रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फाकउल्ला खॉं, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, खुदीराम बोस, 63 दिन लाहौर जेल में भूखा रहकर और तिलतिल करके अपनी जीवनवर्तिका को जलानेवाला यतीन्द्रनाथ दास, मदनलाल ढींगरा और सुभाषचन्द्र बोस तथा अन्य कितने ही मूल्यवान जीवन स्वाधीनता संग्राम की भेंट चढ गए।
तो हमने इस त्याग, तपस्या और बलिदानों के पश्चात् अपनी इस स्वाधीनता को देखा है । किन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि हम देश की स्वाधीनता के संघर्ष के समय के सभी उदात्त गुणों को भूल गये हैं । अब चारों ओर पाप स्वार्थपरता, विलासिता और भष्टाचार का नग्न नृत्य हो रहा है । युवक और युवतियां अनुशासनहीन और बेनकेल के ऊँट हैं । लूटपाट और डाकाजनी की आंधियॉं चल रही हैं । देश की यह दशा एक विचारशील व्यक्ति के मन में वेदना उत्पन्न करती हैं-
क्या किस्मत ने इसी दिन के लिए चुनवाये थे तिनके ।
बन जाये नशेमन तो कोई आग लगा दे ।।
पाठकवृन्द ! अथर्ववेद के इस मन्त्र में देश का कायाकल्प करने के लिए कुछ अचूक योगों का वर्णन किया है । यदि वेद के परामर्श के अनुसार हम देशवासियों में इन विचारों को जगा सकें, तो यह मातृभूमि की बहुत बड़ी सेवा होगी ।
इस मन्त्र में पहली बात कही गयी है, किसी देश में उसके उत्थान के लिए आवश्यक है कि उसके नागरिकों में तप और दीक्षा की भावना हो । आर्यों के सांस्कृतिक दृष्टिकोण से ये दोनों शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं । योग के दूसरे अंग नियमों में तप का तीसरा स्थान है । किसी भी लक्ष्य की पूर्ति के लिए बीच में आनेवाली समस्त बाधाओं को धैर्यपूर्वक सहते हुए आगे बढते जाने का नाम तप है ।
इसीलिए शास्त्र में इसकी दूूसरी परिभाषा तपो द्वन्द्वसहिष्णुत्वम् भी की गयी है । हानि-लाभ, सुख-दु:ख, सर्दी-गर्मी आदि जितने भी द्वन्द्व(जोड़े) हैं, उनकी चिन्ता न करके कर्तव्य पथ पर बढते चले जाना तप कहाता है । इसी भावना से मिलती किसी शास्त्रकार ने तपस्वी की परिभाषा की है
"जिसके कामों में सर्दी-गर्मी, भय-प्रेम, ऐश्वर्य और निर्धनता बाधक नहीं बनते और जो निरन्तर लक्ष्य की ओर बढता ही चला जाता है उसे तपस्वी कहते हैं ।''
महाभारत में यक्ष और युधिष्ठिर का संवाद बहुत प्रसिद्ध है । यक्ष ने अनेक प्रश्न पूछे और युधिष्ठिर ने उनके उत्तर दिये हैं । उनमें एक प्रश्न है- तप: किं लक्षणं प्रोक्तम्? तप का क्या लक्षण है ? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया- तप: स्वकर्मवर्तित्वम् । अपने कर्तव्य का एकनिष्ठ होकर पालन करने का नाम ही तप है । राष्ट्रीय दृष्टि से युधिष्ठिरकी की तप की परिभाषा बहुत ही उपादेय है । भारत में स्वाधीनता के बाद से कर्तव्यपालन की भावना तो प्राय: लुप्त हो गयी है । अग्रेजों के शासन में दण्ड के भय से लोग अपने-अपने काम में जुटे रहते थे । स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद से वह दण्ड का अंकुश निकल गया । अब साधारण सा कर्मचारी भी प्रान्त और केन्द्र मेें बिरादरी तथा रिश्तेदारी की कड़ियॉं जोड़कर रखता है । जब तक धैर्यपूर्वक लम्बी लड़ाई की तैयारी न करें, तब तक आप उसमें कुछ सुधार नहीं कर सकते ।
कर्तव्यपालन के लिए दृढ निष्ठा तब तक उत्पन्न नहीं होगी, जब तक कि देशवासियों का चारित्रिक धरातल ऊँचा न हो । अत: "चाणक्यसूत्र' नाम के छोटे से ग्रन्थ में राजनीति के कुशल कर्णधार आचार्य चाणक्य ने तप की परिभाषा करते हुए लिखा- तप: सार: इन्द्रियनिग्रह:। तप का निचोड़ जितेन्द्रियता है । अत: राष्ट्र में शक्तिसंचार और समृद्धि के लिए वेद सर्वप्रथम नागरिकों में तप को अपनाने का परामर्श देता है ।
तप में भी सौष्ठव और निखार लाने के लिए वेद ने कहा कि नागरिकों में "दीक्षा' भी होनी चाहिए । संस्कृत व्याकरण में, दीक्ष-धातु के नियम, व्रत, आदेश आदि अर्थ लिखे हुए हैं । सार यह निकला कि राष्ट्र के उत्थान के लिए अच्छे व्रत, नियम और मिलकर काम करने के कुछ संघटन बनाकर देश का शारीरिक, बौद्धिक और आर्थिक विकास करना चाहिए । ये सभी उत्कर्ष के साथ दीक्षा में समाहित हैं ।
तप और दीक्षा के आचरण का लाभ यह होगा कि देश में राष्ट्र-भाव जागृत होगा । एक नागरिक दूसरे के कष्ट को अपना कष्ट समझकर उसके निवारण में सहयोग करेगा । हमारे पैर में कांटा भता है, तो समस्त शरीर में वेदना का अनुभव होता है। आँख घायल पैर को देखती है, हाथ कांटे को निकालने के लिए दौड़ पड़ते हैं और जब तक उस कष्ट के कारण कांटे को नहीं निकाल फेंकते, तब तक शान्ति से नहीं बैठते। दीक्षा भी समस्त राष्ट्र में इसी आत्मीयता की भावना को उत्पन्न करेगी। इस भावना के आते ही देश में "बलम् ओजश्च जातम्' प्राणशक्ति का संचार होगा, राष्ट्रवासियों का स्वाभिमान जाग जायेगा और फिर ऐसे संघटित देश के सामने "देवा उपसन्नमन्तु' अच्छे-अच्छे शक्तिशाली राष्ट्र भी घुटने टेककर नतमस्तक होंगे।
राष्ट्र को शक्तिशाली और सम्मानित बनाने के लिए दूसरा कोई मार्ग नहीं है। इसके लिए आवश्यक है कि देश के वातावरण तथा शिक्षा को तप और दीक्षा के पवित्र मार्ग की ओर मोड़ा जावे।·
Divya Manav Mission Explanation of Vedas
आगे बढने वाले व्यक्ति के रास्ते में रुकावटें भी आती हैं और असफलताएं भी । जो उन्हें देखकर घबरा जाता है, वह जीवन में आगे नहीं बढ सकता तथा हार जाता है। शिवकुमार शास्त्री
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वेद का सन्देश सबके लिये, मन्त्र व्याख्या - यजुर्वेद 30.3
Ved Katha Pravachan - 37 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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