इतिहास के आंख खोलने से लेकर आज तक अबाध गति से आगे की ओर बढता हुआ हिन्दुत्व महानदियों की भांति ही शताब्दियों से विचार और कर्म की अनगिनत धाराओं को लेकर चलता आया है। इसने विविध आध्यात्मिक और सामाजि आन्दोलनों को जन्म दिया है। इसी प्रकार हिन्दुत्व बहुसंख्य भारतीयों का धर्म रहा है।
यहॉं तक कि तथाकथित मुस्लिम तथा ब्रिटिश शासनकालों में भी यही बहुसंख्यक भारतीय हिन्दू ही थे।
वस्तुत: यह हिन्दुत्व ही है जिसने पचास शताब्दियों से भी अधिक समय से भारतीय इतिहास से साथ खिलवाड़ किए जाने के बावजूद अनेक बाधाओं के होते हुए भी एक व्यापक सामाजिक संस्कार की रचना की। भारतीय इतिहास हिन्दुत्व के बिना उसी प्रकार अग्राह्य है जैसे इस्लाम के बिना अरब का इतिहास और ईसाइयत के बिना लातीनी अमेरिका का इतिहास। इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत में अन्य धर्मों द्वारा जो कार्य किया गया है उसे नकारा जा रहा है, बल्कि इस बात को चिह्नित करना ही इसका उद्देश्य है कि हिन्दुत्व की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विशिष्टता भारतीय परिदृश्य के सन्दर्भ में ऐसा तथ्य है, जिसका कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इस दृष्टि से हिन्दुत्व में सामाजिक सुधार की आवश्यकताएं सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए बहुत ही अर्थपूर्ण हो जाती हैं।
वास्तव में हिन्दू समाज सुधार उतना ही प्राचीन है, जितना कि प्राचीन स्वयं हिन्दुत्व है, इस अर्थ में कि इसकी महान् आध्यात्मिक स्वतन्त्रता इतनी सामर्थ्य रखती है कि उसका प्रत्येक ऋषि अपने निजी आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर वेदों और उपनिषदों में प्रतिपादित आध्यात्मिक सत्य का अपनी विचारधारा के अनुकूल प्रतिष्ठापन करता रहा है। भगवान् महावीर और भगवान् बुद्ध ऐसे असाधारण सुधारक थे जिन्होंने जाति-प्रथा और पशुबलि जैसी कट्टर सामाजिक व्यवस्था के विरूद्ध नई चेतना जाग्रत की।
इसके बाद का हिन्दू समाज सुधार का इतिहास ऐसे महापुरुषों से भरा हुआ है, जैसे कि गुरु नानक जिन्होंने अपनी आध्यात्मिक तथा दिव्य दृष्टि, प्रभावी व्यक्तित्व तथा आध्यात्मिक उपलब्धियों से हिन्दू समाज को नई दिशा दी।
वास्तव में हमारा स्वतन्त्रता आन्दोलन भी हिन्दू समाज सुधार आन्दोलनों के मार्ग से होकर ही आया है।
महादेव गोविन्द रानाडे तथा र.के. भंडारकर द्वारा सन् 1867 में महाराष्ट्र में स्थापित प्रार्थना समाज, 1875 में स्थापित आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती और 1897 में स्थापित रामकृष्ण मिशन के स्वामी विवेकानन्द आदि महापुरुषों द्वारा संचालित आन्दोलनों ने नवजागरण का वातावरण पैदा किया। यही हमारे स्वतन्त्रता आन्दोलन की नींव थी जो कि बीसवीं सदी के मध्य में राजनैतिक विजय का परिणाम थी।
हमारे समाज में बहुत-सी कुरीतियॉं आती गयीं। अस्पृश्यता भी उन्हीं का परिचायक है। अस्पृश्यता के खिलाफ स्वामी दयानन्द सरस्वती स्वामी विवेकानन्द, महात्मा गान्धी आदि ने आवाज उठाई। महामना मालवीय जी महाराज ने भी अस्पृश्यता को कलंक बताया।
अस्पृश्यता का लाभ विधर्मियों ने उठाया। विदेशी मिशनरियों ने गरीब हरिजनों को ईसाई बनाया। (अब भी चर्च द्वारा ऐसा किया जा रहा है। -सम्पादक, हिन्दू विश्व डॉट कॉम) विदेशी धन के दुरुपयोग से देश की एकता के लिये भी घातक खेल खेला जा रहा है। सरकार को इस ओर गम्भीरता से सोचना होगा।
हिन्दू समाज को संगठित व सुदृढ करने के लिए कुरीतियॉं मिटानी ही होंगी। साथ ही हिन्दुत्व पर आघातों को रोकने के लिऐ हमें सचेत होना होगा।-पूर्व राज्यपाल डा.कर्णसिंह (पूर्व महाराजा कश्मीर)
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Ved Katha Pravachan - 27 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
जैन साहित्य में रामकथा संबंधी कई ग्रंथ लिखे गए; जिनमें मुख्य हैं - विमलसूरीकृत पद्यधरित (प्रकृत), रविषेणाचार्यकृत पद्यपुराण (संस्कृत), स्वयंभुकृत पद्यचारित्र (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्रपुराण तथा गुणभद्रकृत उत्तरपुराण (संस्कृत।)। अन्य अनेक भारतीय भाषाओँ में भी रामकथा लिखी गई है।
Many texts related to Ramkatha were written in Jain literature; In which the main ones are - Vimalsurized Padyadharit (Prakrit), Ravishenacharyakrit Padyapurana (Sanskrit), Swayambhukrit Padayacharitra (Apabhramsa), Ramchandra Charitrapuran and Gunabhadrakrit Uttarapurana (Sanskrit.). Ram Katha has also been written in many other Indian languages.
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हिंदी एवं सहयोगी भाषाओँ में कम-से-कम ११, मराठी में ८, बंगला में २५, तमिल में १२, तेलुगु में ५ तथा उड़िया में ६ रामायणें मिलती हैं। हिंदी में लिखित गोस्वामी तुलसीदासकृत 'रामचरितमानस' ने उत्तर भारत में विशेष स्थान पाया है। इसके अतिरिक्त भी संस्कृत, गरजती, मलयालम, कन्नड़, असमिया, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाओँ में भी भगवान राम की कथा लिखी गई है।
At least 11 Ramayanas are found in Hindi and allied languages, 8 in Marathi, 25 in Bangla, 12 in Tamil, 5 in Telugu and 6 in Oriya. 'Ramcharitmanas' written in Hindi by Goswami Tulsidas has found a special place in North India. Apart from this, the story of Lord Rama has also been written in languages like Sanskrit, Garjati, Malayalam, Kannada, Assamese, Urdu, Arabic, Persian etc.