जीवन में आगे बढने के लिए अथवा निरन्तर सफलता की ओर अग्रसर होने के लिए जीवन में महान लक्ष्यों का होना भी अनिवार्य है। लक्ष्यों के बिना हम आगे कैसे बढेंगे? लेकिन प्रश्न उठता है कि महान् लक्ष्यों को प्राप्त कैसे किया जाए? लक्ष्य-सिद्धि के लिए निम्नलिखित तत्त्वों की ओर ध्यान देना अनिवार्य है-
लक्ष्य निर्धारण-सबसे पहले हम अपना लक्ष्य निर्धारित करें कि हमें करना क्या है। लक्ष्य एकदम स्पष्ट होना चाहिए। एक विद्यार्थी को चाहिये कि वह स्कूल की फाइनल कक्षा की परीक्षाओं के बाद निश्चित कर ले कि उसे किस क्षेत्र में जाना है। उसे विज्ञान, कॉमर्स अथवा कला किस क्षेत्र में आगे बढना है। विज्ञान में भी मेडिकल में जाना है अथवा इन्जीनियरिंग में, यह निश्चित करना बहुत जरूरी है। हमें नौकरी करनी है अथवा व्यापार या अन्य क्षेत्र विशेष मेंे जाना है यह निश्चित करना भी बहुत जरूरी है। यदि लक्ष्य डावॉंडोल होगा तो सफलता भी सन्दिग्ध रहेगी।
सबसे पहले लक्ष्य को निर्धारित कर उसे कागज पर लिख कर अपने पास रख लें अथवा डायरी में लिख लें। डायरी लिखना या प्लान मेण्टेन करना भी लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। जब हम दैनिक, साप्ताहिक, मासिक या अन्य अवधि विशेष मेें सम्पन्न किये जाने वाले कार्यक्रमों को लिख लेते हैं तो लिखने के साथ ही इसकी योजना हमारे मन में हो जाती है और डायरी में लिखे कार्य हमें बिना डायरी देखे भी प्राय: उचित समय पर आभासित हो जाते हैं। ये एक प्रकार की स्वीकारोक्ति या संकल्प ही तो है जो हमने कागज पर लिख लिया है।
लक्ष्य को सदैव सामने रखना या न भूलना- दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है लक्ष्य को न भूलना अर्थात् आपका लक्ष्य निरन्तर आपके मन में बना रहे और इसके लिए आवश्यक है कि आप अपने लिखे हुए कागज को अपने पास रखें और बार-बार देखते रहें। या फिर अपने निर्धारित लक्ष्य को कागज पर लिख कर एक जैसी कई प्रतियॉं कर लें और उनको घर या कार्य करने के स्थान पर इतनी ऊँचाई पर लगा दें जिससे वे आपको बार-बार दिखलाई पड़ें। लिखाई साफ मोटी होनी चाहिये ताकि दूर से भी आसानी से पढी जा सके। कागज यदि सुन्दर और रंगीन है तथा रंगीन अक्षरों में लिखा है तो उसकी प्रभावोत्पादकता कई गुना बढ जाती है। जितनी बार आप इन्हें देखेंगे, मन में अवश्य दोहरॉंगे और आपका कार्य अर्थात् लक्ष्य प्राप्ति सरल हो जाएगा।
जब लक्ष्य आपके सामने है और उसे प्राप्त करने के लिए आप कृत-संकल्प हैं तो प्रयास भी अवश्य करेंगे। अगर आप अपनी डायरी में प्रतिदिन इतना भर लिख लें "मैं बहुत प्रसन्न हूँ, मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हूँ" तो आप सचमुच ऐसे ही हो जाएँगे। लक्ष्य को याद रखने का एक उपाय और भी है और वो ये है कि आप अपने लक्ष्य को अपने सभी मित्रों और परिचितों को बतला दें। यदि आपने एक बार उन्हें बतला दिया तो वे आपसे बार-बार आपके लक्ष्य में प्रगति के विषय में पूछते रहेंगे और आपको याद आता रहेगातथा साथ ही यह लक्ष्य प्राप्त करना आपके लिए प्रतिष्ठा का कारण बन जाएगा। आप अधिकाधिक उत्साह से लक्ष्य प्राप्ति में जुट जाएँगे।
लक्ष्य की सफलता के विरोधी भावों से बचना-लक्ष्य प्राप्ति में लक्ष्य के विरोधी भावों का त्याग भी अनिवार्य है। मन में लक्ष्य की सफलता को लेकर न केवल सन्देह ही नहीं पैदा होना चाहिये अपितु लक्ष्य के विरोधी भाव किसी भी प्रकार मन में न आने पाएँ। पूर्ण विश्वास के साथ लक्ष्य को याद रखना और उसकी पूर्णता के लिए पूरी तरह आशावादी होना जरूरी है। आपका लक्ष्य आपकी इच्छा ही तो है उत्क ट इच्छा, जिसे पूर्ण करने के लिए आप कृतसंकल्प हैं। तो आपका लक्ष्य एक संकल्प के रूप में सामने है। इस संकल्प की मूल भावना का विरोधी भाव मन में हरगिज न आने पाए।
प्राय: हमारे संकल्प की मूल भावना के विरोधी भाव ही नये विरोधाभासी संकल्प के रूप में उपस्थित होकर हमारे मुख्य संकल्प को क्षीण या तटस्थ करके लक्ष्य-पूर्ति मेंे बाधक बनते हैं। जब भी कोई विरोधी भाव या नकारात्मक विचार मन में आए उसे नकार दें। मन में आए विरोधी भाव का भी विरोधी भाव सकारात्मक स्वीकारोक्ति के रूप में दोहराएँ। विरोधी भावों से बचने के लिए वास्तव में लक्ष्य को एक स्वीकारोक्ति के रूप में बार-बार दोहराएँ तथा आँखे बन्द करके उसको कल्पना चित्र के रूप में देखें।
समय सीमा निर्धारित करना- लक्ष्य प्राप्ति में लक्ष्य की समय सीमा निर्धारित करना भी जरूरी है। यह सीमा कुछ घण्टे, दिन, सप्ताह अथवा महीने हो सकती है। अपने लक्ष्यों को हम अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन में भी वर्गीकृत कर सकते हैं। जैसा लक्ष्य वैसी समय सीमा। लेकिन व्यक्तिगत लक्ष्यपूर्ति के लिए किसी भी स्थिति में यह सीमा सामान्यत: दो वर्ष से अधिक नहीं होनी चाहिए।
जो अल्पकालीन लक्ष्य हैं उनकी प्रात: एक सूची बना लें और उसे दिन में दो-तीन बार देख लें। शाम को आप पाएँगे कि अधिकांश कार्य पूर्ण हो चुके हैं। शेष बचे कार्यों को अगले दिन की कार्य सूची में सबसे पहले लिख लें और उपरोक्त क्रिया दोहराते रहें। दीर्घकालीन लक्ष्यों को ऊपर बताए गए तरीके से मोटा-मोटा लिखकर अपने आस-पास टॉंग दे या चिपका दें।
लक्ष्यों की संख्या निर्धारित करना- अब एक प्रश्न उठता है कि एक बार में कितने लक्ष्य निर्धारित करें? जहॉं तक रोजमर्रा के कार्यों या अल्पकालिक लक्ष्यों का प्रश्न है इनकी संख्या कितनी भी हो सकती है। लेकिन दीर्घकालिक लक्ष्यों की संख्या सीमित होनी चाहिये। एक बार में, एक दो या अधिकाधिक तीन लक्ष्य लेकर चलें। क्योंकि अधिक लक्ष्यों को एक साथ ऊर्जस्वित करने से प्रति लक्ष्य कम ऊर्जा मिल पाएगी। मान लीजिए कि आप एक लेखक हैं तो आप एक बार में एक ही पुस्तक लिखने का लक्ष्य निर्धारित कर उस पर कार्य शुरू करें। पॉंच-सात पुस्तकें एक साथ प्रारम्भ करना कदापि उचित नहीं होगा। आप कम विषयों और कम भाषाओं तक ही सीमित रहें तो अच्छा है। विशेषज्ञता क्या है? एक ही विषय अधिकाधिक कार्य करने का संकल्प अथवा जीवन के लिए लक्ष्य निर्धारण।
लक्ष्य का स्तर निर्धारित करना- लक्ष्यों का स्तर क्या हो? पहले अपेक्षाकृत सरल लक्ष्यों को निर्धारित कर सफलता प्राप्त करें। इससे आप में विश्वास का निर्माण होगा। बाद में मुश्किल लक्ष्यों को लें। इससे आपके विश्वास के स्तर में लगातार वृद्धि होती चली जाएगी। हर लक्ष्य-सिद्धि का सीधा सम्बन्ध आपके विश्वास के स्तर के अनुकूल ही होगा।
सफलता प्राप्ति के प्रति पूर्ण आश्वसित तथा विश्वास- जीवन में सफलता के लिए लक्ष्य निर्धारित करें न कि असफलता के लिए। जीवन में ऐसा लक्ष्य निर्धारित न करें जिस पर आप खुद विश्वास करने को तैयार न हों। आपके विश्वास का स्तर आपकी लक्ष्यपूर्ति में बहुत महत्त्वपूर्ण है। यदि आप कोई लक्ष्य निर्धारित करके कहते हैं कि ये कभी पूरा तो होगा नहीं तो यहॉं भी आपका विश्वास अवश्य काम करेगा परन्तु विपरीत दिशा में। विपरीत दिशा में विश्वास का उपयोग न करें। हर सफलता को अपने विश्वास से जोड़ने का प्रयास करें। इससे आपके विश्वास में वृद्धि होगी और आपको अगले लक्ष्यों की प्राप्ति में अपेक्षाकृत शीघ्र सफलता मिलेगी।
आपने जो लक्ष्य अपने मन की शक्ति अर्थात् आध्यात्मिक ऊर्जा के सहयोग से पूर्ण किये हैं उनकी पूर्णता पर आपको अपार हर्ष होता है। यह हर्ष आपके शरीर में जो आनन्द की तरंगें उत्पन्न करता है अथवा हर्षानुभूति के कारण आपके शरीर में जिन लाभदायक हार्मोंस स्राव होता है वे शरीर को एक नई दिशा देते हैं। अर्थात् हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की क्षमता को उन्नत कर हमें नीरोग बनाए रखने तथा रोग-मुक्त करने में सहायता करते हैं। यदि उपरोक्त विधि से हम मनमाफिक कोर्स में प्रवेश, व्यवसाय या नौकरी आदि प्राप्त कर लेते हैं तो हमें अपनी रूचि के क्षेत्र में अध्ययन या कार्य करने में अधिक आनन्द प्राप्त होता है। पसन्दीदा क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त कर हम और आगे बढ पाते हैं। इस प्रकार लक्ष्य सिद्धि अथवा समस्याओं का समाधान एक उपचारक प्रक्रिया भी है।
आप अपने विश्वास के स्तर के अनुसार ही लक्ष्य निर्धारित करें और यदि आपका विश्वास ब्रह्माण्ड की असीम प्रचुरता में है तो कोई भी लक्ष्य प्राप्त करने में कठिनाई नहीं आएगी। वास्तव में लक्ष्य निर्धारण का उद्देश्य है अपने विश्वास के स्तर को बढाना जिससे हम पूर्ण समर्पित होकर कुशलतापूर्वक कार्य कर सकें। वैसे तो हर लक्ष्य-सिद्धि आपके लिए स्वास्थ्यवर्धक है लेकिन उत्तर स्वास्थ्य की प्राप्ति भी आप अपना एक लक्ष्य निर्धारित कर सकते हैं। - सीताराम गुप्ता
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
वेद में धन प्राप्ति के मन्त्र
Ved Katha Pravachan - 24 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Sansaar | Hindu Vishwa | Hindutva | Ved | Vedas | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Theory of Karma | Vedic Culture | Sanatan Dharma| Indore Madhya Pradesh | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir| Gayatri Mantra | Mantras| Arya Rishi Maharshi | Hindu social reform | Hindu Matrimony Indore – Jabalpur – Bhopal - Gwalior Madhya Pradesh | Ved Gyan DVD| Vishwa Hindu | Hindu History | Acharya Dr. Sanjay Dev | Hindi Hindu Matrimony Madhya Pradesh – Chhattisgarh – New Delhi NCR – Maharashtra – Rajasthan - Gujarat | हिन्दुत्व | आचार्य डॉ.संजयदेव | वेद | वैदिक धर्म | दर्शन | कर्म सिद्धान्त