ओ3म् त्वमग्न इन्द्रो तृष्भः सतामसि त्वं विष्णुः उरुगायोः नमत्यः।
त्वं ब्रह्म रयिविद् ब्रह्मणस्पते त्वं विधर्तः सचसे पुरन्ध्याः।। ऋग्वेद 2.1.3।।
अथर्ववेद के तृतीय काण्ड का बारहवॉं सूक्त बहुत महत्वपूर्ण है। इस सूक्त का ऋषि ब्रह्मा है। यह नाम संकेत देता है कि इस सूक्त को नवनिर्माण की दृष्टि से समझा जाना चाहिए।
इसका देवता शाला अथवा वास्तु-भवननिर्माण-विद्या का अधिष्ठाता (वास्तोष्-पति) माना जाता है। इस सूक्त के मन्त्रों को भवन-निर्माण के सन्दर्भ में समझा जाता है और इसके मन्त्रों को प्रायः मकान की नींव डालते समय बोला जाता है। पर एक शाला हमारा जीवन भी है। वास्तव में यह सूक्त जिस शाला का निर्माण बताता है वह जीवनरूप शाला है। ""यहॉं ही ध्रुव शाला का मापना करता हूँ'' (इहैव ध्रुवां नि मिनोमि शालाम्) कहकर इसी जगत् में अपनी जीवन-रूप शाला का निर्माण करना है। वह शाला ध्रुव हो, सदा अभावरहित हो और आनन्द रूप घृत कर सेचन करे। उसमें हम सर्व-वीर, सु-वीर और अरिष्ट-वीर होकर संचरण कर सकें।
सूक्त में शाला का जो वर्णन दिया गया है उससे ऐसा लगता है कि किसी भौतिक गृह का वर्णन किया जा रहा है, पर उस पूरे वर्णन का तात्पर्य तभी समझ में आ सकता है जब सूक्त में वर्णित शाला को जीवन-शाला के रूप में समझा जाए। शाला को जब अश्वावती, गोमती और सूनृतावती के साथ-साथ ऊर्जस्वती, घृतवती और पयस्वती कहकर महान् सौभाग्य हेतु ऊपर उठने के लिए कहा जाता है तो निस्सन्देह शाला के लिए प्रयुक्त विशेषण किसी गम्भीर अर्थ के द्योतक भी हैं। वेद में अश्व भावना-शक्ति का और गौ ज्ञान शक्ति का प्रतीक है। अतः अश्वावती, गोमती कहने से अभिप्रायः यह है कि हमारी जीवन शाला भावना और ज्ञान दोनों शक्तियों से युक्त हो। पर इन दोनों शक्तियों की सार्थकता तभी होगी जब उनमें "ऊं षु' की अभिव्यक्ति होकर शाला को सू-नृतावती बनाया जा सके। तभी वह ऊर्जा, दीप्ति (घृत) और आनन्द (पयः) से युक्त होकर महान् सौभाग्य को प्रदान करेगी। यह जीवन-शाला धारण करने वाली होती हुई भी बृहत् स्वातन्त्र्य देने वाली और पूति गन्ध को भी प्रियता प्रदान करने वाली हो। उसमें सायंकाल को वत्स, कुमार और गाएं सभी स्पन्दन करते हुए आकर एकत्र हों। इस शाला का निर्माण प्रज्ञानपूर्वक सविता, वायु, इन्द्र और बृहस्-पति करते हैं। उदक और घृत से मरुत इसका सेचन करते हैं और राजा भग कृषि का विस्तार करते हैं।
इसके साथ ही शाला को मान की पत्नी कहकर सम्बोधित किया गया है। शरणा, स्योना, देवी कहकर उसे देवों के द्वारा देश-काल से परे निर्मित हुआ कहा गया है। अतः अब उससे प्रार्थना की जाती है कि वह तृण को आच्छादित करती हुई सु-मनाः हो और हमारे लिए वीरों से युक्त रयि प्रदान करे। इससे स्पष्ट है कि यहॉं शाला देवी से अभिप्राय उस ब्रह्मी शक्ति से है जिसे साधना के द्वारा साधक अपने अतिमानसिक जगत् में विभिन्न दिव्य शक्तियों के सहित आविर्भूत करता है। यही वह शक्ति है जो सम्पूर्ण नवनिर्माण की पालिका होने के कारण मान की पत्नी (मानस्य पत्नी) कही जाती है। यही दिव्य शक्ति विरोधी तत्व रूप तृण को ढकती हुई शोभन-मनाः होकर हमें अतिमानसिक बल से युक्त वह आध्यात्मिक शक्ति प्रदान कर सकती है जिसे मन्त्र में सह वीर्यं रयिम् कहा गया है। इस शक्ति का जो वंश चलता है वह वस्तुतः स्वयं जीवन है जिसको उग्र कहा गया है। पर याचना की गई है कि वह अपनी उग्रता के साथ-साथ विराजमान होता हुआ ऋत के द्वारा स्थिरता पर आरूढ़ हो और जीवन के जो शत्रु हैं उनको नष्ट करे, ताकि विविध विषयों को ग्रहण करने वाले जो इन्द्रिय रूप गृह हैं उनमें रहने वाली शक्तियॉं हिंसित न हों और हम सर्व-वीर होकर सौ वर्ष तक जी सकें। इस जीवन-शाला में जगत् के साथ वत्स, कुमार और तरुण आएं और अनेक दधि-कलशों सहित यह छलकता हुआ कुम्भ आए।
अगले मन्त्र में जिस नारी को सम्बोधित किया गया है वह संभवतः वही देवी है जिसको मान की पत्नी कहा गया है। उससे कहा गया है कि हमारे व्यक्तित्व रूप कुम्भ को अमृत से युक्त घृत-धास से भर दो और इसे पीने वालों को अमृत से सन्दीप्त कर दो। अन्तिम मन्त्र में उपसंहार करते हुए ब्रह्मा ऋषि कहता है कि मैं यक्ष्मा-रहित और यक्ष्म-नाशक इन आपः को प्रकृष्ट रूप से भरता हूँ और अमृत अग्नि के साथ विविध विषयों को ग्रहण करने वाले इन्द्रिय रूप गृहों को प्रसन्नता प्रदान कर रहा हूँ। यहॉं अग्नि के पूर्व 'अमृत' विशेषण लगाकर यह संकेत कर दिया है कि जिस अग्नि की चर्चा की जा रही है, वह साधारण मृत अग्नि नहीं है, अपितु वह अग्नि अमृत है। दूसरे शब्दों में यह दिव्य ज्ञानाग्नि है जो साधना के द्वारा अतिमानसिक स्तर से इन्द्रियों में लाई जाती है। और उसके साथ आने वाले जो आपः कहे गये हैं वे भी साधारण जल नहीं हो सकते, अपितु वे शुद्ध प्राण हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आत्मा को ब्रह्म-सायुज्य के द्वारा प्राप्त होते हैं और जिनको ऋग्वेद में बार-बार आपो देवीः अथवा आपो दिव्याः कहकर स्मरण किया जाता है।
अतएव सूक्त के चतुर्थ मन्त्र में सविता, वायु, इन्द्र और बृहस्-पति (बृहः=बृहत् का पति) को प्रज्ञानपूर्वक शाला का निर्माण करने वाला कहा गया है। इसका कोई विशेष तात्पर्य होना चाहिए।
इस प्रसंग में यह उल्लेखनीय है कि ऋग्वेद 2.1 के अनुसार अग्नि सविता (मन्त्र 7) भी है और इन्द्र (मन्त्र 3) भी है। उसे जब अरुण वात के साथ गमन करने वाला (मन्त्र 6) कहा जाता है तो संकेत अग्नि के वायु रूप का होना चाहिए। अग्नि को बृहस्-पति तो अनेक बार कहा गया है (ऋग्वेद 3.26.2, 5.43.12 आदि)। बृहस्-पति का ही एक रूप ब्रह्मणस् पति (ब्रह्म का पति) है। अग्नि को जब इन्द्र विष्णु अथवा ब्रह्मा कहा जाता है, तो उसे ब्रह्मणस् पति कहकर सम्बोधित किया जाता है। इसका अभिप्राय है कि दिव्य ज्ञानाग्नि सविता, इन्द्र, वायु, बृहस्पति आदि देवों के रूप में व्यक्त होकर जीवन-शाला का निर्माण करता है। यही मरुत नामक उन प्राणों का रूप धारण करता है जो "रोना बन्द करने वाले' कहे जाते हैं और वस्तुतः अतिमानसिक स्तर के शान्त प्राण हैं। ये प्राण जिस उदक और घृत से जीवन-शाला को सिंचित करते हैं वह वास्तव में मनुष्य के मूलाधार से उदीयमान वह शक्ति है जो उत्तरोत्तर बढ़ती हुई घृत नामक दीप्ति में प्रकट होती हैा। अग्नि ही "भजन' क्रिया में प्रकट होने वाली वह शक्ति है जो भग (ऋग्वेद 2.1.7) कहलाती है जिसे शाला में कृषि का विस्तार करने वाला कहा गया है। यह कृषि मनुष्य के व्यक्तित्व की वह कर्षण क्रिया है जो जीव को अ-सत् से खींचकर सत् की ओर ले जाने के लिए प्रयत्न करती है। इसी क्रिया के फलस्वरूप हमारे प्राण "कृष्टयः' बनते हैं और उन्हीं के समवेत रूप को प्राप्त करके मनुष्य कृष्टि बनता है। दिव्ययुग जनवरी 2013, Divyayug January 2013
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
चारों वेदों के अलग अलग नाम क्यों
Ved Katha Pravachan - 58 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
Hindu Vishwa | Divya Manav Mission | Vedas | Hinduism | Hindutva | Ved | Vedas in Hindi | Vaidik Hindu Dharma | Ved Puran | Veda Upanishads | Acharya Dr Sanjay Dev | Divya Yug | Divyayug | Rigveda | Yajurveda | Samveda | Atharvaveda | Vedic Culture | Sanatan Dharma | Indore MP India | Indore Madhya Pradesh | Explanation of Vedas | Vedas explain in Hindi | Ved Mandir | Gayatri Mantra | Mantras | Pravachan | Satsang | Arya Rishi Maharshi | Gurukul | Vedic Management System | Hindu Matrimony | Ved Gyan DVD | Hindu Religious Books | Hindi Magazine | Vishwa Hindu | Hindi vishwa | वेद | दिव्य मानव मिशन | दिव्ययुग | दिव्य युग | वैदिक धर्म | दर्शन | संस्कृति | मंदिर इंदौर मध्य प्रदेश | आचार्य डॉ. संजय देव