हमें सदैव स्वयं को ईश्वर का ऋणी व कृतज्ञ अनुभव करना है और वेदाध्यन सहित दयानन्द के सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, संस्कारविधि, आर्यविभिविनय आदि ग्रन्थों एवं अन्य विपुल वैदिक साहित्य का अध्ययन करते रहकर सन्मार्ग का अनुगमन करना है। यदि हम अपने कर्मों को देखें तो हम पाते हैं कि अपने एक-एक कर्म का ज्ञान रखना कितना कठिन है। हम स्वयं ही अपने अतीत के अनेक कर्मों को भूल जाते हैं। ईश्वर हमारे इस जन्म व पूर्वजन्मों के किसी कर्म को नहीं भूलता। ईश्वर का यह गुण हमें उसके प्रति समर्पित होकर उपासना करने के लिये प्रेरित करता है।
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