श्रुतः प्रयोगो विषकन्यकाया राज्ञो वधार्थं क्रियते तथेति।
मस्तानिरूपामृतदायिनीयम् विषं गदघ्नं यदि पीयुषं तत्।।131।।
न केवलं स्त्री, नवचन्द्रिका सा न हास्यमस्यास्तु रतेश्र्च लास्यम्।
स्वरो न तस्याः कलकूजितं तद् दृष्टिर्न तस्या अमृतस्य वृष्टिः ।।132।।
न लाभ-लोभार्जित-वासमत्र करोति नूनं तु मदर्थमेव।
न बान्धवानामहितं करोति द्वेषो न तस्यास्तु ममैव मन्ये।।133।।
न स्वार्थयोगादिह संस्थिता सा न्यासो मदर्थं सुखपालनाय।
ममाङ्गणे सा तुलसीव मान्या कृष्णार्पिता सापि ममौषधिश्र्च।।134।।
न नर्तकी सा न च रक्षितापि सा राजकन्या यवनी-सुकन्या।
श्रीछत्रसालो जनकोऽस्ति तस्याः सम्मानयोग्या स्वजनैरिहापि।।135।।
किमर्थमस्या विषये विवादः? सा त्वेकनिष्ठा मयि राजकन्या।
बुन्देलराजः शिवराजमित्रम् स्वराज्यशत्रुः परचक्रमेव।।136।।
किं लौकिकं बन्धनमेव सत्यम्? क्व पेशवाहं यवनी क्व चेऽयम्?।
तस्यामस्तु जन्मापि मदर्थमेव नटोऽस्मि, देवः स च सूत्रधारः ।।137।।
तद् भौतिकं प्रेम महत्वपूर्णम् देहं विना किं परमात्मभक्तिः?।
सौन्दर्यमग्रे सगुणत्वमाप तत्सन्निधिः सन्निधिरात्मनो मे।।138।।
भीमो हिडिम्बाम् परणीय पत्नीम् अभून्न सः किं ननु पाण्डुपुत्रः?।
किमर्जुनस्याप्युलुपेर्विवाह आचार्यभीष्मादिसमक्षमेव?।।139।।
किं सैनिकोऽहं वनितापहर्ता? किं निन्दनीया यवनीति सात्र?।
युद्धे जयं मे तु जनाः स्तुवन्ति निन्दन्ति केचिन्मम चेतनां ताम्।।140।।
हिन्दी भावार्थ
तुम मस्तानी को विषकन्या न कहो। राजा को मारने के लिए शत्रु विषकन्या का प्रयोग करते हैं, यह मैंने सुना है। किन्तु मस्तानी के रूप में अमृत देने वाली कन्या प्राप्त हुई है। यदि रोग को नष्ट करने में विष सक्षम है, तो वह विष नहीं अपितु अमृत है।।131।।
मस्तानी के विषय में क्या कहा जाये। वह केवल एक स्त्री नहीं, अपितु (आकाश में उदित) नई चॉंदनी है। उसकी हॅंसी हॅंसी नहीं, अपितु रति देवी का विलास है। उसका स्वर स्वर नहीं, अपितु मधुर कूजन है। उसकी दृष्टि दृष्टि नहीं, अपितु अमृत की वृष्टि है।।132।।
यहॉं वह स्वार्थ के लिए नहीं, अपितु मेरे लिए रह रही है। हमारे सगे-सम्बन्धियों का वह अहित नहीं करती है। आप लोग उसका नहीं, अपितु मेरा द्वेष करते हैं। (वह राजकन्या है, मेरे ही लिए यहॉं रह रही है)।।133।।
चिमाजी, स्वार्थ के कारण मस्तानी यहॉं पुणे में नहीं रहती है। उसके पिताश्री द्वारा सुखपूर्वक पालन करने हेतु दी हुई यह धरोहर है। कन्या ऐसी धरोहर होती है जो वापस लौटाई नहीं जाती है। मेरे आंगन की तुलसी है मस्तानी। कृष्ण की भक्त और मेरे लिए औषधि के समान प्रेरक और शक्तिवर्धक है।।134।।
मस्तानी न तो कोई नृत्यांगना है और न ही रखेल। वास्तव में एक मुस्लिम रानी से जन्मी राजा छत्रसाल की वह राजकन्या है। मैं चाहता हूँ, हमारे रिश्तेदार और घर के लोग उसके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करें। (उससे द्वेष न करें)।।135।।
आप लोग मस्तानी के विषय में क्यों व्यर्थ का विवाद खड़ा कर रहे हैं? मेरे प्रति उसका प्रेम असाधारण है और वह एक राजकन्या है। बुन्देलखण्ड के वे राजा छत्रसाल छत्रपति शिवाजी के मित्र रहे हैं। वास्तव में स्वराज्य के शत्रु तो बाहर से आये हुए आक्रमणकारी लोग हैं।।136।।
क्या विवाह आदि सम्बन्ध केवल लौकिक होते हैं? अलौकिक नहीं होते? वैसे देखा जाये, तो कहॉं मैं यहॉं पेशवा हूँ और कहॉं बुंदेलखण्ड की एक यवनी? किन्तु मस्तानी का जन्म ही मेरे लिए हुआ था। मैं तो जीवन के इस नाटक में एक नट हूँ और ईश्वर इस नाटक का सूत्रधार है। हम दोनों का सम्बन्ध अलौकिक है।।137।।
(हमारा) वह भौतिक प्रेम भी महत्वपूर्ण है। भला, कन्या शरीर के बिना ईश्वर की (सगुण) भक्ति सम्भव है? देखो, मस्तानी का सौन्दर्य आगे चलकर (भक्ति के) सगुण रूप को धारण कर गया है। अब तो उसका साथ मेरी आत्मा की धरोहर बन गया है जो मेरे लिए सुकून देता है।।।138।।
भीम ने हिडिम्बा से विवाह किया था। क्या वह पाण्डु राजा का पुत्र नहीं था? उधर अर्जुन ने पूर्व देश की उलुपी नामक कन्या से विवाह रचा था और क्या आचार्य पितामह भीष्म आदि वरिष्ठ लोगों ने उसे देखा? अर्थात् हम दोनों के विवाह के विषय में ही क्यों विवाद खड़ा किया जा रहा है?।।139।।
राव आगे पूछते हैं- "क्या, मैं ऐसा सैनिक हूँ जिसने किसी अबला का अपहरण किया हो? क्या, उसकी माता एक यवनी है इसलिए वह निन्दा के योग्य है? (वह तो एक राजकन्या है।) लोग मेरी प्रशंसा करते हैं, क्योंकि मुझे युद्ध में विजय प्राप्त होती है, किन्तु कुछ ऐसे भी लोग हैं जो (मेरे विजय के लिए कारणीभूत) चेतना की ही निन्दा करते हैं।।140।।
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