न छूरिका सा तु कृपाणिका मे शत्रोर्वधार्थं मम हस्तलग्ना।
सा नेच्छति स्वीयजनाभिहन्तुं रणेऽपि मां प्रेरयतीव मन्ये।।141।
तस्याश्च गङ्गाजलवत् पवित्रं शुद्धं चरित्रं जन-संस्तुतं च।
श्रीकृष्ण-पूजां कुरुते च नित्यम् सा योगपत्नी तु पतिव्रतैव।।142।।
भाग्यं विधाता विदधाति नूनम् अज्ञातयोगादुपकारकः सः।
तीक्ष्णा हि धारा नवखड्गशोभा ममाथ सा मूर्तिमती जयश्रीः।।143।।
काशी प्रिया मे गृहधर्मपत्नी मस्तानि-साकं सुखदा मदर्थम्।
अन्यासु नारीषु न मे प्रसक्तिः द्वयोर्भगिन्योः पतिरस्मि मान्यः।।144।।
कुद्धापि वृद्धा जननी तु सेव्या पत्नी च काशी भगिनी प्रियायाः।
निन्दन्तु ते कापुरुषा प्रियां मे न काकशापात् तु मृगा म्रियन्ते।।145।।
आत्मा शरीरं च सुखान्वितौ मे सा ब्रह्मशक्तिः सुखदास्ति माया।
श्रुतं मया, तां प्रकृतिं विनैव तत् पौरुषं किं पुरुषस्य सत्यम्?।।146।।
प्रीतिर्वियोगेऽप्यनुवर्तते सा प्रेमानुबन्धो जननान्तरेऽपि।
मुक्ता रतेर्येऽपि रतेर्न मुक्तास् ते योगिनोऽप्यात्मरता भवन्ति।।147।।
शिवाजिराजेन कृतं स्वराज्यं तस्यैव वृद्ध्यर्थमयं प्रयासः।
शौर्येण तामुत्तरभारताशां प्रवेष्टुकामोऽरि-विनाश-हेतोः।।148।।
स्वार्थेन्धनप्रज्वलिताग्निनैव रणे विदग्धोऽपि गृहे तु दग्धः।
राज्यं नवं देशहिताय कुर्याम् क्षुद्धा न रक्षन्ति कदापि देशम्।।149।।
नारी हि शक्तिर्निजधर्मरक्षां करोतु राष्ट्रे नवचेतनां च।
शक्तिं विना वीरवरो नरोऽपि शक्नोति किं राष्ट्रहिताय कार्यम्?।।150।।
हिन्दी भावार्थ
भाई चिमाजी, तुम मस्तानी को छुरी कहते हो, वास्तव में मस्तानी छुरी नहीं है, वह है मेरी तलवार। (सौभाग्य से) शत्रुओं को मारने के लिए वह मेरे हाथ लगी है। मगर मेरे सगे-सम्बन्धियों के लिए वह घातक नहीं है। मैं तो मानता हूँ कि युद्धभूमि पर भी मुझे वह प्रेरणा देती है।।141।।
भाई, उसका चरित्र गंगा के जल के समान पवित्र और निर्मल है। जनता भी उसकी प्रशंसा करती है। वह नित्य श्रीकृष्ण भगवान् की पूजा करती है। संयोग से वह मेरी पत्नी है और है पतिव्रता भी।।142।।
विधाता सचमुच भाग्य का विधान करता है। वह अनपेक्षित रूप में उपकारक होता है। जिस प्रकार तीक्ष्ण धार तलवार की शोभा होती है, वैसी ही यह मस्तानी मेरी मूर्तिमती विजयालक्ष्मी है। (युद्ध में साक्षात् विजयश्री ही मुझे प्राप्त हो रही है)।।143।।
काशी मेरी गृहस्थ धर्म की प्रिय पत्नी है और मेरे सुख को ध्यान में रखकर ही काशी का मस्तानी के साथ व्यवहार सुखद है। अन्य महिलाओं में मेरी कोई रुचि नहीं होती है। दोनों बहनों जैसी रहतीं हैं और मैं उनका पति हूँ, जो मान्य हूँ।।144।।
मेरी माताजी वृद्ध हैं, वह नाराज भी होगी तो भी उसकी सेवा करनी चाहिये। और मेरी बड़ी पत्नी काशी मस्तानी की बहन जैसी है। क्षुद्र लोग यहॉं मस्तानी की निन्दा करते हैं। किन्तु कौओं के शाप से पशु मरते नहीं। (यहॉं मराठी में एक कहावत है "कावळयाच्या शापाने गुरे (पशु) मरत नसतात')।।145।।
मेरी चिन्ता न करो। मेरे आत्मा और शरीर दोनों का कुशल है। वह एकमेव ब्रह्म की शक्ति माया भी मझे सुख देती है। मैंने विद्वानों से सुना है उसके अनुसार, क्या सांख्य में जो प्रकृति है, उसके बिना पुरुष (चैतन्य) का कोई पौरुष होता है? अर्थात् अध्यात्म के अनुसार भी मेरी प्रेरकशक्ति मस्तानी है, उसके बिना मेरा पराक्रम सार्थक नहीं है।।146।।
प्रीति वियोग होने पर भी दूसरे जन्म में (प्रिय का) अनुसरण करती है। रति को छोड़ने वाले मुक्त योगी भी रति से छुटकारा कहॉं पाते हैं? रति से विरक्त भी रति से मुक्त नहीं होते। वे योगी भी "आत्मरत' होते हैं। मस्तानी का प्रेम भी अमर है।।147।।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य-स्थापना की। उसे आगे बढ़ाने के लिए यह प्रयास है। शत्रु के विनाश के लिए मैं शौर्य के साथ उत्तर भारत में प्रवेश करना चाहता हूँ। (अर्थात् इस कार्य में मस्तानी द्वारा छत्रसाल से जोड़ा गया (सम्बन्ध उपकारक है)।।148।।
स्वार्थ के इन्धन से ज्यादा भड़कने वाली आग के कारण कोई वीर रण में प्रवीण होने पर भी घर के कलह की आग से झुलस जाता है। देश के हित के लिए मैं नये राज्य की भी स्थापना कर सकता हूँ (मेरा लक्ष्य व्यापक है)। क्षुद्र लोग अपने देश की रक्षा नहीं करते। (यो लोग मेरे देशहित के महान् कार्य को नहीं जानते, इसका मुझे दुःख है)।।149।।
नारी एक शक्ति है। वह अपने धर्म की रक्षा करें तथा भारत में नया चैतन्य निर्माण करें। कोई बड़ा वीर व्यक्ति भी शक्ति के बिना राष्ट्रहित का कार्य कैसे कर सकता है?।।150।।l
लेखक- डॉ. प्रभाकरनारायण कवठेकर
दिव्ययुग फरवरी 2009 divyayug february 2009
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