जब लेखक सत्य कथा लिखता है, तभी अपनी आंखों से उन स्थानों को देखने जाता है या सम्बन्धित व्यक्तियों से गहरी पूछताछ कर स्थानों की भौगोलिक स्थिति का वर्णन करता है। काल्पनिक लेखन में ऐतिहासिक स्थानों व उनकी भौगोलिक स्थिति की परवाह नहीं की जाती।
उत्तरी भारत पार करते हुए राम पूर्वी गोदावरी के तट पर स्थित अगस्त्य आश्रम पहुंचे। गोदावरी के समुद्र संगम से लेकर मध्य गोदावरी तक के उत्तरी तट पर अगस्त्य का आश्रम (छावनी) था। अगस्त्य के सैनिक यहॉं से राक्षस सेना को उत्तर में प्रवेश करने से रोके हुए थे।गोदावरी के समुद्र संगम के स्थान पर आज भी एक ऐतिहासिक नगर रामचन्द्रपुरम् बसा है, जो उत्तरी पांडिचेरी के पास है। यहां से अगस्त्य ने राम को पश्चिमी गोदावरी नदी के उत्तरी तट पर पंचवटी में जाकर रहने को कहा। वे वहॉं से राक्षस सेना को गोदावरी पार करने से रोकें। (वाल्मीकि रामायण अरण्य काण्ड, 13वॉं सर्ग श्लोक 13 से 22)
सीता की खोज का भौगोलिक वर्णन- सुग्रीव की आज्ञा से वानर चारों दिशाओं में सीता की खोज में गये। उनका भौगोलिक वर्णन पूर्णतः सत्य है।
पूर्व दिशा- रेशम के कीड़ों का उत्पत्ति स्थान (आसाम, ब्रह्मा)। नरभक्षी राक्षस (मलेशिया के जंगलों और नागालैंड में कुछ समय पूर्व तक मानव भक्षण की प्रथा थी)। सोने जैसे (पीले) रंगवाले (चीनी-मंगोल) लोग। कच्ची मछली खाने वाले द्वीपवासी (हिन्देशिया के द्वीप)। यवद्वीप (जावा), सुवर्ण द्वीप (सुमात्रा) सुवर्ण की खानों का द्वीप (आस्ट्रेलिया) बड़े नागों के द्वीप (हिन्देशिया के जल में 30-40 फुट तक के नाग एनाकोंडा आज भी मिलते हैं) वाल्मीकि कहते हैं कि यह पूर्व दिशा है इसके आगे कोई देश नहीं (प्रशांत महासागर है)। (वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड 40वां सर्ग)
दक्षिण दिशा- यहॉं छटे हुए प्रमुख वानर भेजे गये। सुग्रीव ने कहा, वानरों ! तुम विन्ध्य पर्वत, नर्मदा नदी, गोदावरी, महानदी, कृष्णा, वरदा, उत्कल (उड़ीसा), अवन्ती (उज्जैन), दंडकारण्य, गोदावरी नदी को खास देखना। क्योंकि यहीं नासिक से सीता का हरण हुआ था। आन्ध्र, पुण्ड्र, चोल, पाण्ड्य, केरल, मलय पर्वत जहॉं चन्दन के वृक्ष हैं (मलयागिरी में आज भी श्रेष्ठ सुगंध वाले चन्दन के वृक्ष हैं) कावेरी और लंका, उसके आगे समुद्र है। (वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा का 41वॉं सर्ग)
पश्चिम दिशा- सौराष्ट्र, वाल्हीक, पश्चिम की मरूभूमि, मुरवी पत्तन (मोरवी बन्दरगाह), सिन्धु नदी व समुद्र का संगम, गंधर्व देश (बलूच-अफगान), वरुण का स्थान (कराची के द्वीप) में सीता की खोज करो। (वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड 42वॉं सर्ग)
उत्तर दिशा- हिमालय, म्लेच्छ (तुर्क), मद्र (ईरान), काम्बोज, तुर्किस्तान, यवन (यूनान), शक (मध्य एशिया), कैलाश, सूना आकाश जहॉं ना बादलों की गर्जना होगी व सदा उजाला दिखेगा (टुण्ड्राप्रदेश)। सूर्य से रहित देश (साइबेरिया के पार) इसके आगे कुछ नहीं है। (वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा काण्ड 43वॉं सर्ग)
सीता की खोज में सुग्रीव ने वानरों को इन देशों में भेजा। वाल्मीकि रामायण में लिखा हुआ इन देशों का वर्णन जो आज भी स्थित हैं, यह बताता है कि 17 लाख साल पहले भारतीय इन प्रदेशों को जानते थे। तब आज राम, रामसेतु व रामायण को नकारने वाले यूरोप के लोग न आग जलाना जानते थे और न कपड़े पहननाही जानते थे।
स्वर्ग का वर्णन- रामायण में स्वर्ग का वर्णन कई बार आया है। स्वर्ग को कैलाश के पास बताया गया है। रावण ने अपने भाई कुबेर को हिमालय पार कर (किन्नौर प्रदेश पार) हराया था। फिर आगे बढ़ कैलाश पर शिव सेनापति नन्दी को परास्त कर स्वर्ग में प्रवेश किया था व इन्द्र को बन्दी बनाकर लौटा था। स्वर्ग का मार्ग कैलाश होकर था। स्वर्ग कहीं बादलों के पार अन्तरिक्ष में नहीं, यहीं पृथ्वी पर है और अपना कश्मीर है। कालान्तर में इसी मार्ग से पाण्डव सशरीर स्वर्ग जाना चाह रहे थे। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में द्रोपदी व चार पाण्डवों की जिन स्थानों पर मृत्यु हुई, वहॉं उनके नाम पर मन्दिर बने हैं।
कश्मीर में ही अनन्तनाग स्थान है, जहॉं द्वापर में जनमेजय द्वारा किये गये नाग यज्ञ में, नागों (कबायली पठानों) ने जान बचाने के लिये देवराज इन्द्र के यहॉं स्वर्ग में शरण ली थी। हिमाचल प्रदेश का कुल्लू आज भी देवताओं का प्रदेश कहलाता है। उत्तराखंड को आज भी देवभूमि कहते हैं।
रावण ने कैलाश पर जाते समय जिस स्थान पर सेना का पड़ाव डाला, वहॉं किन्नर अपनी पत्नियों के साथ गीत गा रहे थे, यानि वह स्थान हिमाचल प्रदेश का किन्नोर जिला था। यहॉं के सुंदर लोग आज भी किन्नर के नाम से पुकारे जाते हैं।
स्वर्ग (कश्मीर) की अप्सरा रम्भा रावण की छावनी से होकर जा रही थी, तब रावण ने उसे पकड़ लिया व बलात्कार करने लगा। रंभा ने कहा कि मैं आपके भतीजे नलकूवर (कुबेर पुत्र) की प्रेमिका हूँ । कुबेर आपके बड़े भाई हैं, इसलिये में आपकी पुत्रवधु हूँ। कृपया मुझे छोड़ दीजिये। तब रावण ने जवाब दिया कि देवलोक में अप्सरा का विवाह नहीं होता। देवलोक में कोई एक स्त्री के साथ नहीं रहता। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 26वॉं सर्ग)
आज भी तिब्बत में विवाह संस्कार नहीं होते। (राहुल सांकृत्यायन का एशिया भ्रमण पुस्तक से) लद्दाख (कश्मीर), हिमाचल प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र, उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र तथा नेपाल के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुपति प्रथा का प्रचलन है। एक स्त्री सभी भाइयों की साझा पत्नी होती है। वाल्मीकि ने रामायण में घटी प्रत्येक घटना का यथार्थ वर्णन किया है। कैलाश से (तिब्बत) सिन्धु नदी के किनारे लद्दाख, फिर कश्मीर पहुँचने का मार्ग है। इसी मार्ग से रावण ने कश्मीर (स्वर्ग) पर आक्रमण किया था। कश्मीर का एक मार्ग रावलपिंडी (पाकिस्तान) से झेलम (स्वर्ग की वितस्ता) नदी के किनारे होकर कश्मीर घाटी (स्वर्ग) को जाता है। पाकिस्तान ने इसी मार्ग से कश्मीर पर आक्रमण किया था। सन् 1947 के पूर्व भारत से कश्मीर जाने का कोई मार्ग नहीं था। क्योंकि रावी व चिनाय नदियों पर कोई पुल नहीं था तथा कश्मीर घाटी के मार्ग में पीर पंजाल का बर्फीला पहाड़ बाधक था। इसी कारण कश्मीर को बचाने के लिये भारतीय सेना को वायुयानों का सहारा लेना पड़ा था। इसी कारण रावण ने कैलाश वाले मार्ग को चुना। रावलपिण्डी झेलम के मार्ग पर गंधर्व (कबायली पठान) बसे थे, इस कारण रावण ने उस मार्ग से भी कश्मीर पर आक्रमण नहीं किया।
रावलपिण्डी झेलम के मार्ग से जनमेजय के नाग यज्ञ के समय तक्षशिला (पाकिस्तान में सिन्धु नदी के किनारे) का नाग राजा तक्षक भागकर स्वर्ग में इन्द्र की शरण में गया था। तक्षक नागों के साथ जहॉं बसा, वह स्थान आज अनंतनाग कहलाता है। यह तक्षशिला रावलपिण्डी के निकट पश्चिम में है। इस तक्षशिला को राम के भाई भरत ने बसाया था और सिन्धु नदी के उस पार पुष्कलावत नगर (पेशावर) भी भरत ने ही बसाया था। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड 101वां सर्ग)
यह सब लिखने का कारण यह है कि वाल्मीकि रामायण में वर्णित स्वर्ग यही कश्मीर है। इसे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के पुत्र आदित्यों ने बसाया और अपने पिता के नाम पर इसे कश्यप मीर (ऋषि) याने कश्मीर कहा।(क्रमशः)
प्रेरक वाक्य
आर्यावर्त देश ऐसा देश है जिसके सदृश भूगोल में दूसरा कोई देश नहीं है। इसीलिए इस भूमि का नाम सुवर्ण भूमि है। क्योंकि यही सुवर्णादि रत्नों को उत्पन्न करती है। जितने भूगोल में देश हैं वे सब इसी देश की प्रशंसा करते और आशा रखते हैं। पारसमणि पत्थर सुना जाता है, यह बात तो झूठी है, परन्तु आर्यावर्त देश ही सच्चा पारसमणि है कि जिसको लोहेरूप दरिद्र विदेशी छूते के साथ ही "सुवर्ण' अर्थात् धनाढ्य हो जाते हैं। महर्षि दयानन्द सरस्वती
लेखक- रामसिंह शेखावत
दिव्ययुग फरवरी 2009 divyayug february 2009
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