संसार का प्रत्येक प्राणी स्वतन्त्र रहना चाहता है। जैसे बन्धा पशु टूटने पर भाग जाता है, पिंजरे में बन्द पक्षी यदि निकलने का अवसर प्राप्त कर ले तो उड़ जाता है, पकड़े गए सर्प-बिच्छू आदि भी भाग जाते हैं। यहॉं तक कि वर्षों से चिड़ियाघरों से नाना प्रकार के वन्य प्राणी भागते हुए पाए जाते हैं। कुछ वर्षों पूर्व एक चिड़ियाघर के तोते ने ऐसे लोहे के जंगल को काट दिया, जिसको बब्बर शेर भी नहीं तोड़ सकता था। उस तोते को दुबारा पकड़कर दोहरे पिंजरे में रखा गया। तो मनुष्य जाति का तो कहना ही क्या?
संसार के श्रेष्ठतम व्याकरणाचार्य महर्षि पाणिनि ने कर्त्ता की परिभाषा की है- जो पूर्ण स्वतन्त्र हो। यथा स्वतन्त्रःकर्ता। संसार के सभी राष्ट्र स्वतन्त्र रहना चाहते हैं। इसके लिए नाना प्रकार के युद्ध होते आये हैं तथा होते रहेंगे। यह स्वाभाविक है। परिवार का प्रत्येक व्यक्ति स्वतन्त्र रहना चाहता है, जिसके फलस्वरूप परस्पर लड़ाई-झगड़े भी देखे जाते हैं।
स्वतन्त्रता की अनेक मर्यादाएं हैं। वैसे यदि सबको स्वतन्त्रता की पूरी-पूरी छूट दे दी जाए तो अपना विनाश भी अवश्यम्भावी है। वेदों के पुनरुद्धारक महर्षि दयानन्द जी महाराज ने वेद के आधार पर कहा कि सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालन में परतन्त्र रहना चाहिए तथा प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें। इस प्रकार परतन्त्रता की स्वतन्त्रता है। स्वतन्त्रता वेदोक्त कानून है, जिसके आधार पर चलना ही स्वतन्त्रता है।
कुछ लोग तो स्वतन्त्रता का मनमाना अर्थ करते हुए व्यक्तिगत तथा राष्ट्रीय, प्रान्तीय या वर्ग विशेष के आधार पर एक दूसरे पर हावी होने के लिए नरसंहार पर तुलकर अपना तथा पराया अहित करने में ही लगे रहते हैं। बल्कि देखा गया है कि वरिष्ठ लोग पूर्ण अन्यायपूर्वक दूसरों को दबाना चाहते हैं।
हमारे देश का सदा से ही स्वाभाविक नियम रहा है कि किसी को भी अन्यायपूर्वक न दबाया जाये। परन्तु हमारे देश पर जिन-जिन लोगों ने शासन किया, उन्होंने बड़े-बड़े क्रूर अत्याचार किए। इसके लिए इतिहास साक्षी है।
किसी भी दृढ़ तथा विशाल भवन का मूल नींव के वे पत्थर होते हैं जो दिखलाई नहीं देते। इसी प्रकार से किसी भी स्वतन्त्र राष्ट्र के वे क्रान्तिकारी ही राष्ट्रस्वरूपी भवन के पत्थर होते हैं जिन पर देश उन्नत रूप से खड़ा है। शोक की बात है कि उन लोगों के विषय में प्रामाणिक तथ्यों तथा उनके बलिदानों को जनसाधारण की जानकारी से परे रखा जा रहा है।
किसी भी देश को स्वतन्त्रता दिलाने वाले क्रान्तिकारी मृत्यु को निमन्त्रण देकर क्यों बुलाते हैं? मौत की बात सुनकर बड़े-बड़े योग्य व्यक्ति भी प्रायः भयभीत हो जाते हैं। इसलिए कि हमारे देश में अमानवीय अत्याचार बन्द होकर प्राणिमात्र को जीने का पूर्ण अधिकार प्राप्त हो। स्वतन्त्रता के 65 वर्ष बाद क्या हुआ तथा क्यों हो रहा है? क्या इसी के लिए स्वतन्त्रता प्राप्त की गई थी?
स्वतन्त्रता का लक्ष्य क्या था? सोचिए। पशु-पक्षियों का वध रोका जाए। अपनी भाषा का सभी स्तरों पर प्रयोग हो तथा भारत विशाल तथा समुन्नत हो। स्वतन्त्रता के पश्चात् गोवंश का नाश, राष्ट्रभाषा की पूर्ण अवहेलना, विदेशी रीति-रिवाज, खानपान व्यवहार, मद्य-मांस आदि का सेवन, अश्लीलता का जोरदार प्रचार करके युवाशक्ति को कमजोर करना और शेष भारत को पुनः खण्ड-खण्ड करने की मिलीभगत चल रही है।
कुत्ता कौन है? कुत्ता कै करके (वमन करके) खा लेता है। इसी प्रकार हम अंग्रेजों का वमन खा रहे हैं। कुत्ते की नकल कर रहे हैं। अंग्रेजी को पूर्ण वरीयता हम दिला रहे हैं। हम विरोध ही नहीं करते। हम सहनशीलता का दावा करते हैं। हमें पैसा चाहिए, देश-धर्म-परिवार भाड़ में जाये। जहॉं इस विचारधारा के लोग होंगे, वहॉं सर्वनाश ही तो होगा।
ऐ भारतवासियो! यदि आप में उन क्रान्तिकारियों का खौलता हुआ रक्त है तो क्यों नहीं भारत माता की रक्षार्थ सर्वस्व अर्पण कर देते। भारत माता के टुकड़े करने वाले तथा पृथकता की मांग करने वाले कपूत हैं, सपूत नहीं। उन्हें चाट जाओ। उन्हें खतम कर दो।
याद रखो! किसी वृक्ष के मूल में पानी डालने से वृक्ष बढ़ेगा, फूलेगा-फलेगा भी। इसी प्रकार यदि देश बचेगा तो घर, सड़क, बाग, बगीचे, नाना प्रकार के विज्ञान, कारखाने, खेत, व्यापार तथा जन-समुदाय बचेंगे अन्यथा नहीं। देश को बचाओ।
याद रखो! प्रत्येक राष्ट्र अपने देश की पूर्व निर्धारित मान्यताओं के आधार पर चलता है। धर्मशास्त्र और परम्पराएँ उसका मार्गदर्शन करती हैं। स्वतन्त्र राष्ट्र का संविधान होता है। पर हमारे देश के आकाशवाणी, दूरदर्शन, समाचार पत्र और राजकीय अधिकारी धुन्ध से भरे नये रास्ते पर चल रहे हैं।
किसी भी देश की स्वतन्त्रता "करो या मरो' पर आधारित होती है। देवासुर संग्राम सर्वविदित है। महाभारत सर्वविदित है। हमारे अपने घर में कोई आग लगाने आये, तो हम तुरन्त आग बुझाने का उपक्रम करते हैं। हमारे देश में आग लगी है। इसे कौन बुझायेगा? जिस देश की युवाशक्ति बुरी तरह दुर्व्यसन, मद्यपान, मांसाहार करने में लगी हो, उस देश का महाविनाश सामने ही है। अतः सम्भल जाओ। अंगड़ाई लो।
जीजाबाई, लक्ष्मीबाई, सीता, सावित्री, सुलभा, दुर्गा, काली आदि की संगिनी नारियॉं अपनी सन्तानों को देशभक्ति के संस्कार दें।
गुरु विरजानन्द, महर्षि दयानन्द, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल, भगतसिंह, भाई परमानन्द, सुभाषचन्द्र बोस, वीर सावरकर इत्यादि हजारों बलिदानियों का खून, खून था पानी नहीं। यदि आप में रक्त की पवित्रता का तनिक भी आभास है तो क्यों स्वतन्त्र देश को परतन्त्रता की ओर ले जा रहे हो? आवश्यकता इस बात की है कि हम एकजुट होकर संघर्ष करें, तभी सफल होंगे। विरोध करो तन-मन-धन से उनका जो हमारे देश में रहकर जी रहे हैं और गुण गाते हैं विदेशों का। अधिकार मांगे नहीं मिलता, भुजदण्डों से छीना जाता है। सच्चाई मानी नहीं, मनवाई जाती है। इस काम को कुकर्मी और आत्मा से बलहीन लोग नहीं कर सकते। चोर का चोर विरोध नहीं करता। इस प्रकार से हम भी चोर हैं, यदि हम अराष्ट्रीय तत्वों का विरोध नहीं करते।
यदि हम अपने को स्वतन्त्र समझते हैं तो नाम-काम सभी बदलने होंगे। विदेशी यवन आये, उन्होंने प्रयाग का नाम बदलकर इलाहाबाद कर दिया। अंग्रेजों ने भी अपने देश की भाषा और संस्कृति के आधार पर भी नामकरण किए। हमें तो अपने नाम अपने ढंग से रखने चाहिएं।
हम सबको महापाप लगेगा यदि भारतीयता को तिलांजलि देकर अपने घरों में डैडी-मम्मी-पापा इत्यादि महापातक शब्दों का प्रयोग करेंगे। इन शब्दों का अर्थ मृत और पापी का बोधक है। टीटू, नीटू, रीटू, चीटू, गुड्डू शब्द भी घरों में घुस गए हैं। हम लोग चोटी और जनेऊ छोड़कर भद्दी वेषभूषा अपनाकर अपनी गुलाम मानसिकता का परिचय दे रहे हैं।
कहॉं तक लिखा जाए! यदि ठीक ढंग से लिखें तो रोना आता है। आज हर घर का प्रत्येक सदस्य भारतवर्ष का परम शत्रु बन रहा है। विवाह, भोज, चुनाव सभा, खेलकूद आदि सभी में विदेशीपना है। ऐसा लगता है कि अपने देश में कुछ ग्राह्य रहा ही नहीं। जो संसार लगभग दो अरब वर्ष तक भारतवर्ष के चक्रवर्ती राज्य की व्यवस्था के अन्तर्गत चलता रहा है उस भारतवर्ष को आज क्या हो गया? हमीं में खोट है। -पं. ब्रह्मप्रकाश वागीश, दिव्य युग अगस्त 2012 इन्दौर, Divya yug August 2012 Indore
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