सामान्यतः श्री तथा लक्ष्मी को एक ही अर्थ का वाचक मान लिया जाता है। किन्तु स्वरूप की दृष्टि से दोनों भिन्न-भिन्न हैं। ये दोनों विभिन्न प्रकार की सम्पदाओं के वाचक हैं। इसीलिए दोनों के वाहन भी पृथक-पृथक हैं। श्री का वाहन कमल तथा लक्ष्मी का वाहन उलूक माना गया है। कमल सर्वप्रिय है, जबकि उल्लू सबसे तिरस्कृत है। उसे कोई भी अपने पास रखना नहीं चाहता। कारण स्पष्ट है। कमल सूर्य का प्रेमी है तो इसके विपरीत उल्लू अन्धकार का प्रेमी है। रात्री में कमल नहीं खिलता। तब तो उल्लू ही सक्रिय रहता है। जब लक्ष्मी का वाहन उल्लू निशाचर है, तो लक्ष्मी भी रात्री के अन्धकार में ही भ्रमण करती है। दिन के प्रकाश में वाहन के बिना वह भ्रमण नहीं कर सकती। दिन में तो कमल ही खिलेगा। बस यही अन्तर है white money तथा black money में। उसे ब्लेक कहते हैं इसीलिए कि वह अन्धकार में, छिपकर, अवैध तरीकों से कमायी जाती है, जबकि शुद्ध-सात्विक धन प्रकाश में, सबके सामने कमाया जाता है। बस इसी का प्रतीक है श्री तथा लक्ष्मी। वेदों में इसीलिए श्री-प्राप्ति की कामना की गयी है- ओम् सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीःश्रयतां स्वाहा। श्री के साथ सत्य तथा यश भी जुड़े हैं। ये दोनों इससे पूर्ववर्त्ती हैं। सत्य तथा यश से युक्त धन ही श्री कहलाता है। इसके विपरीत धन लक्ष्मी का वाचक है। क्योंकि न वहॉं सत्य और धर्म विद्यमान हैं न यश। वहॉं तो असत्य एवं अपयश विद्यमान हैं। ऋग्वेद में श्रेष्ठ धन को रयि कहा गया है। वहॉं (ऋग्वेद 1.1.3) में कहा गया है कि हम ऐसी रयि को प्राप्त करें जो हमें पुष्टि देने वाली हो, यश देने वाली हो तथा वीरत्व की भावना से युक्त हो। ऐसी सम्पत्ति श्री कहलाती है इसके विपरीत गुणों वाली सम्पत्ति लक्ष्मी है। वेदों में ऐसी लक्ष्मी को दूर रखने की कामना की गई है। अथर्व8.115.1 में कहा है- हे पापी लक्ष्मी! तू मुझसे दूर चली जा, तू नष्ट हो जा। इसी प्रकार आगे एक मन्त्र में कहा गया है कि पुण्यशालिनी लक्ष्मी=श्री ही हमारे बीच में विचरण करे, जो पापी लक्ष्मी है उसे हम नष्ट करते हैं। क्योंकि ये दुर्लक्ष्मी गिराने वाली है, इसने मुझे इसी प्रकार घेर लिया है जैसे लता किसी वृक्ष को घेर लेती है- या मा लक्ष्मीः पतयालूरजुष्टामि भस्कन्द वन्दनेव वृक्षम् (अथर्ववेद)
आज इसी दुर्लक्ष्मी ने संसार को घेरा हुआ है। यह पतयालू है इसीलिए इसे प्राप्त करके हम पतन की ओर बढ़े चले जा रहे हैं। लक्ष्मी के आगे आज श्री तो स्वयं श्रीहीन हो गयी। रिश्वत, चोरबाजारी आदि के द्वारा दिनरात लक्ष्मी प्राप्ति की इच्छा में संसार लगा है। बड़े-बड़े नेता और अधिकारी रिश्वत ले रहे हैं। पूंजीपति दो नम्बर का पैसा कमा रहे हैं यह सब लक्ष्मी का प्रताप है। जो कल तक सामान्य व्यक्ति था आज अनेकों प्लाट, फैक्ट्री, बंगलों का स्वामी है। उसकी यह लक्ष्मी किसी गरीब के काम नहीं आती, न राष्ट्र के काम आती क्योंकि इनको त्रस्त करके, धोखा देकर ही तो यह अर्जित की गयी है। वह व्यक्ति इस दुर्लक्ष्मी के बल पर ऐश करता है, गरीबों के जीवन से खिलवाड़ करता है, सतियों का सतीत्व भंग करता है, हत्याएं करता-कराता है। क्योंकि दुर्लक्ष्मी उसके चारों ओर लिपटी हुयी है। किन्तु वह भूल जाता है कि यह लक्ष्मी स्थायी नहीं है। महाकवि वाणभट्ट ने शुकनाश के मुख से इसी लक्ष्मी के अवगुणों पर अच्छा प्रकाश डाला है। उनके अनुसार इस दुर्लक्ष्मी को प्राप्त करके व्यक्ति न अपने कुल की परवाह करता है, न शास्त्रों का उपदेश सुनता है तथा न गुरुजनों का आदर करता है। बस टेड़ा मुख करके केकड़े की भांति तिरछी चाल चलता रहता है।
यजुर्वेद 31.22 में श्री तथा लक्ष्मी दोनों को सर्वव्यापक परमात्मा की दो पत्नियॉं बतलाया है। इसी आधार पर पुराणों में दोनों को विष्णु की दो पत्नी मान लिया गया। विष्णु की ये दोनों पत्नियॉं परस्पर विरुद्ध स्वभाव एवं आचरण वाली है। सौत होने के कारण इनमें परस्पर डाह है। दोनों एक दूसरे की विध्वंसक हैं। आज दुर्लक्ष्मी ने ही श्री को मानो बनवास दे दिया है। दीपावली पर प्रायः लक्ष्मीपूजन किया जाता है, इसके स्थान पर हम श्री पूजन करें। यह श्री हमें पुष्टि प्रदान करेगी, यश प्रदान करेगी, वीरत्व की भावना का संचार करेगी। -डॉ. रघुवीर वेदाचार्य, अक्टूबर 2008 (Divya Yug 2008)
प्रेरक वाक्य
आज भारत को भगवान श्रीराम तथा भगवान श्रीकृष्ण जैसे लोकनायकों की आवश्यकता है जो सत्ता से दूर अथवा सत्ता में रहते हुए भी सम्पूर्ण सत्ता का समाज और राष्ट्र के हित में संचालन करते हों। ऐसे ही नायक वास्तव में राष्ट्रनायक कहलाने के योग्य होते हैं। -आचार्य डॉ. संजयदेव
जीवन जीने की सही कला जानने एवं वैचारिक क्रान्ति और आध्यात्मिक उत्थान के लिए
वेद मर्मज्ञ आचार्य डॉ. संजय देव के ओजस्वी प्रवचन सुनकर लाभान्वित हों।
मानवता ही मनुष्य का धर्म
Ved Katha Pravachan - 19 (Explanation of Vedas) वेद कथा - प्रवचन एवं व्याख्यान Ved Gyan Katha Divya Pravachan & Vedas explained (Introduction to the Vedas, Explanation of Vedas & Vaidik Mantras in Hindi) by Acharya Dr. Sanjay Dev
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