विद्यार्थी जीवन ही भावी जीवन की आधारशिला होता है। इस समय कोमल और निर्मल मन-मस्तिष्क को जो संस्कार प्रभावित करते हैं, उनकी स्पष्ट छाप अजन्मा रहती है। यह समय ऐसा होता है कि विद्यार्थी के मन-मस्तिष्क में विभिन्न विचार गतिशील रहते हैं। इन विचारों में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार की धाराएँ प्रवाहमान रहती हैं, अतः विद्यार्थी को अपना उचित और सार्थक मार्ग ढूँढने में सत्संग ही प्रभावी सिद्ध होता है। सत्संग के प्रभाव से विद्यार्थी अपने मन और मस्तिष्क की एकाग्र और शांत रख सकते हैं। सत्संग के प्रभाव से ही जीवन में अनुशासन, संयम और विनयशीलता के गुण प्राप्त होते हैं।
वैभव की लालसा भूख पैदा करती है और बाजारीकरण को बढ़ावा देती है। मनुष्य, प्रकृति और संस्कृति को तबाह करके कुछ मिलने वाला नहीं है। आश्रय, प्रसस्तियाँ, अंधानुकरण और किराए के दिमाग समाज को कभी बदल नहीं सकते। इस भाषाई साहित्यिक और सांस्कृतिक के इलाज के लिए हमें अपने वैद्य को अपने अंदर ही खोजना है।
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