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Arya Samaj Indore - 9302101186. Arya Samaj Annapurna Indore |  धोखाधड़ी से बचें। Arya Samaj, Arya Samaj Mandir तथा Arya Samaj Marriage Booking और इससे मिलते-जुलते नामों से Internet पर अनेक फर्जी वेबसाईट एवं गुमराह करने वाले आकर्षक विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं। अत: जनहित में सूचना दी जाती है कि इनसे आर्यसमाज विधि से विवाह संस्कार व्यवस्था अथवा अन्य किसी भी प्रकार का व्यवहार करते समय यह पूरी तरह सुनिश्चित कर लें कि इनके द्वारा किया जा रहा कार्य पूरी तरह वैधानिक है अथवा नहीं। "आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी अन्नपूर्णा इन्दौर" अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट द्वारा संचालित इन्दौर में एकमात्र मन्दिर है। भारतीय पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (Indian Public Trust Act) के अन्तर्गत पंजीकृत अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट एक शैक्षणिक-सामाजिक-धार्मिक-पारमार्थिक ट्रस्ट है। आर्यसमाज मन्दिर बैंक कालोनी के अतिरिक्त इन्दौर में अखिल भारत आर्यसमाज ट्रस्ट की अन्य कोई शाखा या आर्यसमाज मन्दिर नहीं है। Arya Samaj Mandir Bank Colony Annapurna Indore is run under aegis of Akhil Bharat Arya Samaj Trust. Akhil Bharat Arya Samaj Trust is an Eduactional, Social, Religious and Charitable Trust Registered under Indian Public Trust Act. Arya Samaj Mandir Annapurna Indore is the only Mandir controlled by Akhil Bharat Arya Samaj Trust in Indore. We do not have any other branch or Centre in Indore. Kindly ensure that you are solemnising your marriage with a registered organisation and do not get mislead by large Buildings or Hall.
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विविध युद्धों में मुख्य रक्षक और सहायक परमेश्वर

3म्‌ यमग्ने पृत्सु मर्त्यमवा वाजेषु यं जुनाः।

स यन्ता शश्वतीरिषः।। ऋग्वेद 1.27..7

ऋषिः आजीगर्तिः शुनःशेपः।। देवता अग्निः।।छन्दः गायत्री।।

 विनय- इस संसार में मनुष्य को प्रत्येक अभीष्ट फल पाने के लिए लड़ाइयॉं लड़नी पड़ती हैं। संसार में नाना प्रकार के संघर्ष चल रहे हैं। हे प्रभो ! जिस मनुष्य की तुम इन संग्रामों में रक्षा करते हो अर्थात्‌ जिस तुम्हारे अनन्य भक्त को सदा तुम्हारी सहायता मिलती रहती है, उस मनुष्य को नित्य अक्षय अन्न प्राप्त होते हैं। उसे रोटी के सवाल के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ती पड़ती। वह इससे निश्चिन्त हो जाता है, क्योंकि उसे एक नित्य अन्न मिल जाता है, जिससे वह सदा ही तृप्त बना रहता है। वह जानता है कि जिसे तूने यह शरीर दिया है और जो तू उसके इस शरीर की नाना तरह से रक्षा कर रहा है, वही तू उसके इस शरीर को अन्न भी देता रहेगा। सब दुनिया के पशु-पक्षियों की चिन्ता करने वाला तू उसके शरीर की भी खुद चिन्ता करेगा, नहीं तो शरीर को ही वापस ले लेगा। वह जानता है कि अपने भक्तों के प्रति तेरी यह प्रतिज्ञा है- तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं भजाम्यहम्‌। भक्तों के योगक्षेम करने की चिन्ता तूने अपने ऊपर ले रखी है। बस यही ज्ञान है जिसके कारण वे निश्चिन्त रहते हैं तृप्त रहते हैं। यही ज्ञान "नित्य अन्न' है। यह रोटी का अन्न तो अनित्य है। आज खाते हैं, कल फिर भूख लग आती है। इससे नित्यतृप्ति प्राप्त नहीं होती, पर उस आत्म-ज्ञान को प्राप्त करके वे सदा के लिए तृप्त हो जाते हैं। वे इसी आत्मज्ञान पर जीते हैं, रोटी पर नहीं जीते। अतएव रोटी न मिलने पर (शरीर छूटने पर) वे मरते भी नहीं, वे अमर हो चुके हैं। हम लोग रोटी पर ही जीते हैं और रोटी न मिलने पर मर जाते हैं। इस अनित्य अन्न (रोटी) के हमेशा मिलते रहने का प्रबन्ध करके यदि इसे नित्य बनाने का यत्न किया जाए तो भी यह नित्य नहीं बनता, नित्यतृप्तिकारक नहीं रहता। क्योंकि हमेशा अन्न मिलते रहने पर भी यह शरीर एक दिन बुढ्‌डा होकर छूट ही जाता है। रोटी उस समय उसकी तृप्ति व रक्षा नहीं कर सकती। अतः नित्य-अन्न तो ज्ञानतृप्ति ही है। हे परमेश्वर! इस युद्धमय संसार में तुम जिसके सहायक होते हो, उसे यह शश्वत्‌ अन्न देकर इस शश्वत्‌ "इष्‌' का स्वामी बनाकर उसे अमर भी कर देते हो।

शब्दार्थ- अग्ने=हे अग्ने! तू यं मर्त्यम्‌=जिस मनुष्य की पृत्सु अवाः=युद्धों में रक्षा करता है और यं वाजेषु जुनाः और जिसकी युद्धों में सहायता करता है सः=वह मनुष्य शश्वतीः=नित्य सनातन इषः=अन्नों को यन्ता=वश करता है, प्राप्त करता है। आचार्य अभयदेव विद्यालंकार, दिव्ययुग मार्च 2009, Divyayug march 2009

 

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