ईसामसीह स्वर्ग (कश्मीर) गये- बाइबिल में वर्णन है कि यरूसलेम व उत्तर पश्चिम अरब में ईसा मसीह वर्षों तक उपदेश देते घूमते रहे। यहीं उनका जन्म हुआ और सूली पर चढ़ाए गये। मरने के बाद ईशु को पहाड़ की एक गुफा में उनका शरीर रखकर एक बड़ी चट्टान से गुफा का द्वार बन्द कर दिया या। बाइबिल में लिखा है कि दफनाने के तीसरे दिन ईसा जी उठे और चट्टान को हटाकर बाहर आ गये। अपनी मॉं व शिष्यों से मिले। इन लोगों को डर था कि रोमन सैनिकों को यदि पता चल गया कि ईसा पुनः जी उठा है तो फिर पकड़कर मार डालेंगे। इसलिये ईसा अपनी मॉं और शिष्यों के साथ स्वर्ग (कश्मीर) चल दिये। बाइबिल के इस कथन का प्रमाण है कि यरूसलेम या पश्चिम उत्तर अरब में कहीं भी ईसा मसीह या उनकी मॉं मरियम की कोई कब्र नहीं है, किन्तु कश्मीर (स्वर्ग) में जहॉं ईसा की मृत्यु हुई और उन्हें दफनाया गया, ईसा की दरगाह मौजूद है। उनकी मॉं की दरगाह भी कश्मीर में है। किन्तु ईसाई जगत के पादरी इस तथ्य को स्वीकार नहीं करते। क्योंकि इससे उनकी इस मान्यता को धक्का लगता है कि ईसा ईश्वर के पुत्र थे, उनकी मृत्यु नहीं हुई, वे सशरीर सातवें आसमान (अन्तरिक्ष) स्थित स्वर्ग चले गये।
बाइबिल में वर्णित यह कथा और कश्मीर में स्थित ईसा व मरियम की कब्र कश्मीर को ही स्वर्ग बताती है और वाल्मीकि द्वारा रामायण में वर्णित स्वर्ग भी कश्मीर ही है। वाल्मीकि ने कोई कपोल-कल्पित रामायण नहीं लिखी।
रामकथा की प्रामाणिकता के लिये रामायण में वर्णित राक्षस जाति और वानर जाति के अस्तित्व के वर्तमान प्रमाण खोजने होंगे। जब यह प्रमाणित हो जायेगा कि कोई राक्षस जाति थी और कोई वानर जाति थी, तो रामायण में वर्णित कथा सत्य सिद्ध हो जायेगी।
राक्षस जाति- वाल्मीकि ने रामायण में राक्षस वंश का विस्तार से वर्णन किया है। इस वंश के माध्यम से हम रामायण की सत्यता को प्रमाणित करने के लिये कुछ ऐतिहासिक देशों, स्थानों व जातियों का वर्णन करेंगे। यदि इनकी ऐतिहासिकता प्रमाणित हो जाती है, तो रामायण सत्य ऐतिहासिक ग्रंथ और रामकथा सत्य ऐतिहासिक घटना प्रमाणित हो जायेगी तथा राम भी सत्य प्रमाणित हो जायेंगे।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार आदि राक्षस हेति हुआ। ब्रह्मा ने इसे भारत के दक्षिण स्थित सिन्धु सागर (अरब सागर) की रक्षा के लिये नियुक्त किया। इसका पुत्र विद्युत केश व उसका सुकेश हुआ। सुकेश के तीन पुत्र माल्यवान, माली और सुमाली (रावण का नाना) हुए। इन्हें शिल्पज्ञ विश्वकर्मा ने कहाकि मैंने इन्द्र की आज्ञा से दक्षिणी समुद्र स्थित लंका द्वीप में एक नगरी का निर्माण किया है। वह खाली पड़ी है। आप तीनों भाई जाकर उसे बसायें। समुद्र से सुरक्षित लंका में बसकर इन्होंने सैनिक एकत्र किये। समुद्र यात्रा के लिये बड़े जहाजों का निर्माण किया व जहाजों में सैनिक भर भारत में उतरे तथा स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में विष्णु के हाथों माली मारा गया तथा माल्यवान व सुमाली लंका भाग आये। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 7वां सर्ग 43वॉं श्लोक)
भागते सुमाली को विष्णु ने कहा था कि मैं राक्षसों का समूल नाश किये बिना न रहूंगा। विष्णु के भय से पहले राक्षस लंका छोड़ पाताल (ईरान) जाकर बस गये। फिर वहॉं भी विष्णु के आक्रमण के भय से रसातल (अफ्रीका) मेें जा छिपे। विष्णु ने भागते राक्षसों को कहा था कि तुम भागकर रसातल में भी जा छिपोगे तो मैं वहॉं से भी ढूंढकर तुम्हारा संहार करूंगा। (वाल्मीकि रामायण उत्तरकांड 8वां सर्ग 8वां श्लोक)
क्या इस प्रमाण को झूठा कहोगे? अफ्रीका (रसातल) में उत्तर पश्चिम का भू-भाग भारतीयों का प्रथम उपनिवेश था। भारत या लंका से कोई जहाज सीधा पश्चिम की ओर जाये, तो अफ्रीका का यह कोना सबसे निकट पड़ता है। किन्तु माल्यवान व माली दोनों भाई पहले पाताल (ईरान) में बसे, फिर अफ्रीका आये। याने उस समय समुद्र यात्रा का जोखम नहीं उठाया जाता था। पानी के जहाज भूमि के किनारे किनारे यात्रा करते थे।
अफ्रीका का यह कोना समतल मैदानी भाग था और यहॉं कई छोटी-छोटी नदियां थीं। सुमाली दैत्य ने इस प्रदेश को आबाद कर इसका नाम स्वयं के नाम पर सुमालिया (सुमाली का) रखा, जो 17 लाख साल बाद आज भी सोमालिया कहलाता है। राक्षय यहॉं रुके नहीं, आगे बढ़ते गये। राक्षस उत्तरी अफ्रीका में नील नदी के डेल्टा में पहुंचे। नील नदी के डेल्टा में कई जातियों के लोग बसे थे। इनमें अफ्रीका के ऊंचे शरीर व काले रंग के हब्शी, असीरिया व फिलिस्तीन के गौर वर्ण वाले असुर (सेमेटिक जाति) इनके बाल लाल होते थे। सागर पार यूरोप से आये गौर वर्ण तथा कंजी आंखों और सुनहरे बालों वाले (एंग्लो नार्मन नस्ल) लोग तथा इनके परस्पर मिश्रण से बने वर्ण संकर लोग भी थे। इन्हे देख राक्षसों ने इस प्रदेश को मिश्र देश (मिश्रित जाति के लोगों का देश) नाम दिया और नदी के नीले जल को देख नील नदी के नाम से पुकारा। 17 लाख साल बाद आज भी यह प्रदेश मिश्र देश और नदी नील नदी के नाम से जाने जाते हैं। सोमलिया, इथोपिया, इरीट्रिया की भाषा के कई संज्ञा शब्द संस्कृत के हैं। सूडान और मिश्र में भी भारतीय शब्दों का चलन था, किन्तु इस्लाम के प्रवेश के बाद कई नाम परिवर्तित हो गये। अफ्रीका व अरब के मध्य के संकरे सागर को
भारतीयों ने लाल सागर नाम दिया, जो आज भी चल रहा है।
राक्षस अफ्रीका में अपनी बस्तियॉं बसाते आगे बढ़ते गये। नाइजर नदी के दोनों ओर के हरे-भरे प्रदेश में राक्षस बस गये और स्वर्ग में विष्णु के हाथों मारे गये माली के नाम पर इस प्रदेश को माली नाम दिया। आज भी नाइजर नदी से सिंचित यह प्रदेश माली कहलाता है। माली और सोमलिया के लोगोें की नस्ल एक जैसी है। प्राचीन काल में दोनों प्रदेशों के राक्षस आपस में मिलने आया-जाया करते थे। आज माली से ऊंटों के काफिले सहारा रेगिस्तान पार कर सोमलिया आते-जाते हैं और व्यापार करते हैं। अफ्रीका के किसी अन्य देश से इनके इतने घनिष्ट सम्बन्ध नहीं हैं। दोनोें देशों के स्त्री-पुरुषों का पहनावा अफ्रीका के लोगों से नहीं मिलता। ये लोग गुजरात, कच्छ, सिन्ध, पश्चिम राजस्थान के लोगों जैसे कपड़े पहनते हैं। उत्तर पश्चिम व पूर्व अफ्रीका के लोग गायों के बड़े-बड़े झुण्ड पालते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यहॉं की गायों की नस्ल सिन्ध राजस्थान की गायों जैसी ही है। रसातल जाते समय ये राक्षस भारतीय (राजस्थानी) वेश भूषा और गोवंश साथ लेकर गये थे।
अच्छे नाविक होने के कारण ये राक्षस अफ्रीका पार कर नावों द्वारा वेस्टइण्डीज पहुंचे, यहॉं से मैक्सिको गये। मैक्सिको में इनका रक्त मिश्रण नहीं हुआ। किन्तु वहॉं भी ये अपने साथ भारत की भाषा, संस्कृति और गोधन ले गये। मैक्सिको में भारतीय गायों के लाखों के झुंड देख आश्चर्य होता है। मैक्सिको में इस्लाम का धार्मिक विध्वंस नहीं हुआ था। इस कारण वहॉं की माया सभ्यता, हाथ जोड़ पूजा करने की पद्धति, पालथी मारकर बैठने का रिवाज और लोगों की भारतीय मुखाकृति तथा रंग देख पहले-पहल पहुंचे यूरोप वासी (स्पेन) लोगों ने इन्हें भारतीय ही समझा और रेड इंडियन कहकर पुकारा। मैक्सिको के लोगों का ईसाई कारण होने के बाद भी रेड इंडियनों में भारतीय नाम मिल जाते हैं।
राक्षस शिव-पूजक थे, इस कारण अफ्रीका और मैक्सिको में शिवलिंग पूजा अपने साथ ले गये। अफ्रीका में मुसलमान बना लिये जाने के कारण शिव पूजा का लोप हो गया, किन्तु मैक्सिको में आज भी शिव पूजा के चिन्ह दिख जाते हैं। लेखक- रामसिंह शेखावत
दिव्ययुग मार्च 2009 divyayug march 2009
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