भयंकर तूफान चल रहा था। बादल गरज रहे थे, मूसलाधार बारिश हो रही थी, बिजली की कड़क से आकाश काँप रहा था, ऐसे समय में समुद्र की उत्ताल तरंगों ने मांझी को ललकारा। मांझी मुस्कराया और उसने ऊँची लहरियों पर अपनी नाव छोड़ दी। प्रबल झंझा व लहरों के थपेड़ों से उसका मस्तूल टूट गया, पाल तार-तार हो गया, लेकिन उसके अदम्य विश्वास का मस्तूल उसी प्रकार ऊँचा खड़ा रहा। आँधी समाप्त हो गई, आकाश साफ हो गया, लहरें उसके विश्वास से टकराकर चकनाचूर हो गईं। मांझी की नैया सुद्र की छाती पर टहलती हुई किनारे आ लगी।
अदम्य विश्वास के समक्ष कठिनाइयों की शिलाएँ चकनाचूर हो जाती हैं। विश्वास शारीरिक शक्ति का नाम नहीं है, अपितु आत्मिक बल का नाम है। रूप में सुन्दर, शरीर से शक्तिशाली परन्तु आत्मा से दुर्बल व्यक्तियों को कठिनाइयों की प्रथम बाढ़ में बहते हुए देखा गया है। शरीर से कमजोर पर आत्मा से प्रबल व्यक्तियों को कठिनाइयों से जुझते हुए, संसार के बहते हुए प्रभाव को मोड़ते हुए देखा गया है। वे सबसे कमजोर हैं- चाहे वे कितने शक्तिशाली क्यों न हों- जिन्हें स्वयं पर तथा अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं।
हिमालय की उठानों ने गंगा की रेती पर एक वीतराग संन्यासी को, फारस की खाड़ी ने पैलेस्टाइन में एक निर्लेप तपस्वी को; कैथोलिक सम्प्रदाय के पुजारियों ने रोम की गलियों में एक प्रबल सुधारक को अन्धविश्वास के टुकड़े-टुकड़े करते देखा। वे थे- स्वामी दयानन्द, महात्मा जरथुस्त्र और सुधारक लूथर।
गंगा की रेती पर हजारों विरोधियों के बीच खड़े होकर उस एक और अकेले संन्यासी ने कहा- भोले लोगों, क्या तुम यह समझने में भी असमर्थ हो गए मन्दिरों व शिवालयों के ये देवी-देवता जड़ हैं, इन पत्थरों से तुम्हारा कोई कार्य सिद्ध होने वाला नहीं। इस बहते पानी में पाप नहीं धोए जा सकते। हृदय का मैल शरीर धोने से नहीं, मन को धोने से कटता है। अतः इन पंडों और पुरोहितों से जितना हो सके, पीछा छुड़वा लो। पुण्य प्राप्ति के लिए न मन्दिरों में जाने की आवश्यकता है, न तीर्थों में भटकने की।
एक साधु को हाथ जोड़कर देवता से प्रार्थना करते, पुजारियों को मन्दिरों में पूजा करते व नागरिकों को देवताओं के आगे घुटने टेके देखकर, वह सोचने लगा- क्या इन लोगों ने यह संवाद नहीं सुना कि सब देवी-देवता मर गए और जरथुस्त्र ने सबको जमीन नीचे दफना दिया है।
मैं नहीं जानता था कि जर्मनी की गरीब जनता की कमाई धर्म के प्रवाह में बहकर इस प्रकार रोम के समुद्र में गिर रही है। धमाचार्यों के ढोंगाचार व विलासी जीवन को देखकर लूथर का हृदय फट गया। उसने कहा - जानता हूँ इस ढोंगाचार का विरोध करने में जीवन को खतरा है, किन्तु विरोध नहीं करता हूँ तो मेरी आत्मा जीते-जी मर जाती है।
स्वामी दयानन्द के अनुयायी आर्यसमाजी हुए, जरथुस्त्र के पारसी और लूथर के पीछे चलने वाले प्रोटैस्टैण्ट कहलाए।
ये सभी एक और अकेले थे। वे अपनी दो भुजाओं और आत्मविश्वास के बल पर आगे बढ़े। पर जब वे विदा हुए तो उनके पीछे हजारों कदमों की भीड़ थी, लाखों आखें आँसू बहा रही थीं। पहले उनको सुनने वाला कोई नहीं था, पर पीछे उनके दो शब्द सुनने के लिए लोग लालायित रहते थे। उनके अटूट आत्मविश्वास, त्याग, तपस्या और आत्मिक सत्यता के आगे संसार झुक गया।
हारा हुआ व्यक्ति वह नहीं है जो अपने प्रयत्न में सफल नहीं हुआ, हारा हुआ व्यक्ति वह है जिसने आत्मविश्वास खो दिया है। मुर्दा वह नहीं जो मर गया है; मुर्दा वह है जिसका आत्मविश्वास मर गया है। शक्ति के विश्वास में ही शक्ति है। आत्मविश्वास के अंकुर से ही प्रयत्न का पौधा फूटता है, और प्रयत्न के पौधों पर ही सफलता के फल लगते हैं। अपने प्रयत्न को इस आधार पर स्थापित करो कि हमको अवश्य सफल होना है, सफलता हमें मिलकर रहेगी। अगर तुम्हें यही विश्वास है नहीं कि तुम मंजिल पर पहुँच सकते हो तो तुम चलोगे कैसे? आत्मविश्वास के क्षेत्र में शंका, सन्देह, असफलता, निराशा आदि शब्दों की की कोई गुंजाइश नहीं। वहाँ प्रश्नवाचक चिन्ह तो होता ही नहीं। मैं चलूँ या न चलूँ, शायद मुझे सफलता न मिले, यह तो असम्भव है, किया जाए या न किया जाए इत्यादि सन्देहों की कोई सम्भावना नहीं।
अपने पर विश्वास रखने में डरो मत। अपनी योग्यता में श्रद्धा रखो। विचित्र रास्ते अपनाओ, विभिन्न प्रकार से सोचो, विभिन्न प्रकार से प्रयत्न करो। यदि आप में कोई चीज है, तो आत्मविश्वास उसे बाहर खींच लाएगा। प्रत्येक कुएँ में पानी होता है; पर पानी तो उसी कुएँ से आएगा, जिसमें रस्सी लटका कर विश्वास के साथ खींचा जाएगा। तुम्हारे अन्दर की शक्तियाँ मौजूद हैं, पर आवश्यकता है विश्वास के साथ उभारने की।
मनुष्य अपार शक्ति का स्रोत है, आवश्यकता है अपने को समझने की। ऐसा मानना महापाप है कि तुम्हारे अन्दर शक्ति नही है। विश्वास रखो, तुम शक्ति के भंडार हो। स्वामी विवेकानन्द कहा करते थे- क्या तुम जानते हो, तुम्हारे अन्दर अभी भी कितना तेज, कितनी शक्तियाँ छिपी हुई हैं- क्या वैज्ञानिक इन्हें जान सकता है? मनुष्य का जन्म हुए लाखों वर्ष हो गए, पर अभी तक उसकी असीम शक्ति का केवल अत्यन्त क्षुद्र भाग ही अभिव्यक्त हुआ है, इसलिए तुम्हें यह न कहना चाहिए तुम शक्तिहीन हो। तुम क्या जानों कि ऊपर दिखाई देने वाले पतन की ओट में शक्ति की कितनी संभावनाएँ हैं? इस जलप्रपात को देख रहे हो न। इसके पतन में कितनी शक्ति छिपी है- अपार विद्युत शक्ति का भंडार है यह। जो शक्ति तुममें है, उससे पीछे अनन्त शक्ति और शक्ति के सागर है।
अगर तुम एक बार असफल हो भी गए तो विश्वास रखो कि अगले प्रयत्न में सफल होगे। यदि अगले में भी असफल हुए हो, तो भी मत समझो कि सफलता के दरवाजे बन्द हो गए हैं। आत्मविश्वास और प्रयत्न के आगे संसार की कोई असफलता आज तक तो टिकी नहीं; फिर अब यह शंका क्यो? इन छोटी-छोटी फिसलनों से हिम्मत मत हारो। बच्चा न जाने खड़े होने के प्रयत्न में कितनी बार गिरता है, कितनी बार असफल होता है, कितनी बार ठोकर खाता है, पर क्या वह एक दिन दौड़ने नहीं लगता? यह विश्व, विश्वास का सौदा है।
हेनरी फास्ट नामक युवक शिकार को गया। दुर्भाग्यवश उसकी दोनों आँखें छर्रे लगने के कारण जाती रहीं। पुत्र की ऐसी दशा देखकर पिता के दुःख का वारापार न रहा। परन्तु हेनरी फास्ट ने अपने दुखी पिता से कहा- पिताजी आप कुछ भी विचार न करें। मुझे जीवन में जो भी सफलता प्राप्त करनी है, उसमें मेरे अंधे होने से कोई भी बाधा नहीं पड़ेगी। यह व्यक्ति न केवल इग्लैंड के महान पुरुषों में गिना जाने लगा, अपितु पार्लियामेंट का मेम्बर भी हो गया।
इसी अदम्य विश्वास के बल पर एवरेस्ट की विजय हुई है, सुधारकों ने सुधार किए हैं, विजय की पताकाएँ फहरा रही हैं। छोटी-छोटी फिसलनों के आगे हताश मत होओ। यदि आत्मविश्वास के धनी व्यक्तियों का जन्म न हुआ होता, तो हम शायद आज भी अहेरियों के रूप में जंगलों में शिकार करते; पेड़ों की छाल पहना करते और कन्दराओं में सिर छिपाते होते। पर आज मनुष्य अपने इसी विश्वास के बल पर युगों की चुनौती देता हुआ बढ़ता चला जा रहा है। अपनी आत्मा की शक्ति पर विश्वास करो। यह विश्वास आपके जीवन में प्राणों का संचार करेगा।
दूसरों के कन्धों का सहारा लेना छोड़ दो। दूसरों की टाँगों से कोई नहीं चला करता, चलने के लिए तो अपनी ही टाँगों का विश्वास करना होगा। जिसमें आत्मविश्वास नहीं होता, उसमें अपनी शक्ति नहीं होती और जिसमें अपनी शक्ति नहीं होती, उसकी सहायता कौन कर सकता है? दूसरों के धन व बल से जीने वाला व्यक्ति व राष्ट्र जीवित नहीं रहता। तुम स्वयं आत्मविश्वास की भित्ति पर स्वप्नों के महल बनाओ। अपने हृदय की दासता नहीं मिटा सकता, वह परतन्त्रता की श्रृंखलाओं को कैसे काट सकता है? यदि तुम अपने विश्वास और धैर्य की रक्षा कर सके तो सफलता को तुम्हारे लिए दरवाजा खोलना होगा। कमजोर विचारों से अधिक दयनीय अवस्था और नहीं हो सकती।
अपने आगे जाने वाले इन चरण-चिन्हों को देखो, जिन्हें समय की धूल भी नहीं मिटा सकी। तुम सफल व्यक्तियों की लम्बी कतार देखो, जिनके कीर्तिमानों से आज भी आकाश गूँज रहा है। खून से लथपथ विजेताओं की श्रेणी, जो दिग्विजय करके रणभूमि में लौट रही है, सन्तों की यह पंक्ति जिसने आत्मबलिदान से जीवन में संगीत भरा है- केवल एक ही सम्बल लेकर चली थी - आत्मविश्वास। ये बड़े-बड़े लेख, ऊँचे-ऊँचे कीर्तिस्तम्भ, ये ऐतिहासिक पिरामिड, ये विशाल स्तूप केवल इतिहास के उन अध्यायों का गीत गा रहे हैं, जिन्हें आत्मविश्वासी व्यक्तियों ने अपने खून से लिखा था।
अभी ऐसा कोई गोला नहीं बना, मेरे मित्र, जो नेपोलियन को मार सके। आगे बढ़ो मेरे बहादुर सिपाहियों! यह कहकर नेपोलियन गोलियों की बौछार से घुस गया। कितना अटूट विश्वास था यह! इस विश्वास के आगे सम्सत यूरोप नतमस्तक हो गया।
श्री नेलसन जहाजी सेना के अफसर थे। शत्रु पक्ष के जहाज दिखाई दिए, वे टेनिस खेल रहे थे शत्रु के आगमन की सूचना पाकर भी वे टेनिस खेलते रहे। टेनिस समाप्त होने के पश्चात शतरंज खेलने लगे। सिपाहियों ने शत्रुओं के निकटतर आने की सूचना दी, तो उन्होंने उत्तर दिया, कोई परवाह नहीं, शतरंज भी समाप्त करेंगे और शत्रु को भी समाप्त करेंगे। इसी विश्वास से स्पेन के जहाजी बेड़े ने नेलसन से शिकस्त खाई थी।
कभी-कभी आत्मविश्वासी व्यक्ति अहंकारी लगता है। पर यह अहंकार शक्ति का पुंज होता है। ऐसी नम्रता से जो विश्वास के अभाव में पैदा होती है, ऐसा अहंकार कहीं श्रेष्ठ है, जिसकी नींव विश्वास पर आधिारित है। बाप के पसीने की गाढ़ी कमाई पर रंगरेलियाँ उड़ाने वाले उन खानदानी नवाबों से उस व्यक्ति का अहंकार कहीं उचित है, जिसने अपने पसीने से अपने आत्मविश्वास से धन कमाया है।
महाकवि शेक्सपीयर ने एक जगह कहा है- जो कमजोर, परावलम्बी और आगा-पीछा करने वाले हैं, ये आत्मनिर्भर रहने वालों के उदार अहंकार को समझ नहीं सकते। आत्मनिर्भर मनुष्य को इस बात की खुशी नहीं रहती कि उसे राजमुकुट मिल गया; बल्कि इस बात की खुशी रहती है कि उसमें राजमुकुट प्राप्त करने की शक्ति है।
आत्मविश्वासी व्यक्ति में आत्मनिर्भरता के अतिरिक्त आत्मसम्मान, असीम धैर्य, उदारता, साहस आदि गुणों का समावेश तो अपने आप हो जाता है। उसका अहंकार भी उदारता के कणों से सिक्त होता है। अपने दोषों को पैतृक मानकर अपनी कायरता की रक्षा मत करो। शूरवीर और कायर में एक शब्द का ही अन्तर है- आत्मविश्वास। असफलता व असंभव की भाषा में सोचना ही छोड़ दो, सदा सफलता की, विजय की बात करो। सफलता तुम्हारा जन्मसिद्ध अधिकार है। - डॉॅ. योगेश्वर देव
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
जैसा बोओगे वैसा काटोगे
Ved Katha Pravachan - 23 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev