प्राचीन समय में अर्थात् वैदिक काल में शिष्य गुरु के पास रहकर विद्या प्राप्त किया करता था। हमारे ऋषियों की दृष्टि में विद्या वही है जो मनुष्य को अज्ञान के बन्धन से मुक्त करा दे। भारत शिक्षा के क्षेत्र में जगत् गुरु कहलाया था। संसार में सबसे पहले सभ्यता संस्कृति और शिक्षा का उदय भारत की ही भूमि पर हुआ था। शिक्षा नगर के शोर से दूर महर्षियों के गुरुकुलों और आश्रमों में दी जाती थी। छात्र पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ गुरुजनों के पास रहकर विज्ञान, नीति, युद्धकला, वेद और शास्त्रों का अध्ययन करता था। वर्तमान में पाश्चात्य ढंग की शिक्षा प्रणाली राष्ट्र के लिए एक अभिशाप सिद्ध होकर रहेगी। यह शिक्षा लार्ड मैकाले की देन है।
राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी जी ने कहा था कि- "यदि मेरा बस चले तो मैं इस शिक्षा को जड़मूल से बदल दूँ और शिक्षा को समाज की आवश्यकता के साथ जोड़ दूँ। बच्चों को जैसी शिक्षा दी जायेगी वैसे ही बनेंगे।" इन्हें आज ऐसी शिक्षा दी जा रही है जिससे हमारे देशभक्तों, विद्वानों, ऋषि-मुनियों का इतिहास साफ हो रहा है। आज नंगे नाच, क्लबों और सिनेमाओं की शिक्षा ने युवा पीढी का चरित्र गिरा दिया है। विन्ध्य पर्वत के वन में भूखा प्यासा होकर मर जाना अच्छा, तिनकों से ढके सर्पों से भरे हुए कुएं में गिर कर प्राण दे देना अच्छा है, पानी के भंवर में डूब जाना भी उत्तम है, लेकिन शिष्ट पढे-लिखे मनुष्य का चरित्र से वंचित हो जाना ठीक नहीं है। आचारहीन व पुनन्ति वेदा:। अर्थात् चरित्रहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते। जिस प्रकार सोने के लिए कान्ति और फूल के लिए सुगन्धि का होना आवश्यक है उसी प्रकार मनुष्य के लिए सदाचार का होना आवश्यक है।
इस देश में जितनी शिक्षा बढ रही है उतना ही चरित्र लोगों का घटता जा रहा है। सदाचार आकाश से नहीं गिरता, अपितु यह मानव के अन्दर बचपन से पैदा किया जाता है। यदि अब भी भारत ने अपना पूर्व गौरव प्राप्त करना है तो सभी पाठशालाओं, विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के प्रत्येक छात्र तथा छात्रा को नैतिक शिक्षा दी जाए। आज की शिक्षा कलम के कारीगर बनाकर प्रमाण-पत्र तो दे देती है परन्तु जीवन क्षेत्र में उतरने का सबल आधार नहीं देती।
अध्यापक पढाकर खुश नहीं, विद्यार्थी पढकर खुश नहीं, विश्वविद्यालय और बोर्ड अपने कार्यों में दृढ नहीं। सभी क्षेत्रों में अवहेलना और कर्तव्य-हीनता पनपती जा रही है। जब कुएं में ही पानी नहीं तब बाल्टी में क्या आएगा! जो अध्यापक स्वयं गुणवान नहीं हैं वे बच्चों को जिन्होंने भविष्य में राष्ट्रनिर्माता बनना है, क्या अच्छी शिक्षा दे सकते हैं? चिकित्सक की गल्ती श्मशान में छिप जाती है, वकील की गल्ती कागजात में छुप जाती है, इंजीनियर के गल्ती सीमेण्ट में छुप जाती है, परन्तु अध्यापक की गल्ती छुपने की बजाय समूचे राष्ट्र पर झलक जाती है।
आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने राष्ट्र को ऐसे घेरे में लाकर खडा कर दिया है जहॉं केवल पेट की पूर्ति दिखाई देती है। जीवन की सच्चाई का गला घोंटने वाली यह शिक्षा जिन्दगी जीने का नहीं, अपितु जिन्दगी रोने का पाठ पढाती है। सिर पर उपाधियों का बोझ लिए हुए जीवन की सड़क पर चलता-चलता थक जाता है, परन्तु उपाधियों की गठरी उसे ठीक तरह से जीना नहीं सिखा पाती।
वाणी, कर्म और विचार की शुद्धि का पाना ही शिक्षा का परम लक्ष्य है। लेकिन आज शिक्षा भ्रष्ट हो चुकी है। विद्यार्थियों को शुद्ध विचार, चरित्र, नई चेतना, नई प्रेरणा तथा नया दृष्टिकोण प्रदान करना शिक्षा का मुख्य लक्ष्य होता है । परन्तु आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने देश को अन्धकार में ले जाकर नाश के कगार पर खड़ा कर दिया है। शिक्षा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। इनके बीच तनाव ही तनाव देखने को मिलता है।
शिक्षा का उद्देश्य अनुशासन, आदर-सत्कार की भावना, नम्रता और चरित्र का निर्माण होता है, जो मानव का सर्वोपरि धन है। दया, क्षमा, सन्तोष, सहानुभूति, आत्मसंयम, परोपकार, स्वदेश भक्ति आदि का ज्ञान होना आज के विद्यार्थियों के लिए बहुत आवश्यक है। क्योंकि विद्यार्थी ही किसी समाज या राष्ट्र की रीढ की हड्डी होते हैं।
भारत के चारित्रिक पतन को रोकने के लिए प्राचीन भारत की आदर्श शिक्षा प्रणाली की ओर पुन: एक बार निहारना होगा। क्योंकि भारत भारत है और यूरोप-यूरोप। दोनों के मूल चिन्तन में मौलिक अन्तर है। ऋषियों द्वारा तप:पूत शिक्षा ही आज भारत की मांग होनी चाहिए। - दर्शना देवी आचार्या
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
दिव्य मानव निर्माण की वैदिक योजना
Ved Katha Pravachan - 28 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev