महाराष्ट्र प्रान्त के किसी गॉंव में एक निर्धन परिवार रहता था। गृहपति निर्धन तो था ही, लोभी भी था। उसके एक समझदार पुत्र था। अकस्मात् पुत्र बीमार हो गया। रोग यहॉं तक बढ़ा कि घर वालों ने उसके जीने की आशा छोड़ दी। कोई भी दवा उसके लिये कारगर न हो सकी। आखिर एक फकीर ने उस निर्धन से कहा- ""यदि तुम मुझे एक हजार अशर्फियॉं दो तो मैं तुम्हारे पुत्र को अच्छा कर दूँगा।'" वह इतना धन कहॉं से लाता? अतः गृहपति चिन्ता के सागर में डूबने उतराने लगा।
औरंगजेब का जमाना था। देश में राजनीतिक विप्लव की आँधी बड़े वेग से चल रही थी। एक ओर औरंगजेब अपनी सारी शक्ति लगाकर तेजी से क्रूर दमन-चक्र चला रहा था। दूसरी ओर देश के सपूत राष्ट्रीय यज्ञ में हॅंस-हॅंसकर अपने प्राणों की आहुति दे रहे थे, लड़ रहे थे। औरंगजेब की खड्ग के नीचे पशुता नङ्गी होकर नाच रही थी। मनुष्यता का दम घुट रहा था।
इसी समय महाराष्ट्र केशरी शिवाजी औरंगजेब के कारागार से निकले और घूमते-घामते उसी गांव के मन्दिर में आकर ठहरे। औरंगजेब ने यह आज्ञा निकाली कि ""जो कोई भी शिवाजी को पकड़कर हमारे हाथों में सौंप देगा, उसे मुंहमांगी अशर्फियॉं इनाम में दी जाएंगी।"' जब उस गृहस्थ को पता चला कि औरंगजेब ने शिवाजी के पकड़ने वाले को मुँहमांगी आशर्फियॉं इनाम देने का ऐलान किया है तो वह सोच में पड़ गया। मन में पाप आ समाया। उसे किसी तरह यह भी मालूम हो गया कि शिवाजी उसी गॉंव में ठहरे हुए हैं। उसने औरंगजेब को सूचना देकर अपने पुत्र की चिकित्सा के लिए एक हजार अशर्फियॉं प्राप्त करने का निश्चय किया।
घर वालों ने उसे बहुत समझाया कि ऐसे महापुरुष को उस दुष्ट के हवाले हरगिज नहीं करना। परन्तु उसने उनकी एक न सुनी। सुबह जाने का निश्चय किया। उस निर्धन की पुत्रवधू बुद्धिमती थी। उसके मन में देश जाति, धर्म और राष्ट्र के प्रति बड़ा प्रेम था। वह वहीं खड़े-खड़े बातें सुन रही थी। उससे यह नहीं सहा गया।
घनघोर अंधेरी रात थी। लेकिन वह कुलवधु अकेली ही मन्दिर की ओर चल पड़ी। इधर मन्दिर में शिवाजी किसी की आहट पाकर सतर्क हो गये। डपटकर पूछा- कौन है?
तत्काल एक तरुणी उनके सामने आयी तो वे बड़े चकित हुए। उन्होंने विस्मय में पूछा- ""क्या है बेटी? यहॉं इस समय क्यों आयी हो ?''
युवती ने कहा- ""महाराज, आप तुरन्त इस गॉंव से चले जाएं।'' शिवाजी ने पूछा- क्यों? इस पर उसने आदि से अन्त तक सारी बात कह सुनाई। यह भी कह दिया कि उसका श्वसुर सुबह ही बादशाह को इसकी सूचना देने चला जाएगा।
सब बातें सुनकर शिवाजी को बड़ा अचम्भा हुआ कि यह स्त्री अपने पति की मृत्यु की चिन्ता न करके मुझे क्यों बचाना चाहती है। पूछने पर उसने कहा- ""महाराज, आज आप ही राष्ट्र के कर्णधार हैं। यदि आप नहीं रहे तो राष्ट्र में लाखों विधवायें हो जायेंगी। ऐसे तो केवल मैं ही विधवा होऊंगी। मुझे पति से प्रेम है, पर राष्ट्र को जीवन दान मिले तो यह मेरे लिये गौरव की बात होगी। त्याग और उत्सर्ग में ही जीवन की सफलता है।'"
शिवाजी उसकी राष्ट्रभक्ति को देखकर गद्गद् हो उठे। वे चले गये, किन्तु जल्द ही उन्होंने बहुत सा धन भेजा। 10-12 दिनों में उसका पति भी अच्छा हो गया। पति ने पूछा- ""तमाम दवा के व्यय की व्यवस्था किसने की ?'' पत्नी का उत्तर सुन युवक शिवाजी का सहयोगी और पूर्ण राष्ट्रभक्त बन गया। धन्य थी वह महिला, धन्य थे शिवाजी! दिव्य युग मार्च 2009 Divya yug march 2009
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
मरने के बाद धर्म ही साथ जाता है - 2
Ved Katha Pravachan -2 (Explanation of Vedas & Dharma) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Vishwa | Divya Manav Mission | Vedas | Hinduism | Hindutva | Ved | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Acharya Dr Sanjay Dev | Divya Yug | Divyayug | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Vedic Culture | Sanatan Dharma | Indore MP India | Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir | Gayatri Mantra | Mantras | Pravachan | Satsang | Arya Rishi Maharshi | Gurukul | Vedic Management System | Hindu Matrimony | Ved Gyan DVD | Hindu Religious Books | Hindi Magazine | Vishwa Hindu | Hindi vishwa | वेद | दिव्य मानव मिशन | दिव्ययुग | दिव्य युग | वैदिक धर्म | दर्शन | संस्कृति | मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आचार्य डॉ. संजय देव