्थों वाले अपने पन्थ-आदेशों को ईश्वरीय आदेश कह रहे हैं। श्रोताओं में से एक व्यक्ति खड़ा होकर बोला- "श्रीमान् ! हमें किस ईश्वर की शिक्षा का अनुसरण करना होगा?'' मंच पर बैठे व्यक्ति एक-दूसरे का मुंह देखने लगे और आपस में कुछ कहते हुए झगड़ने लगे। झगड़ा बढ़ता गया, अन्त में चिल्लाते हुए सभी वहॉं से प्रस्थान कर गए। श्रोतागण एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। इन पंक्तियों का लेखक भी पीछे बैठा यह सब कुछ देख-सुन रहा था। एक समाचार लेखक श्री रमाभाई को घेरकर कुछ लोग उनसे बातें करने लगे। एक व्यक्ति बोला "भाई साहब, आप ही बताइए, क्या किया जाय?'' वे बोले ""हॉं भाई, अब तो समस्या बड़ी जटिल बन गई है। यह समस्या तो सारे देशवासियों के सामने है। ऐसा लगता है, ईश्वर का बंटवारा हो गया है। उसने अनेक रूप धारण कर लिए हैं। भोले मनुष्य क्या करें। जिसने जो सुना, उसी को ईश्वरीय आदेश मानकर चलने लगा।" एक व्यक्ति बात काटकर बोला, "भाई साहब ! सॉंई बाबा का कथन है कि सबका मालिक एक है, तो यह सबका मालिक कौन है?'' रमा भाई बोले, "तुम बिलकुल सच कह रहे हो। इन तमाम ईश्वरों में एक ईश्वर की खोज आवश्यक है। यह मेरे बस की बात नहीं है। देखो, उस सामने खड़े व्यक्ति को। उन्हें में जानता हूँ। वे कॉलेज में प्राध्यापक हैं। आइये, उनसे बात करते हैं।" वे उस ओर चल पड़े। मैं भी पीछे-पीछे चला गया। उनके समीप पहुँचते ही रमाभाई ने "नमस्ते' कहा और बोले, "भाई साहब आपने भी सब बाते सुनी और सब कुछ देखा है। ये सभी आपसे इस दृश्य की प्रतिक्रिया जानना चाहते हैं, कृपया, बतलाइए।" वे जोर से हंसे और मुस्कुराते हुए बोले, "मंच का दृश्य देखकर मुझे ऐसा लगा कि सभी ईश्वर हैं और सभी ईश्वर आपस में लड़ रहे हैं और हम सब तमाशाबीन बनकर उन्हें देख रहे हैं।" एक व्यक्ति बोला, "इस दृश्य को देखकर आपके मन में क्या आया? आपके क्या विचार हैं? कृपया, मार्गदर्शन कीजिए।" कॉलेज के वे प्राध्यापक बोले- "देखो भाई ! जो मेरी समझ में आया है, वह यह है कि सबसे पहले हम ईश्वर को जानने का प्रयत्न करें। जब हमें उस एकमात्र ईश्वर का ज्ञान हो जाएगा तभी हम उस एकमात्र ईश्वर को खोज पाएंगे। उस ईश्वर को जिसके बारे में कहा गया है कि '"सबका मालिक एक है।'" मेरे आगे खड़े एक महानुभाव के मुँह से निकला, "वाह, श्रीमान्जी! यह बात एकदम सही है, परन्तु यह खोज तो असंभव दिखाई देती है।" प्राध्यापक जी बोले, "नहीं नहीं। यह संभव है, परन्तु है कष्ट-साध्य। विवेकानन्द जी ने कहा था कि अपनी पहचान ईश्वर की पहचान है।" एक अन्य व्यक्ति बोल उठा, "तत्त्वमसि अर्थात् तू वह है। वह अर्थात् ईश्वर।' प्राध्यापक जी बोल उठे "जी हॉं, यही से खोज प्रारंभ करनी है। श्रीमान्!
उसे जानकर मिले अमरता, अन्य मार्ग तो है ही नहीं। वही अव्यक्त है, वही व्यक्त है। वही सबमें समाया हुआ है। हम पुरुष कहलाते हैं। वह पुरुषोत्तम है और वह एक है। अध्ययन, चिन्तन और मनन कीजिए। मनन करने वाला होने से हमारी मानव संज्ञा है। उस ईश्वर को "सच्चिदानन्द' अर्थात् सत्-चित् और आनन्दस्वरूप भी कहते हैं। वह पूर्ण ज्ञानस्वरूप है, तथा आनन्द स्वरूप है। ये तत्त्व हमारी आत्मा की पहचान हैं। इस माध्यम से खोजिए। प्रभु अपनी पहचान प्रकट कर देंगे। ईश्वरों में ईश्वर की खोज का यही एकमात्र मार्ग बतलाया गया है।l -प्रा.जगदीश दुर्गेश जोशी
दिव्य युग जून 2009, Divya yug June 2009
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
गायत्री मन्त्र में महाव्याहृतियों का दिव्य रहस्य
Ved Katha Pravachan - 40 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Vishwa | Divya Manav Mission | Vedas | Hinduism | Hindutva | Ved | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Acharya Dr Sanjay Dev | Divya Yug | Divyayug | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Vedic Culture | Sanatan Dharma | Indore MP India | Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir | Gayatri Mantra | Mantras | Pravachan | Satsang | Arya Rishi Maharshi | Gurukul | Vedic Management System | Hindu Matrimony | Ved Gyan DVD | Hindu Religious Books | Hindi Magazine | Vishwa Hindu | Hindi vishwa | वेद | दिव्य मानव मिशन | दिव्ययुग | दिव्य युग | वैदिक धर्म | दर्शन | संस्कृति | मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आचार्य डॉ. संजय देव