इससे पूर्व कि हिन्दू धर्म की विशेषताओं पर कुछ लिखा जाए, यह सोचना पड़ेगा कि "धर्म" शब्द "हिन्दू" के साथ ही क्यों? धर्म का अर्थ क्या है? संसार में जो शेष मनुष्य हैं, वे स्वयं को हिन्दू क्यों नहीं मानते? इन पर धर्म शब्द फिट क्यों नहीं होता? संसार में अनेक जातियॉं और मजहब हैं, मत-मतान्तर हैं, रिलीजन्स हैं। किन्तु "धर्म" शब्द का प्रयोग केवल हिन्दू के साथ होता है। ऐसा क्यों?
हिन्दू के साथ "धर्म" शब्द का प्रयोग होने का कारण स्पष्ट है और वह यह कि "हिन्दू जीवन-पद्धति का ही दूसरा नाम है।" संसार में शेष जितने भी मजहब, मत व रिलीजन्स हैं, उनमें अन्धविश्वास है, उनके जीने, रहने-सहने और पूजा आदि के ढंग संकुचित और सीमित हैं। जैसे मुसलमान वही है, जो मुहम्मद साहब तथा कुरान पर विश्वास रखता है, ईसाई वह है जो ईसा तथा बाइबिल का पुजारी है। इसी प्रकार हमारे देश में जिन हिन्दुओं ने जैन-बौद्ध तथा सिख मतों को ग्रहण कर लिया, वे भी स्वयं को हिन्दू नहीं कहते। उनकी आस्था भी जैन, बौद्ध ग्रन्थों और गुरु-ग्रन्थ साहब तक ही सीमित है। मत तथा धर्म में भी बहुत बड़ा अन्तर है। मत एक लकीर का नाम है, जो सीधी और सपाट है। जो दिखाई तो देती है, किन्तु इधर-उधर सोचने व तर्क की आज्ञा नहीं देती और शेष मतावलम्बियों को मनुष्य ही नहीं मानती।
किन्तु धर्म में विशालता तथा उदारता विद्यमान होती है। हिन्दू शब्द इस कसौटी अथवा व्याख्या पर खरा उतरता है। यदि हिन्दू शब्द पर गहराई से सोचा जाए तो उसका बहुत ही सीधा अर्थ यह होगा-
1. हिन्दू स्वच्छ जीवन का एक ढंग है।
2. हिन्दू मानवता का नाम है।
3. हिन्दू एक विशाल संस्कृति का नाम है।
4. हिन्दू सहिष्णुता और उदारता से परिपूर्ण है।
हिन्दू शब्द का प्रयोग कब से आरम्भ हुआ और इस देश का नाम भारतवर्ष, आर्यावर्त और हिन्दुस्थान कैसे पड़ा? इस विषय में जहॉं तक इतिहास हमें बताता है, इस देश पर पश्चिम दिशा में सिन्धु नदी अथवा सिन्धु प्रदेश की ओर से आक्रमण हुए। ये विदेशी आक्रमणकारी इस देश की भाषा और शब्दों का प्रयोग तथा उच्चारण सही-सही नहीं कर पाते थे। उन्होंने सिन्ध नदी के लिए "इण्डस" शब्द का प्रयोग किया। यही इण्डस शब्द क्रमश: बिगड़ते-बिगड़ते हिन्दू शब्द में परिणत हो गया। अत: यह हिन्दू शब्द भारत को विदेशियों की ही देन है। जब ये विदेशी आगे चलकर हिन्दुओं के निकट सम्पर्क में आए और भारत के मालिक ही बन बैठे तो उन्होंने हिन्दुओं के रहने के इस स्थान को "हिन्दुस्थान" कहना आरम्भ कर दिया और यहॉं रहने वाले हिन्दू कहलाये।
हिन्दुस्थान शब्द इतना व्यापक, प्रचलित और लोकप्रिय हो गया था कि देशवासियों ने स्वयं को हिन्दू कहलाने में ही गौरव का अनुभव किया। वैसे भी यदि देखा जाए तो जो भी नागरिक जिस देश में रहता है वह चाहे जिस मत, मजहब, रिलीजन में विश्वास रखता हो, वह उसी नाम से जाना जाता है। जैसे चीन में यदि कोई मुसलमान अथवा ईसाई मत को मानने वाला रहता है, तो वह चीनी कहलाता है। इसी प्रकार रूस, जर्मनी, अमरीका, जापान आदि देशों में रहने वाले नागरीकों के विषय में कहा जा सकता है। किन्तु विदेशियों की चाल व षड्यन्त्र के कारण इस देश में सदियों से रहने वाले यहॉं के नागरिक स्वयं को हिन्दू कहलाने में घोर लज्जा का अनुभव करते है। इस देश में अन्य मत-मतान्तरों के अनुयायी जैसे मुसलमान, ईसाई, जैन, बौद्ध, सिख आदि अपने आपको इण्डियन, भारतीय, हिन्दुस्तानी कहलाने में तो शायद अपनी तौहीन नहीं समझते, किन्तु अपने आपको हिन्दू कहलाने में चिढते हैं और अपने आपको हिन्दू समझने में संकोच का अनुभव करते हैं।
अब आप सोचेंगे कि आज तो इस देश में विदेशियों का मतलब नहीं रह गया। लेकिन नहीं, ऐसा नहीं है। हमारे पूज्य व लाड़ले तथा सत्तालोलुप नेहरू ने तो हिन्दुस्थान को दो भागों में बांटकर भारत व पाकिस्तान ये दो नाम दिए।
जैसाकि कहा जा चुका है कि इस देश पर पहले यवनों ने आक्रमण किया और इस देश का नाम आर्यावर्त, भारत और फिर हिन्दुस्तान हुआ। उनके बाद अंग्रेजों ने इस देश का नाम इण्डिया रखा और यहॉं के रहने वाले उनकी भाषा में इण्डियन कहलाये।
इसका कारण यह है कि इस देश का नागरिक इतना सीधा, सरल और उदारमना है कि इस देश में जब-जब जो भी विदेशी शासक आये ,उसने उन्हें आदर और उदारतापूर्वक स्थान दिया और उन्हीं के रंग में रंग गया।
अब इस देश में शेष जो भी नागरिक हैं, वे हिन्दू हैं। जो भी हिन्दू होने का दावा करते हैं, अपने को आर्य मानते हैं, क्योंकि इस देश का पुराना नम आर्यावर्त था और यहॉं के सभी निवासी आर्य थे। तो फिर यह हिन्दू धर्म क्या हुआ? इस देश को हम हिन्दुस्थान कैसे कहें?
तो फिर हिन्दू एक कपोल-कल्पित शब्द-मात्र है क्या? नहीं, ऐसा नहीं। हम एक विशाल संस्कृति, मनुष्यता, उदारता, सहिष्णुता और स्वच्छ-जीवन का ढंग मानते हैं और गर्व करते हैं कि हम हिन्दू हैं और हमारा धर्म हिन्दू है- चाहे विदेशियों ने किसी भी स्वार्थवश अथवा भूल से इस शब्द का प्रयोग किया हो। आज भी हिन्दू शब्द धर्म की कसौटी पर पूरा उतरता हैं।
हिन्दू "जीयो और जीने दो" की मीमांसा का नाम है। हिन्दू स्वच्छ जीवन जीने की प्रणाली का नाम है और संसार के हर व्यक्ति को, जो थोड़ा सा भी बुद्धिजीवी है, हिन्दू होने में और अपने आपको हिन्दू मानने में गौरव अनुभव करना चाहिए। वास्तव में आर्यत्व ही का दूसरा नाम हिन्दुत्व है| -बिशनस्वरूप निर्द्वन्द्व (पटवारी जी)
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