प्राणी मात्र के कल्याण की कामना केवल वैदिक संस्कृति में ही निहित है, परन्तु पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की परम्परा शनै:-शनै: लुप्त होती जा रही है। अपसंस्कृति रूपी विष का एकमात्र उपचार वेदामृत है। राष्ट्र की वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों से व्यथित आचार्यश्री डॉ.संजयदेव जी ने वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार का महान संकल्प लिया है।
आचार्यश्री ने विधिवत चारों वेदों का गहन अध्ययन करने के पश्चात 'यजुर्वेद में पर्यावरण' विषय में डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि प्राप्त की। तत्पश्यात इन्हें विभिन्न शासकीय एवं अशासकीय कॉलेजों से प्रध्यापक पद के प्रस्ताव मिले, परन्तु राष्ट्र की वर्तमान स्थिति की पीड़ा और वैदिक संस्कृति के प्रसार की उत्कंठा के कारण इन प्रस्तावों को उन्होंने अस्वीकार कर दिया। आचार्यश्री का मत है कि प्रध्यापक का पद प्रप्त कर वे सपरिवार सुख-सुविधाओं का भोग तो कर सकते थे, किन्तु राष्ट्र और समाज के ऋणों से मुक्त नहीं हो सकते थे।
निज संस्कृति के प्रति आचार्यश्री की इसी पीड़ा ने जन्म दिया 'दिव्य मानव मिशन' को। मिशन के माध्यम से आचार्य संजयदेव जी अपने लक्ष्य की ओर सतत अग्रसर हैं। मिशन द्वारा वर्तमान में भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत मासिक पत्रिका ' दिव्ययुग' का अप्रैल 2002 से प्रकाशन किया जाता है। राष्ट्रवादी और वैदिक विचारों की प्रबल पक्षधर ' दिव्ययुग' पत्रिका राष्ट्र विरोधी तत्वों और सांस्कृतिक प्रदूषण के विरुद्ध आघात करने में किंचित मात्र भी नहीं चूकती। इस पत्रिका को हिन्दी भाषी राज्यों के अतिरिक्त सुदूर दक्षिण से लेकर पूर्वोतर के राज्यों में भी अच्छा प्रचार मिल रहा है।' दिव्ययुग' व्यक्ति पूजा से परे पूर्णत: राष्ट्रीय विचारों एवं वैदिक संस्कृति को समर्पित है।
मिशन की गतिविधियां अब विश्वव्यापी आकार ग्रहण कर रही हैं। इस क्रम में आचार्यश्री संजयदेव जी के दिव्य प्रवचन प्रति रविवार (23 जनवरी से 13 मार्च 2005 तक ) संस्कार टीवी चैनल पर प्रसारित होते रहे हैं। दिव्य-सन्देश शीर्षक से प्रसारित इन प्रवचनों का लाभ देश-विदेश के लाखों श्रध्दालुओं ने लिया है। इन प्रवचनों की सीडी की बहुत ज्यादा मांग आ रही है।
आचार्यश्री की अभिलाषा है कि नगरों से लेकर सुदूर वनांवल का कोई भी बालक न तो भुखा सोए और न ही अशिक्षित रहे । कोई भी गाय पोलीथीन खाकर असमय अपने प्राण न त्यागे। आचार्यश्री संजयदेव जी का अगला लक्ष्य नगरों-ग्रामों एवं वनांचलों में वैदिक संस्कारों से युक्त विद्यालयों और पाठशालाओं का निर्माण है जहाँ बालक प्राचीन और आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर सकें। मिशन द्वारा गोशालाओं का निर्माण भी प्रस्तावित है। गोशालाओं के निर्माण से न सिर्फ गौवंश की रक्षा होगी, बल्कि गौ-आधारित अर्थवयवस्था को भी समाज में प्रोत्साहन मिलेगा। 'वानप्रस्थ' आश्रम का निर्माण कर मिशन एकाकी जीवन जी रहे समाज के वरिष्ठजनों के पुनर्वास के लिए भी संकल्पित है।
आचार्यश्री के मार्गदर्शन में दिव्य मानव मिशन के सभी सदस्य इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सतत प्रयत्नशील हैं।