लाखों वर्ष हले 14 वर्ष का वनवास पूर्ण करने के उपरान्त प्रभु श्रीराम के अयोध्या आगमन की खुशी में प्रत्येक घर में उत्सव मनाया गया था। सम्पूर्ण नगर प्रकाश से जगमगा गया था। हम आज भी उन्हीं परम्पराओं का निर्वाह करते हुए दीपावली मना रहे हैं। रावण पर विजय के प्रतीक के रूप में विजयादशमी को मना रहे हैं।.... लेकिन यदि गम्भीरता से विचार करें तो ऐसा लगता है कि हम इन परम्पराओं को सिर्फ ढो रहे हैं। "उत्सव' से उत्साह का भाव लुप्त हो चुका है और यह सिर्फ "प्रदर्शन' का माध्यम बनकर रह गया है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि समाज और देश में अब न तो राम जैसे आदर्श हैं, न ही अयोध्यावासियों जैसा "भाव'।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय महात्मा गान्धी ने रामराज्य की कल्पना की थी। गान्धी जी के साथ यह विचार भी चला गया और रामराज्य की कल्पना पुस्तकों के पृष्ठों में ही सिमटकर रह गई। क्या आज के सत्ताधीशों से रामराज्य की आशा की जा सकती है? क्या आज के नेता अथवा मन्त्री कह सकते हैं कि- जो अनीति कछु भासों भाई, तो मोहि बरजहु भय बिसराई। अर्थात् यदि मैं कुछ अनीति की बात कहूँ अथवा नीति विरुद्ध आचरण करूँ तो आप मुझे बिना किसी भय और संकोच के रोक देना। यदि आज किसी ने गलती से ऐसा कह दिया तो हमारे नेता उसे प्रताड़ित करने से नहीं चूकेंगे। रामराज्य में प्रजा निरोग रहती थी और कोई भूखा नहीं सोता था। लेकिन आज अमीर और गरीब के बीच खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है और अन्नदाता किसान को आत्महत्या के लिए विवश होना पड़ रहा है। देशवासियों से ज्यादा सरकार को आर्थिक वृद्धि दर की चिन्ता रहती है। जितनी राशि विकास के लिए खर्च की जाती है, उससे कहीं ज्यादा धन घोटालों के माध्यम से नेताओं की जेब में पहुँच जाता है। टैक्स के रूप में अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा देने वाली जनता केवल हाथ मलती रह जाती है या यूं कहें कि उसके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता। मर्यादा पुरुषोत्तम राम जहॉं कहते हैं- जन्मभूमि मम परम सुहावनि.... अर्थात् जन्मभूमि मुझे सबसे प्रिय है। वहीं आज क्या हो रहा है? देश का अरबों-खरबों रूपया विदेशी बैंकों की शोभा बढ़ा रहा है। ज्ञात होने के बाद भी उस काले धन को लाने के लिए सार्थक प्रयास नहीं किए जा रहे हैं।
आखिर कैसे मनें दीपावली-दशहरा और कैसे लौटें "राम' अयोध्या? प्रश्न गम्भीर हो सकता है परन्तु कठिन नहीं। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने भीतर से अहंकार, स्वार्थ, लालच, लोभ, ईर्ष्या, द्वेष जैसे 'रावण' को बाहर निकालना होगा और देशप्रेम, सद्भावना रूपी "राम' को जगाना होगा। यदि हम स्वयं में परिवर्तन कर पाएं तो बाहर की बुराइयों से डटकर लड़ सकेंगे क्योंकि तब हमारे भीतर भय का भाव नहीं रहेगा। और तभी हम वास्तविक रूप में दशहरा और दीपावली मना पाऐंगे। तभी दीपावली के प्रकाश में दिव्यता का भाव होगा और तभी "राम' अयोध्या लौट सकेंगे। हमें उस दिन की प्रतीक्षा रहेगी जब तुलसीदास की तरह सब कहेंगे- प्रभु बिलोकि हरसे पुरवासी...। -वृजेन्द्रसिंह झाला, दिव्य युग अक्टूबर 2011 इन्दौर, Divya yug October 20011 Indore
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
वेद सन्देश - स्वैच्छिक व्रत से सुख एवं बन्धन से दुःख होता है
Ved Katha Pravachan - 33 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Vishwa | Divya Manav Mission | Vedas | Hinduism | Hindutva | Ved | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Acharya Dr Sanjay Dev | Divya Yug | Divyayug | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Vedic Culture | Sanatan Dharma | Indore MP India | Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir | Gayatri Mantra | Mantras | Pravachan | Satsang | Arya Rishi Maharshi | Gurukul | Vedic Management System | Hindu Matrimony | Ved Gyan DVD | Hindu Religious Books | Hindi Magazine | Vishwa Hindu | Hindi vishwa | वेद | दिव्य मानव मिशन | दिव्ययुग | दिव्य युग | वैदिक धर्म | दर्शन | संस्कृति | मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आचार्य डॉ. संजय देव