सुख और दुःख दोनों स्थितियों से गुजरने का नाम ही जीवन है। जिस तरह जीवन में खुशियों के आँचल में सुख पलता है वहीं गमों की आँधियॉं दुःखों की ओर ले जाती हैं । संसार में जहॉं फलदार वृक्ष होते हैं, वहीं झाड़-झंखाड़ भी होते हैं। सुन्दर-सुगन्धित पुष्प खिलते हैं, तो तीखे कॉंटे भी साथ ही उगते हैं। रसीले फल आनन्द देते हैं तथा फूलों की सुन्दरता और सुगन्ध भी अच्छी लगती है। साथ ही झाड़-झंखाड़ और कॉंटों से भी सामना होता ही है। यह स्थिति प्रत्येक व्यक्ति के साथ है। जो व्यक्ति इन परिस्थितियों में अपना संयम नहीं खोता है वह अपना जीवन सुख से व्यतीत करता है। जीवन में खुशियॉं सरलता से नहीं मिलती, अपितु संघर्ष के बाद उन्हें प्राप्त किया जाता है।
सुख को प्राप्त करने के लिए सबसे आवश्यक है सकारात्मक सोच। यदि हमारी सोच सकारात्मक होगी तो हम उसी तरह से सोचेंगे और वही कार्य करेंगे तथा उसमें सफलता मिलेगी। लेकिन यदि हम नकारात्मक सोचेंगे तब हमें निराशा ही प्राप्त होगी। एक व्यक्ति जो यह सोचता है कि उसे किसी विशेष क्षेत्र में करियर बनाना है, यदि वह अपने आत्मविश्वास और लगन के साथ मेहनत करे तो वह अवश्य इच्छित परिणाम पा सकता है और अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है। यदि वही व्यक्ति सोचे कि नहीं, मैं कुछ नहीं कर सकता या मुझसे कुछ नहीं होगा, तो वह निराशा के घेरे में रहकर अपने भविष्य को तलाशता रहेगा और हमेशा ही दुःखों में डूबा रहेगा। इसके अतिरिक्त शुद्ध विचार हमारे मन को शान्ति पहुँचाते हैं जो कि सुख का आधार हैं। दुःख चाहे किसी भी तरह का हो वह हमेशा निराशा ही देता है, जो व्यक्ति अपने आप पर संयम रखकर विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हैं सचमुच विजय उन्हीं की होती है।
यदि कोई व्यक्ति किसी कार्य में असफल रहता है तो उसे निराश होने के बजाए और अधिक मेहनत व लगन के साथ कार्य करना चाहिए। रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निशान अर्थात रस्सी को बार-बार कुएं से अंदर व बाहर खींचने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं। उसी प्रकार यदि हम भी किसी कार्य को करते हुए बार-बार मेहनत करते हैं तो हमें सफलता अवश्य मिलती है।
जमीन जितनी तपती है अंकुरण उतना ही अच्छा होता है। दुःख ही जीवन को मांजता है। दुःख की ठोकरें ही व्यक्ति को संघर्ष करने की प्रेरणा व शक्ति देती हैं। असफलताओें तथा कठिनाइयों में ही मनुष्य का व्यक्तित्व निखरता है और उसकी सामर्थ्य व गुण प्रकाश में आते हैं। जो व्यक्ति कठोर परिश्रम तथा संघर्ष करके सफलता प्राप्त करता है, वही उसके सच्चे सुख का अनुभव कर सकता है। बिना संघर्ष के प्राप्त हुए सुख का कोई मोल पता ही नहीं लगता। कष्ट के दिनों में निरन्तर धैर्य के साथ संघर्ष करने पर ही सफलता के द्वार खुलते हैं। बड़ी से बड़ी विपत्ति से भी धैर्य के साथ संघर्ष करने पर ही पार पाया जा सकता है।
यह ठीक ही कहा गया है- धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपत काल परखिए चारी। कभी-कभी संकट में अपनों का कठोर व्यवहार गहराई से आहत कर जाता है। परन्तु बाद में उसके पीछे छिपी अच्छाई का ज्ञान होता है। इस संसार में न कोई व्यक्ति पूर्णतः सुखी है, न पूर्णतः दुखी। दूसरों का सुख देखकर ईर्ष्यावश दुखी होने से कोई लाभ नहीं है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गुलाब का फूल कॉंटों में ही खिलता है। कड़ी धूप के बाद ही वर्षा की शीतल फुहारों का आनन्द मिलता है। कमल केवल शुद्ध जल में ही नहीं, कीचड़ में भी खिलता है, तभी उसका एक नाम पंकज भी है। सोना आग में तपकर ही निखरता है । इस संसार में ऐसा कोई भी नहीं है, जिसे कभी संकट का सामना न करना पड़ा हो। लोकोत्तर महापुरुष भगवान् श्रीकृष्ण को जन्म लेते ही अपनी मॉं से बिछुड़ना पड़ा था। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को मॉं कैकेयी के आदेश पर चौदह वर्षों के लिए वन जाना पड़ा। यदि भगवान श्रीराम वन नहीं जाते, तो आज हम उस राम कथा से वंचित रह जाते जो हमें प्रेम, दया, त्याग, वीरता, शील, विनय के साथ मातृ धर्म, पितृ धर्म और भ्रातृ धर्म का सन्देश देती है।
आज के विज्ञान को ही देखें। आज के विज्ञान की उपलब्धियों के पीछे वैज्ञानिकों की अनेक असफलताओं की कहानियॉं भी छिपी हैं। उन्हीं असफलताओं में से होकर उन्हें सफलता का मार्ग मिला है और उन्होेंने मानवता को नई उपलब्धियों का उपहार दिया है।
सच तो यह है कि काली रात के आंचल में ही सितारे छिटकते हैं और उसी की गोद में उजला दिवस जन्म लेता है। अतः निराशा व अवसाद के क्षणों में हताश होकर हाथ पर हाथ रखकर बैठना नहीं चाहिए। अपितु आशा का दीप जलाकर साहस की डोर थामकर दुःख की लहरों से संघर्ष करके पार जाने का प्रयत्न करना चाहिए।
दुःखों से लड़कर विजय को प्राप्त करना ही जीवन है। जिसके जीवन में संघर्ष नहीं है, वह जीवन एक बिन पतवार की नाव की तरह है, जिसका कोई किनारा नहीं होता अर्थात् जिसकी कोई मंजिल नहीं होती।
संघर्ष हमें जीने का तरीका सिखाते हैं। जो व्यक्ति जितना अधिक संघर्ष करता है, उसका जीवन उतना ही अधिक निखरा हुआ होता है। सुख और दुःख के खेल में जीवन की गाड़ी चलती है, जिसके सुख और दुःख दोनों ही पहिए हैं। यदि इन दोनों पहियों में से एक पहिया भी न हो तो जीवन की गाड़ी नहीं चलती है। जिस प्रकार किसी गाड़ी को चलाने के लिए दोनों पहियों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार जीवन की गाड़ी को चलाने के लिए भी सुख और दुःख दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।
कुछ लोग दुःख में जल्दी ही विचलित हो जाते हैंऔर वे अपना मानसिक संतुलन खो देते हैं। आज की पीढ़ी के युवा अधिक कठिनाई का सामना करने में असमर्थ होते हैं और जीवन को बोझ समझने लगते हैं जिससे वे एक खुशहाल जीवन की बजाए एक कूप मंडूक की तरह जीवन बिताते हैं जो सर्वथा अनुचित है।
जिस प्रकार नदी का कार्य निरन्तर बहते रहना है उसी प्रकार जीवन को निरन्तर चलते रहना चाहिए। जिस प्रकार नदी में पानी का ठहराव वहॉं पर गंदगी उत्पन्न कर देता है, उसी प्रकार जीवन में ठहराव हमें नीरसता की ओर ले जाता है। मनुष्य जीवन बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसको अच्छे ढंग से जीकर खुशहाल बनाना चाहिए। -आचार्य डॉ. संजय देव, दिव्ययुग जुलाई 2009 इन्दौर, Divya yug july 2009 Indore
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
वेद - गीता का सन्देश - जैसा बोओगे वैसा काटोगे
Ved Katha Pravachan -103 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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